इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच हुए आईसीसी वर्ल्ड कप 2019 के फाइनल ने कई चर्चाओं को शुरू कर दिया है. क्रिकेट इतिहास के सबसे रोमांचक मैच में से एक इस फाइनल ने हालांकि कुछ ऐसे विवादों को भी जन्म दिया है. जिस वजह से इंग्लैंड को चैंपियन घोषित किया गया, उसी पर सवाल उठ रहे हैं.
इनमें से ही एक है मैच का सबसे अहम टर्निंग प्वाइंट, जिसने इंग्लैंड की इस फाइनल में वापसी कराई और इसे टाई तक ले जाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई.
50वें ओवर की चौथी गेंद पर इंग्लैंड को जीत के लिए 9 रन की जरूरत थी. इसी वक्त बेन स्टोक्स ने ट्रेंट बोल्ट की गेंद को डीप मिडविकेट की ओर मारा और रन के लिए दौड़ पड़े.
जब स्टोक्स दूसरे रन के लिए लौटे तो डीप मिडविकेट से मार्टिन गप्टिल ने गेंद को सीधा विकेटकीपर की ओर फेंका. स्टोक्स ने उसी दौरान क्रीज पर पहुंचने के लिए डाइव लगाते हुए बल्ला आगे बढ़ाया. गप्टिल का थ्रो स्टोक्स के बैट से टकराकर विकेटकीपर के पीछे बाउंड्री के पार चला गया. इस तरह इंग्लैंड को 6 रन मिल गए.
इन 6 रनों के साथ जीत का अंतर घट कर 2 गेंद में 3 रन रह गया. हालांकि बोल्ट ने अगली 2 गेंद पर सिर्फ 2 रन दिए, लेकिन मैच टाई हो गया और फिर सुपर ओवर में फैसला हुआ.
यहां पर आईसीसी की प्लेइंग कंडीशंस या कहें खेल के नियमों के 2 सबसे खास प्वाइंट सामने आते हैं.
इसमें सबसे पहले बात प्लेइंग कंडीशंस की क्लॉज 37 की, जो खेल में रुकावट पहुंचाने से जुड़ा नियम बयां करती है.
- 37.1 के तहत, ‘अगर कोई बल्लेबाज खुद को बचाने के लिए अपने बैट, हाथ या किसी और तरह से जानबूझकर फील्डिंग में रुकावट पैदा करता है, तो उसे आउट करार दिया जाएगा.’
- वहीं इस क्लॉज का प्वाइंट 37.2 कहता है कि, ‘किसी बल्लेबाज को उस स्थिति में फील्डिंग में रुकावट डालने का दोषी नहीं माना जा सकता, अगर बल्लेबाज ने जानबूझकर रुकावट पैदा करने की कोशिश न की हो. उस स्थिति में अगर कोई रन मिलता है, तो बल्लेबाज के खाते में जाएगा.’
अब फाइनल में हुई इस घटना पर नजर डालें, तो दिखेगा कि गप्टिल का थ्रो सीधे विकेटकीपर के पास जा रहा था, लेकिन स्टोक्स के बल्ले से उसमें रुकावट पैदा हुई और वो विकेटकीपर के पास नहीं पहुंच पाया.
लेकिन अगर ध्यान से देखें तो इस मामले में स्थिति क्लॉज 37.2 वाली थी. स्टोक्स ने न तो रन लेते हुए अपनी लाइन बदली और न ही गेंद को देखते हुए अपना बैट अड़ाया. यानी स्टोक्स ने जानबूझकर फील्ड के दौरान किसी तरह की कोई रुकावट पैदा नहीं की और इसलिए वो आउट नहीं हुए.
बहरहाल, जो असल विवाद उठा है, वो स्टोक्स के बल्ले से लगकर मिले अतिरिक्त 4 रन पर है. क्या ये सही फैसला था या अंपायर कुछ गलती कर गए? इसके लिए फिर से प्लेइंग कंडीशंस को समझना होगा.
क्रिकेट के नियम बनाने वाली संस्था ‘मेरिलबोन क्रिकेट क्लब’ (एमसीसी) के बनाए नियमों की क्लॉज 19.8 में इस तरह के स्थिति का जिक्र है-
नियम के मुताबिक
यदि ओवर थ्रो के बाद गेंद बाउंड्री के पार जाती है, तो पेनाल्टी के रन में बल्लेबाजों द्वारा पूरे किए गए रन भी जुड़ते हैं. यदि बल्लेबाज रन के लिए लिए दौड़ रहे हैं, तब यह देखा जाता है कि फील्डर की गेंद थ्रो करने के समय दोनों बल्लेबाज क्रॉस हुए या नहीं. इसी को देखकर कुल रन जोड़ टीम को दिए जाते हैं.
अगर 50वें ओवर में हुई उस घटना को दोबारा देखें, तो साफ दिखता है कि जब मार्टिन गप्टिल ने गेंद को विकेटकीपर की ओर फेंका, तो उस वक्त तक स्टोक्स और आदिल रशीद ने सिर्फ एक रन पूरा किया था, लेकिन दूसरे रन के दौरान क्रॉस नहीं किया था.
ऐसे में नियम के हवाले से देखें, तो इंग्लैंड को सिर्फ 5 रन दिए जाने चाहिए थे. 4 रन ओवरथ्रो पर बाउंड्री के और 1 रन जो दौड़कर पूरा किया था. दूसरे रन की कोशिश के लिए कोई रन नहीं मिलना चाहिए था.
अगर ऐसा होता तो, स्थिति कुछ यूं बनती-
- इंग्लैंड को सिर्फ 5 रन मिलते और फिर आखिरी 2 गेंद पर 4 रन की जरूरत होती.
- क्योंकि दूसरा रन पूरा नहीं हुआ था, इसलिए स्टोक्स के बजाए आदिल रशीद स्ट्राइक पर आते. ऐसे में रशीद के लिए 4 रन बनाना आसान नहीं होता.
‘ये फैसला लेने में की गई गलती थी’
क्रिकेट इतिहास के सबसे बेहतरीन और सम्मानित अंपायरों में से एक पूर्व अंपायर साइमन टॉफेल ने मैच के बाद फॉक्स स्पोर्ट्स से बात करते हुए इसके बारे में अपनी राय रखी.
टॉफेल ने कहा-
“यह एक गलती है. निर्णय लेने में गलती की गई. इंग्लैंड को छह की जगह केवल पांच रन दिए जाने चाहिए थे.”
टॉफेल फिलहाल, एमसीसी की नियम उप-समिति का हिस्सा हैं जो क्रिकेट को नियंत्रित करने वाले नियमों को बनाती है. टॉफेल को लगातार 5 साल आईसीसी अंपायर ऑफ द ईयर का खिताब मिला था.
हालांकि टॉफेल ने फाइनल के दौरान मैदान पर मौजूद अंपायरों को दोषी मानने से इंकार कर दिया. दोनों अंपायरों का बचाव करते हुए उन्होंने कहा,
“उस माहौल में अंपायरों ने सोचा कि बल्लेबाज थ्रो के समय क्रॉस कर गए हैं. जाहिर तौर पर टीवी रिप्ले में कुछ और दिखा. यहां दिक्कत यह है कि अंपायरों को सबसे पहले बल्लेबाजों को रन पूरा करते हुए देखना होता है और फिर उन्हें अपना ध्यान फील्डर पर लगाना होता है जो गेंद को उठाकर रिलीज करने वाला होता है. आपको देखना होता है कि उस वक्त बल्लेबाज कहां है.”सामइन टॉफेल, पूर्व अंपायर
टॉफेल ने साथ ही कहा कि इस फैसले का मैच के नतीजे पर असर हुआ, ये कहना सही नहीं होगा - "यह कहना सही नहीं होगा कि उस एक घटना की वजह से मैच का निर्णय निकला."
50 ओवर के क्रिकेट के इतिहास में ये पहला मौका था जब किसी मैच का फैसला करने के लिए सुपर ओवर का सहारा लिया गया हो. हालांकि सुपर ओवर भी कोई नतीजा नहीं दे पाया क्योंकि इसमें भी दोनों टीमों के स्कोर बराबर थे.
आखिरकार इंग्लैंड को पूरे मैच में सबसे ज्यादा बाउंड्री स्कोर करने के कारण विजेता घोषित किया गया. हालांकि इस नियम पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं और रोहित शर्मा, गौतम गंभीर समते कुछ क्रिकेटरों ने इन नियमों को बदलने जाने की मांग की है.
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