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भारत-न्यूजीलैंड सेमीफाइनल: स्टेडियम में घुसा खालिस्तान समर्थक

भारत-न्यूजीलैंड वर्ल्डकप मैच के दौरान फिर एक खालिस्तान समर्थक स्टेडियम में देखा गया.

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भारत-न्यूजीलैंड वर्ल्डकप मैच के दौरान फिर एक खालिस्तान समर्थक स्टेडियम में देखा गया. मैनचेस्टर में चल रहे मैच के दौरान दर्शकों के बीच एक खालिस्तान समर्थक भी घुस आया. उसकी टीशर्ट पर भी पंजाब को लेकर आपत्तिजनक चीजें लिखी हुई थीं. हालांकि, मैच के शुरुआत में ही ब्रिटेन पुलिस की नजर में आ गया और उसे हिरासत में ले लिया गया.

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भारत-न्यूजीलैंड वर्ल्डकप मैच के दौरान फिर एक खालिस्तान समर्थक स्टेडियम में देखा गया.
खालिस्तानी समर्थक को गिरफ्तार कर ले जाती ब्रिटेन पुलिस
(फोटो: AP)

इस वर्ल्ड कप के कई मैचों के दौरान खालिस्तान समर्थक हंगामा करते दिखे. पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच खेले गए वर्ल्ड कप मुकाबले में स्टैंड्स में कुछ लोग खालिस्तान और पाकिस्तान का झंडा लेकर नारेबाजी करते भी दिखे थे.

सोशल मीडिया पर भी ऐसे कई वीडियो वायरल हुए थे जिनमें वर्ल्ड कप मैच के दौरान पाकिस्तानियों के साथ मिलकर खालिस्तान समर्थक सिख नारे लगा रहे हैं.

जब पाकिस्तानियों के साथ खालिस्तानियों ने लगाए नारे

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच खेले गए वर्ल्ड कप मुकाबले में स्टैंड्स में कुछ लोग खालिस्तान और पाकिस्तान का झंडा लेकर नारेबाजी कर रहे थे. एक वीडियो जो सबसे ज्यादा वायरल हुआ उसमें एक महिला ने दावा किया था कि वो अहमदाबाद से है.

इस वीडियो में सिख समुदाय के लोग ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ और ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे हैं. इस वीडियो के वायरल होने के बाद अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच इस महिला की जानकारी इकट्ठा कर रही है.

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क्या है खालिस्तान मूवमेंट?

पंजाबी भाषी लोगों के लिए एक अलग राज्य की मांग की शुरुआत पंजाबी सूबा आंदोलन से हुई थी. कह सकते हैं कि ये पहला मौका था जब पंजाब को भाषा के आधार पर अलग दिखाने की कोशिश हुई. अकाली दल का जन्म हुआ और कुछ ही वक्त में इस पार्टी ने बेशुमार लोकप्रियता हासिल कर ली. अलग पंजाब के लिए जबरदस्त प्रदर्शन शुरू हुए और अंत में 1966 में ये मांग मान ली गई. भाषा के आधार पर पंजाब, हरियाणा और केंद्र शाषित प्रदेश चंडीगढ़ की स्थापना हुई.

'खालिस्तान' के तौर पर स्वायत्त राज्य की मांग ने 1980 के दशक में जोर पकड़ा. धीरे-धीरे ये मांग बढ़ने लगी और इसे खालिस्तान आंदोलन का नाम दिया गया. अकाली दल के कमजोर पड़ने और 'दमदमी टकसाल' के जरनैल सिंह भिंडरावाला की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही ये आंदोलन हिंसक होता गया.

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