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बिशन सिंह बेदी का निधन: BCCI से लेकर गावस्कर से टकराव, 'फिरकी के सरदार' के अनजान किस्से

Bishan Singh Bedi Dies: बिशन सिंह बेदी का 23 अक्टूबर को 77 साल की उम्र में निधन हो गया.

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(भारतीय क्रिकेट के महान खिलाड़ी और 'स्पिन के सरदार' कहे जाने वाले बिशन सिंह बेदी ने लंबी बीमारी के बाद 77 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. यह स्टोरी पहली बार 25 सितंबर 2018 को द क्विंट में प्रकाशित हुई थी.)

अमृतसर की गलियों से भारतीय क्रिकेट टीम तक, बिशन सिंह बेदी (Bishan Singh Bedi) ने 1960 और 1970 के दशक की प्रसिद्ध भारतीय स्पिन चौकड़ी का हिस्सा बनकर क्रिकेट की कहानियों में अपनी जगह बनाई. उनके क्रिकेट के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन मैदान के अंदर और बाहर उनका व्यक्तित्व ही था, जिसने हमेशा ज्यादा ध्यान आकर्षित किया.

बिशन बेदी मंसूर अली खान 'टाइगर' पटौदी से काफी प्रभावित रहे और उनके नेतृत्व में काफी फले-फूले. इरापल्ली प्रसन्ना, भागवत चंद्रशेखर और श्रीनिवास वेंकटराघवन के साथ स्पिन चौकड़ी में बेदी ने खूब प्रसिद्धी हासिल की.

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बेदी की गेंदबाजी का स्टाइल, गेंदों में फ्लाइट, गेंदों का लहराते हुए टप्पा खाना और खासकर छक्का खाने के बाद हर बार एक ताली बजाना उनकी खास चीजों में थे.

1970 के दशक में भारतीय क्रिकेट में सुनील गावस्कर और गुंडप्पा विश्वनाथ की बल्लेबाजी के साथ-साथ बेदी की गेंदबाजी को भी बाहर की दुनिया याद करती थी.

बेदी अपने आप में एक सुपरस्टार थे, जो बिना किसी परवाह के अपने नियमों के अनुसार खेलते थे. 1974 के इंग्लैंड दौरे पर BBC को एक इंटरव्यू देने के चलते उन्हें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने बैन कर दिया था!

लोगों का नेता

जब उन्होंने 1975-76 में पूर्णकालिक कप्तान के रूप में कार्यभार संभाला, तो वहां भी 'टाइगर' के प्रभाव दिख रहे थे. बेदी उनमें से थे जो हमेशा गेंदबाजी के लिए तैयार रहते थे. कप्तान के रूप में उन्होंने तीन साल में सिर्फ 22 टेस्ट मैचों में कप्तानी की, लेकिन उनके पास किस्से सबसे ज्यादा थे.

इसकी शुरुआत न्यूजीलैंड में हुई, लेकिन उनकी कप्तानी 1976 में वेस्ट इंडीज में सामने दिखी, जब बल्लेबाजी लाइन-अप को वेस्ट इंडीज के पेसर्स का खामियाजा भुगतना पड़ा. त्रिनिदाद में वेस्टइंडीज को भारत ने रिकॉर्ड 406 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए हरा दिया था. इसके बाद जमैका में उनके तेज गेंदबाजों ने जोरदार प्रहार किया, जिसके चलते भारत के पास कोई बल्लेबाज ही नहीं बचा, आधी टीम या तो घायल थी या अस्पताल में थी. बेदी ने इसके विरोध में और अपने स्पिनर्स को बचाने के लिए पारी ही घोषित कर दी.

उसी साल बाद में, उन्होंने इंग्लैंड के तेज गेंदबाज जॉन लीवर पर 1976-77 में भारत दौरे के दौरान गेंद को चमकाने के लिए वैसलीन का उपयोग करने का आरोप लगाया. बेदी को इस आरोप की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. भारत सीरीज हार गया, और बेदी को लगातार छह सालों के बाद अपने नॉर्थम्पटनशायर काउंटी क्रिकेट के कॉन्ट्रैक्ट से हाथ धोना पड़ा.
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कप्तान के रूप में उनकी सबसे प्रसिद्ध लड़ाई 1977-78 में ऑस्ट्रेलिया की B टीम के खिलाफ थी. भारत ने एक बार फिर 400 से अधिक का लक्ष्य लगभग हासिल कर लिया था. भारत ने उस सीरीज में दो बार बड़े लक्ष्य का पीछा करने का मौका गंवा दिया और अंततः 2-3 से हार हुई. तब इसे भारत के लिए ऑस्ट्रेलिया में सीरीज जीतने का एक चूका हुआ मौका माना गया था.

कप्तान के रूप में उनका अंतिम क्षण पाकिस्तान में आया. भारत को 14 गेंदों पर सिर्फ 23 रनों की जरूरत थी, तब बेदी ने सरफराज नवाज के बाउंसर्स के विरोध में, एकदिवसीय मैच हारना स्वीकार कर लिया. उन्हें ऐसा करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में जाना गया.

लेकिन बेदी के नेतृत्व ने छाप छोड़ी. कपिल देव जैसे किसी व्यक्ति ने बाद में लिखा कि कैसे बेदी की रैंक तोड़ने की क्षमता ने उन्हें युवाओं का प्रिय बना दिया. वह हमेशा ऐसा व्यक्ति थे जो लड़ाई के लिए तैयार रहते थे.

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गावस्कर के साथ व्यक्तित्व का टकराव

बिशन बेदी की कभी भी पीछे न हटने की प्रवृत्ति उनके खेल के दिनों में सबसे अधिक दिखाई देती थी. उन्हें दो बड़े लोगों का साथ कभी नहीं मिला और दोनों ही संयोग से मुंबई से थे- अजीत वाडेकर और सुनील गावस्कर. 1970 के दशक में, भारतीय क्रिकेट में संकीर्णतावाद अपने चरम पर था और इसलिए आप जहां से आए थे, वही खेल में आपकी जगह तय करता था. 1974 के इंग्लैंड दौरे पर बेदी की कप्तान वाडेकर से खुली असहमति थी.

बेदी और गावस्कर कई मुद्दों पर कभी आमने-सामने नहीं दिखे. उनके मन में एक-दूसरे की क्रिकेट क्षमताओं के प्रति बहुत सम्मान था, इतना कि बेदी ने ऑस्ट्रेलिया से अपनी पहली पत्नी से पैदा हुए अपने पहले बेटे का नाम गावसिंदर सिंह रखा.

लेकिन जैसा कि दो चैंपियन क्रिकेटरों के साथ होता है, उनके व्यक्तित्व अलग-अलग थे और इसलिए उनमें कभी मेल नहीं हुआ. जब गावस्कर ने 1979 में पूर्णकालिक आधार पर भारतीय कप्तान का पद संभाला तो बेदी के खेल के दिन समाप्त हो गए. बाद में, जब गावस्कर को बर्खास्त किया गया और कप्तान के रूप में फिर से बहाल किया गया, तो बेदी राष्ट्रीय चयनकर्ता थे. अंत में गावस्कर ने 1985 में कप्तान पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि चयन समिति में कुछ लोग उनके पीछे पड़े थे.

सालों बाद 2007 में, बेदी ने गावस्कर को भारतीय क्रिकेट पर 'विनाशकारी प्रभाव' कहा.

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बेदी ने आउटलुक को बताया, "क्रिकेट जगत में उनके प्रति (एक क्रिकेटर के रूप में) अपार और अंधा सम्मान था और उन्होंने इसका सफलतापूर्वक उपयोग ये सुनिश्चित करने के लिए किया कि बोर्ड अधिकारी उनसे डर के रहें."

उन्होंने आगे कहा, "वे ग्लैमर, पद चाहते हैं, और यदि कोई वित्तीय लाभ हो, तो और भी बेहतर... लेकिन वे कोई जवाबदेही नहीं चाहते. उन्हें हमेशा बिना जवाबदेही वाली सत्ता पसंद है."

बेदी ने कहा, "मेरे पास उनकी बल्लेबाजी के लिए बहुत सम्मान था लेकिन एक विचारक लीडर के रूप में कभी नहीं." उन्होंने कहा, "आप मुझे बताएं कि उनका योगदान क्या रहा है. वे विनाशकारी हैं, उनमें कुछ भी सकारात्मक नहीं है."

नई पीढ़ी के लिए नई भूमिका

यहां तक ​​कि जब 1980 के दशक की शुरुआत में उन्हें तदर्थ (एडहॉक) आधार पर क्रिकेट मैनेजर के रूप में बुलाया गया था, तब भी बेदी अपने इंटेंस फिटनेस सेशन के लिए जाने जाते थे. उन्होंने टीम की फिटनेस को बहुत ज्यादा महत्व दिया.

1990 में जब भारत फुल टाइम टीम कोच या क्रिकेट मैनेजर की तलाश में था तो बिशन सिंह बेदी पहली पसंद थे. भारत के युवा कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन और बेदी ने इसे तुरंत शुरू कर दिया. भारत ने न्यूजीलैंड के उस दौरे पर बेदी के मार्गदर्शन के लिए 1990 के दशक की एक युवा और अनुभवहीन 'टीम' चुनी थी. बेदी ने क्रिकेट प्रबंधक के रूप में भी तुरंत सुर्खियां बटोरीं. उस दौरे पर त्रिकोणीय श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक मैच में मामूली लक्ष्य का पीछा करते हुए टीम के हारने पर उन्होंने कह दिया कि वे पूरी टीम को प्रशांत महासागर में फेंक सकते हैं!

इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड दौरे से पहले वो ट्रेनिंग कैंप आयोजित किया जिसे आज भी सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग कैंप्स में से एक माना जाता है, इसके बाद उन्होंने फिटनेस पर पूरा ध्यान केंद्रित किया.

दौरे पर ही, बेदी ने पहले टेस्ट में लॉर्ड्स में घरेलू टीम को पहले बल्लेबाजी कराने के फैसले पर अजहर से खुले तौर पर असहमति जताई. 1990 का वो लॉर्ड्स टेस्ट अब इंग्लैंड के तत्कालीन कप्तान ग्राहम गूच के 333 रनों के लिए जाना जाता है. भारत टेस्ट और सीरीज 1-0 से हार गया. अजहर और बेदी के बीच बड़े पैमाने पर मनमुटाव हुआ, यहां तक ​​कि भारतीय कप्तान ने कहा कि टीम को किसी कोच या क्रिकेट मैनेजर की जरूरत नहीं है.

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पीछे हटने का सवाल नहीं

बेदी पंजाब, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर रणजी टीमों के कोच के रूप में फिर से उभरे. वे पंजाब के साथ सबसे सफल रहे क्योंकि उन्होंने 1992-93 में टीम को रणजी जीत दिलाई. तीनों राज्यों में एसोसिएशन के अधिकारियों के साथ उनकी कई बार झड़पें हुईं, ज्यादातर इसलिए क्योंकि वह मुखर थे.

वे श्रीलंकाई स्पिनर मुथैया मुरलीधरन के बारे में भी बेपरवाह थे और अक्सर उनके एक्शन पर टिप्पणी करते रहते थे. बेदी ने मुरली की तुलना भाला फेंकने वाले से की और कहा कि उनके सारे विकेट वास्तव में रन-आउट थे. इसपर मुरली ने कानूनी कार्रवाई की धमकी दी, लेकिन कभी उस पर अमल नहीं किया. लीगल गेंदबाजी एक्शन बेदी का सबसे खास टॉपिक था और वो इस मुद्दे को खेल को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा कारण मानते थे, यहां तक ​​कि मैच फिक्सिंग से भी बड़ा. यहां तक ​​कि उन्होंने हरभजन सिंह को भी उनकी इस हरकत के लिए आड़े हाथों लिया था.

दिल्ली और जिला क्रिकेट एसोसिएशन (DDCA) प्रशासन को साफ-सुथरा बनाने की उनकी लड़ाई बाद में उनके जीवन का लक्ष्य बन गई. यहां तक ​​कि वह DDCA के अध्यक्ष चुनाव में भी खड़े हुए, लेकिन निर्वाचित होने में असफल रहे.
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जब भी भारतीय क्रिकेट या पूरे खेल पर कोई संकट आता था, तो बेदी अक्सर असहमति और तर्क की आवाज बनकर सामने आते थे. वे हर काम करने के लिए तैयार थे और शायद यही उनका सबसे बड़ा कॉलिंग कार्ड था.

उनका जीवन बहुत अच्छे से बीता और ये हमारे समय के लिए एक उपहार है कि उन्होंने दुनिया भर के क्रिकेट मैदानों की शोभा बढ़ाई.

(चंद्रेश नारायणन टाइम्स ऑफ इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व क्रिकेट लेखक, ICC के पूर्व मीडिया अधिकारी और दिल्ली डेयरडेविल्स के वर्तमान मीडिया मैनेजर हैं. वे वर्ल्ड कप हीरोज के लेखक, क्रिकेट संपादकीय सलाहकार, प्रोफेसर और क्रिकेट टीवी कमेंटेटर भी हैं.)

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