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IND vs PAK:क्या एक बार फिर क्रिकेट से जुड़ेंगे दोनों देशों के दिल?

इतिहास के पन्नों से भारत-पाकिस्तान क्रिकेट और राजनीति के कनेक्शन पर एक नजर 

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ICC वर्ल्ड कप 2019 में 16 जून को भारत और पाकिस्तान की टीमें आमने-सामने होंगी. इस हाईवोल्टेज मुकाबले के लिए फैंस का रोमांच ‘पीक’ पर है. हालांकि पुलवामा अटैक के बाद इस मैच के बहिष्कार की भी मांग उठी थी. बड़ी तादाद में लोगों का मानना था कि आतंकी हमलों के बाद पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह के रिश्ते नहीं रखने चाहिए. मगर बहुत से लोग ऐसे भी थे, जो चाहते थे कि भारतीय टीम पाकिस्तान के खिलाफ मैदान में उतरे और उसे हराए.

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भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट चाहे-अनचाहे हमेशा से राजनीति का हिस्सा रहा है. दोनों देशों के बनते बिगड़ते रिश्तों में क्रिकेट ने कई बार ‘ब्रिज’ का काम किया है.

पिछले एक दशक में दोनों देशों की क्रिकेट का स्तर बड़ी तेजी से बदला है. भारतीय टीम लगातार मजबूत होती चली गई, जबकि पाकिस्तानी क्रिकेट का स्तर कमजोर हुआ है. पाकिस्तान की टीम आज ‘फाइटिंग स्पिरिट’ वाली टीम तो है, लेकिन अब उसके पास उस स्तर के खिलाड़ियों की कमी है जो एक समय विश्व क्रिकेट में बड़ा नाम हुआ करते थे.

श्रीलंका की टीम पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान में क्रिकेट की स्थिति बद से बदतर होती चली गई. कई एशियाई टीमों तक ने भी पाकिस्तान का दौरा करने से इनकार कर दिया.

पाकिस्तान की सत्ता इमरान खान के हाथ में आने के बाद ऐसा लगा था कि शायद भारत-पाकिस्तान क्रिकेट रिश्तों की बहाली के लिए वह कुछ कारगर कदम उठाएंगे. मगर उनके सामने अभी कई बड़ी चुनौतियां हैं. इस बीच स्थिति लगभग वैसी ही हो गई है जो 2004 में थी, जब 14 साल बाद भारतीय टीम ने पाकिस्तान दौरे के लिए हामी भरी थी. उस वक्त भी वो क्रिकेट डिप्लोमेसी का एक हिस्सा था.

याद कीजिए, 2004 में भारतीय टीम का पाकिस्तान दौरा इतना आसान नहीं था. दौरे की बातें शुरू होने से लेकर दौरे के खत्म होने तक दोनों देशों के राजनयिकों और ब्यूरोक्रेट्स की साख दांव पर थीं. ये सीरीज लंबे समय से दोनों देशों के बीच तल्ख हुए रिश्तों को सुधारने की कोशिश में खेली जा रही थी. सीरीज का नाम रखा गया था- फ्रेंडशिप सीरीज. दोनों ही मुल्कों में इस सीरीज को लेकर बंद कमरों में तमाम बैठकें हुईं थीं. कई बड़े अधिकारियों के दौरे हुए थे.

उस वक्त विरोध-प्रदर्शनों के बीच सुरक्षा अधिकारियों की तो रातों की नींद ही गायब हो गई होगी. इस सबके बावजूद 14 साल बाद भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान पहुंची थी. उस टीम में सचिन तेंडुलकर, वीरेंद्र सहवाग, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़, अनिल कुबंले और वीवीएस लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी शामिल थे. सितारों से सजी इस टीम के आसपास भी अगर कोई अप्रिय घटना घट जाती तो पता नहीं क्या होता. ये क्रिकेट डिप्लोमेसी थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भी चाहते थे कि क्रिकेट खेला जाए और क्रिकेट देखा जाए.

इतिहास के पन्नों से भारत-पाकिस्तान क्रिकेट और राजनीति के कनेक्शन पर एक नजर 
आगरा समिट से पहले वाजपेयी और मुशर्रफ
(फोटो: पीटीआई) 
भारत-पाकिस्तान क्रिकेट इतिहास के पन्नों को पलटने पर पता चलता है कि 1987 में जनरल जियाउल हक का लाव-लश्कर भी भारत आया था. जयपुर के सवाई मान सिंह स्टेडियम में कपिल देव और इमरान खान की टीमों के बीच क्रिकेट खेला जा रहा था. इसी दौरान राजीव गांधी और जनरल जिया ने मुलाकात की थी. 

मुलाकात हुई तो बातचीत हुई, कई गलतफहमियां दूर हुईं. इसका नतीजा दोनों मुल्कों के लिए अच्छी खबर लेकर आया. सीमा पर अमन लौट आया.  रिश्ते अभी सुधरने शुरू ही हुए थे कि 1992 में अयोध्या में विवादास्पद ढांचे के तोड़े जाने और 1993 में मुंबई में हुए सीरीयल धमाकों ने रिश्तों में फिर से खटास पैदा कर दी.

1997 में भारतीय टीम पाकिस्तान गई, लेकिन सिर्फ वनडे सीरीज खेलने के लिए. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर गए, नवाज शरीफ से मिले. रिश्तों में सुधार को लेकर काफी संजीदा बातचीत हुई और बातचीत से ज्यादा कुछ ठोस करने का मन बनाया गया. वो तस्वीरें पूरे देश ने ना जाने कितनी बार टीवी पर देखीं, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने नवाज शरीफ को अपनी तरफ लगभग खींचते हुए गले लगा लिया था.

1999 में ही तमाम विरोधों के बावजूद पाकिस्तान की टीम करीब 12 साल बाद भारत के दौरे पर आई. 2001 में परवेज मुशर्रफ संगमरमर की अनूठी इमारत और दुनिया के अजूबों में से एक ताजमहल के शहर आगरा आए थे, अच्छे माहौल में तमाम मुद्दों को लेकर बातचीत होनी थी. बातचीत हुई थी, लेकिन कश्मीर को लेकर मुद्दा अटक गया. बातचीत फेल हो गई. मुशर्रफ लौट गए. हालांकि कोशिशें फिर भी जारी रहीं. 2003 में लाइन ऑफ कंट्रोल पर सीजफायर का ऐलान किया गया. इसी के बाद फिर से रिश्ते सुधारने की कोशिशें शुरू हुईं. आखिरकार 2004 में भारतीय टीम के पाकिस्तान दौरे को गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से हरी झंडी मिल गई. तमाम भारतीय राजनयिक और फिल्म स्टार्स पाकिस्तान मैच देखने गए. दोनों देशों के क्रिकेट प्रेमी आपस में मिले. जाने कितने घरों में होली-दीवाली और ईद जैसा माहौल देखने को मिला. ऐसा लगा जैसे दो बिछड़े भाई आपस में मिल गए हों.

जवाब में 2005 में पाकिस्तान की टीम भारत आई. उसका गर्मजोशी के साथ स्वागत हुआ. अच्छी क्रिकेट देखने को मिली. तब देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे. देखा जाए तो मनमोहन सिंह ना तो नेता थे, ना ही कूटनीतिज्ञ. पिछले तमाम प्रधानमंत्रियों की लीक से अलग हटकर उन्होंने पाकिस्तान के साथ कोई शिखर वार्ता नहीं की. कोई गोलमेज सम्मेलन भी नहीं किया लेकिन 2005 में पाकिस्तान की टीम भारत आई तो मनमोहन सिंह ने हवा में ऐसी गेंद उछाली कि कैच लपकने की ललक में मुशर्रफ पहुंच गए इस्लामाबाद से सीधे दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम. क्रिकेट का ये सिलसिला 2006 में भी कायम रहा. फिर मुंबई में आतंकवादी हमला हुआ, दोनों देशों के क्रिकेट से जुड़े रिश्ते लगभग टूट ही गए.

इतिहास के पन्नों से भारत-पाकिस्तान क्रिकेट और राजनीति के कनेक्शन पर एक नजर 
2011 वर्ल्ड कप में भारत-पाकिस्तान का मैच देखते गिलानी और मनमोहन
(फोटो: AP) 

हालांकि भारत और पाकिस्तान जब 2011 वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में मोहाली में आमने-सामने थे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ-साथ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी भी मैच देखने पहुंचे थे.

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