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Happy B’day Kumble: दिल्ली से सिडनी तक,जिन बातों से कुंबले बने खास

अनिल कुंबले ने भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा 619 विकेट लिए हैं

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1990 के दशक में पैदा हुए ज्यादार बच्चों के लिए क्रिकेट से जुड़ाव का पहला कारण मोहल्ले और कॉलोनियों में खेलने वाले बड़े भैय्या लोग हुआ करते थे. उन्हीं के मुंह से सुने हुए कुछ बड़े नाम सबकी जुबान में चढ़ते गए. इनमें सबसे पहला नाम हुआ करता था- सचिन तेंदुलकर.

फिर एक और नाम खूब चर्चा में आया और वो था सौरव गांगुली का. वही गांगुली जिसने टॉन्टन में श्रीलंका के खिलाफ वर्ल्ड कप में खूब छक्के जड़े थे.

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लेकिन जब थोड़ा बड़े होते गए और खुद से टीवी पर क्रिकेट देखना, अखबार और क्रिकेट सम्राट मैगजीन में पढ़ना शुरू किया, तो अपनी समझ बढ़ती गई. इसी दौरान एक नाम और चेहरा सामने आया अनिल कुंबले का. एक सवाल उठने लगा कि ये नाम तो पहले कभी नहीं सुना, लेकिन देखने में तो बहुत पुराना लगता है.

फिर कुछ टेस्ट मैच देखे और समझ आया कि क्रिकेट में वो ही सब कुछ नहीं है, जो हमने सुना है. क्रिकेट उससे भी आगे और उससे बड़ा है.

सिर्फ 619 विकेट नहीं कुंबले की पहचान

अनिल कुंबले की पहचान सिर्फ ये नहीं है कि वो टेस्ट क्रिकेट में भारत के लिए सबसे ज्यादा विकेट (619, दुनिया में तीसरे नंबर पर) लेने वाले गेंदबाज हैं, बल्कि उससे भी बड़ी पहचान उनकी है एक गंभीर, जुझारू और सबसे बड़े मैच विनर की.

भारत ने क्रिकेट को कई बड़े सितारे दिए, जिन्होंने अपने खेल से और अपने रिकॉर्ड से न सिर्फ भारत का नाम रोशन किया, बल्कि खेल के रूप में क्रिकेट को चमकीला बनाया. आकर्षक बनाया. उम्मीद बनाया और ख्वाब बनाया.

लेकिन अक्सर इस चमक और स्टारडम का बड़ा हिस्सा बल्लेबाजों के खाते में ही रहा. वैसे तो क्रिकेट में स्थिति आज भी बहुत हद तक ऐसी ही है, लेकिन तब भारतीय क्रिकेट में बल्लेबाजों का ही ज्यादा बोलबाला था.

फिर आया वो गेंदबाज जिसने क्रिकेट में भारत को नई ऊर्जा दी. भारत को मैच जीतने की क्षमता दिलाई और मैच जिताए भी. अनिल कुंबले वो गेंदबाज थे, जो टेस्ट क्रिकेट में भारत के सबसे बड़े मैच विनर बन कर आए.

अपने करीब 18 साल के करियर में कुंबले ने कई शानदार मौके भारतीय क्रिकेट को दिए हैं, लेकिन मेरे लिए उनसे ये 3 बेहद खास हैं-

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कदमों में पाकिस्तान, 1999

पाकिस्तान, 1999 और कुंबले. इतना कहने भर से किसी भी क्रिकेट फैन (भारतीय) के चेहरे पर खुशी और हंसी दोनों आ जाएगी और फिर आगे कुछ बोलने की जरूरत नहीं है. फिर भी जिक्र करना जरूरी है.

चेन्नई टेस्ट में भारत को पाकिस्तान के हाथों बेहद नजदीकी हार का सामना करना पड़ा था. उसकी निराशा थी, लेकिन जल्द ही उसका बदला पूरा हुआ दिल्ली के ऐतिहासिक फिरोज शाह कोटला स्टेडियम (अब अरुण जेटली स्टेडियम) में.

कुंबले ने पहली पारी में तो 4 विकेट लेकर अपना इरादा जाहिर कर दिया था, लेकिन असली करिश्मा तो दूसरी पारी में होना था. भारत ने पाकिस्तान के सामने चौथी पारी में जीत के लिए 420 रन क लक्ष्य रखा.

लक्ष्य तो बड़ा था लेकिन पाकिस्तान ने अच्छी शुरुआत की. बस देर थी तो पहला विकेट गिरने की. 100 रन की ओपनिंग पार्टनरशिप को जब कुंबले ने तोड़ा तो भारत को न सिर्फ राहत मिली, बल्कि जीत का रास्ता खुल गया. इसके बाद तो स्कोरबोर्ड पर हर पाकिस्तानी बल्लेबाज के नाम के आगे लगातार एक नाम चिपकता रहा- अनिल कुंबले.

207 के स्कोर पर जैसे ही श़ॉर्ट लेग पर अनिल कुंबले ने वसीम अकरम का कैच पकड़ा, भारत ने सिर्फ मैच नहीं जीता, बल्कि अनिल कुंबले ने इतिहास बना दिया. कुंबले जिम लेकर के बाद एक पारी में 10 विकेट लेने वाले सिर्फ दूसरे गेंदबाज बन गए. ये कारनामा इसके बाद भी नहीं दोहराया जा सका.

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सिर्फ जबड़ा टूटा, जज्बा नहीं

2002 का वेस्टइंडीज दौरा भारत के लिए कुछ खास रहा. भारत ने मजबूत वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट सीरीज 1-1 से से ड्रॉ की. लेकिन इस सीरीज को याद करने का एक और बड़ा कारण अनिल कुंबले हैं.

अनिल कुंबले ने भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा 619 विकेट लिए हैं
चेहरे पर पट्टी बांधे हुए कुंबले को गेंदबाजी करता देख सब हैरान थे
(फोटोः AP)

अनिल कुंबले उस सीरीज में विकेटों के मामले में ज्यादा सफलता हासिल नहीं कर सके थे, लेकिन उनके जुझारू रवैये ने एक छाप क्रिकेट फैंस के दिलों में छोड़ दी.

एंटीगुआ में सीरीज के चौथे टेस्ट में पहले बल्लेबाजी कर रही भारतीय टीम ने 500 से ज्यादा रन स्कोरबोर्ड पर टांगे. इस दौरान वीवीएस लक्ष्मण और अजय रात्रा ने बेहतरीन शतक लगाए. इसी बीच वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज मर्वन डिलन की गेंद कुंबले के जबड़े में लगी और खून बह पड़ा.

काफी देर तक खेल रुका रहा. हालांकि कुंबले बाहर नहीं गए और उनके चेहरे पर पट्टी लगाई गई. कुंबले कुछ देर और क्रीज पर रहे. लेकिन कुंबले का असली रूप अभी दिखना बाकी था. कुंबले सिर्फ टेस्ट की सफेद जर्सी ही नहीं पहने हुए थे, बल्कि चेहरे पर भी सफेद पट्टी बंधी हुई थी.

ये देखकर हर कोई हैरान था. कुंबले की फाइटिंग स्पिरिट ने सबको चौंका दिया था. निश्चित तौर पर वेस्टइंडीज के बल्लेबाजों के लिए भी ये अद्भुत नजारा रहा होगा. कुंबले ने एक के बाद एक 15 ओवर डाले. ऐसे जज्बे का ईनाम मिलना जरूरी था और कुंबले वेस्टइंडीज के सबसे बड़े बल्लेबाज ब्रायन लारा को सिर्फ 4 रन पर आउट कर दिया. वो भी अपने टिपिकल LBW से.

कुंबले की वो तस्वीर आज भी क्रिकेट फैंस के जहन में बिल्कुल ताजा रहती है. इसके बाद कुंबले वापस देश लौटे और सर्जरी कराई.

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कुंबले- गेंदबाज, नहीं बल्कि कप्तान

अपने लंबे करियर में कुंबले को टीम इंडिया की कप्तानी का मौका नहीं मिला. करियर के आखिरी पड़ाव पर उनको ये जिम्मेदारी दी गई, क्योंकि 2007 वर्ल्ड कप में शर्मनाक हार के बाद राहुल द्रविड़ ने कप्तानी छोड़ दी थी. धोनी अभी टेस्ट कप्तानी के लिए बिल्कुल नए थे.

ऐसे में टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में से कुंबले ही थे जो इसके लिए तैयार हुए. कुंबले ने एक साल तक टीम की कप्तानी की और 2008 में कप्तानी के साथ ही अपना करियर खत्म किया. बतौर कप्तान कुंबले को ज्यादा सफलता नहीं मिली और टीम 14 में से सिर्फ 3 टेस्ट ही जीत पाई. इसके बावजूद एक सीरीज जिसमें कुंबले की कप्तानी का सबसे बड़ा पहलू दिखा.

2007-08 का ऑस्ट्रेलिया दौरा भारतीय क्रिकेट के सबसे विवादित दौरों में से है. हरभजन का ‘मंकी गेट’ कांड और खराब अंपायरिंग, ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की ‘बेईमानी’. लेकिन इस पूरे दौरे में कुंबले ने सही मायनों में लीडरशिप दिखाई. सिडनी के बवालिया टेस्ट के बाद कुंबले ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा भी था- “सबने देखा कि ग्राउंड पर सिर्फ एक टीम ने सही स्पिरिट में गेम खेला.”

इससे भी खास था कुंबले का एक फैसला. उस सीरीज से पहले करीब साल भर तक टीम के ओपनर वीरेंद्र सहवाग खराब फॉर्म से गुजर रहे थे. उन्हें टीम से ड्रॉप कर दिया गया था. इसके बावजूद कुंबले के जोर देने के कारण ही सहवाग को इस दौरे के लिए टीम में शामिल किया गया.

सहवाग को पहले 2 टेस्ट मैच में टीम में जगह नहीं मिली. भारत वो दोनों टेस्ट हार गया. इसके बाद आखिर सहवाग की वापसी हुई. पर्थ में हुए तीसरे टेस्ट में सहवाग ने अपने अंदाज में वापसी की और तेजी से रन बनाने शुरू किए. नतीजा भारत को बेहतरीन शुरुआत मिली. ऑस्ट्रेलिया की सबसे मुश्किल पिच पर भारत ने शानदार जीत दर्ज की.

एडीलेड में हुए चौथे टेस्ट में सहवाग ने शानदान 150 रन बनाए और वो टेस्ट ड्रॉ हुआ. यानी कुंबले के एक फैसले ने सीरीज का रुख बदल दिया. इस सीरीज के बाद सहवाद का करियर भी पटरी पर लौट आया और उन्होंने कई शतक जड़े और करीब 6 साल और क्रिकेट खेला.

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