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गौतम गंभीर जैसे दिखते हैं, उससे काफी अलग हैं

शतक बनाने के बावजूद उन्हें दंड मिला. उसने टीम में सबसे ज्यादा रन बनाए थे और उसके बाद भी उन्हें सज़ा दी जा रही थी.

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2000 से पहले की बात है. युवा गंभीर दिल्ली की ओर से हरियाणा के खिलाफ मैच खेल रहे थे. सख्ती और अनुशासन के लिए मशहूर बिशन सिंह बेदी टीम के कोच थे. पहली पारी में गम्भीर को छोड़कर दिल्ली का कोई भी बल्लेबाज सहज नहीं दिखा. उन्होंने शतक बना लिए, लेकिन शतक बनते ही उनका ध्यान भंग हुआ और उन्होंने अपने विकेट गंवा दिए. उनका विकेट गिरते ही पूरा बैटिंग ऑर्डर ढेर हो गया.

बेदी उनके आउट होने पर बहुत गुस्से में थे और उन्होंने अपनी भावनाएं छिपाई भी नहीं. उनका मानना था कि गौतम को और अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी और शतक बनाने के बाद लम्बे समय तक क्रीज पर टिके रहना चाहिए था. शतक बनाने के बावजूद उन्हें दंड मिला. उन्हें मैदान के पांच से 10 चक्कर लगाने पड़े. निराश और शर्मिंदगी से वह अंदर बैठा हुआ था. आखिरकार उसने टीम में सबसे ज्यादा रन बनाए थे और उसके बाद भी उन्हें सजा दी जा रही थी.

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मगर, गौतम जिस एकमात्र तरीके से जवाब देना जानते थे, उसी तरीके से जवाब दिया. दूसरी पारी में उन्होंने अपनी टीम को जीत दिलाने के लिए एक कठिन पिच पर मैच जिताऊ पारी खेलकर अपने गुस्से का इजहार किया.

मैदान पर ऐसे हैं गौतम, जिन्हें मैं जानता हूं. उग्र, बागी और गम्भीर.

वे उन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों में से हैं, जिन्हें घरेलू क्रिकेट के लिए ललक है और दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते. इतना ही कहना पर्याप्त है कि क्रिकेट में उनका आखिरी पेशेवर रूप इस हफ्ते के अंत में आन्ध्र प्रदेश के ख़िलाफ़ रणजी ट्रॉफी में दिखेगा.

गौतम ने भारतीय क्रिकेट की सेवा पूरे जुनून और प्रतिबद्धता के साथ की है. उनका सबसे बड़ा योगदान उन मैचों में देखने को मिला, जो सबसे अधिक महत्व रखते थे. विश्वकप के दो फाइनल मैचों में भारत की जीत में उनका योगदान बहुत अहम था.

लोग आज भी उस 97 रन की पारी की चर्चा करते हैं जो 2011 के आईसीसी वर्ल्ड कप के फाइनल में उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ बनाए थे, लेकिन वे स्वयं कभी इस बात की चर्चा नहीं करते. और अगर आप शतक चूकने की बाबत उनसे पूछें भी, तो वे असहज हो जाते हैं. उनके लिए 3 रन से शतक चूकने के पछतावे से ज्यादा विश्वकप में जीत की खुशी महत्वपूर्ण थी.

विश्वकप के तुरंत बाद एक बार उन्होंने मुझसे मजाक में कहा, “मैं ठीक हूं 97 के साथ, दुनिया 3 रनों के लिए उदास है.”

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मैं गौतम को उन दिनों से जानता हूं जब उन्होंने दिल्ली के लिए खेलना शुरू किया था. क्रिकेट में कदम रखने वाले धनी बिजनेसमैन के बेटे की कई कहानियां थीं. क्रिकेट की कहानियां अक्सर गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले युवाओं से भरी रहती हैं और वे अपने सपने को पूरा करने के लिए सबकुछ दांव पर लगा देते हैं. लेकिन, एक बालक जिसके पास सभी सुविधाएं और वो चीजें थीं जो किसी बच्चे का ध्यान भटकाती हैं!

लेकिन उनका जुनून एक अलग स्तर का था. क्रिकेट में सभी समृद्ध बच्चों की तरह उन्हें भी अपने परिवार से सुनना पड़ा : “क्या यह इसके लायक है?” वे मैदान पर और भी प्रतिबद्ध और उत्सुक होकर आए.

घरेलू क्रिकेट और अंतरराष्ट्रीय टीम के लिए उन्होंने बहुत कुछ खोया, लेकिन कभी आशा नहीं खोयी. हमेशा मजबूत और बेहतर होकर सामने आए. अपने दिल्ली के साथी वीरेन्द्र सहवाग के साथ उन्होंने भारत को टेस्ट क्रिकेट के शिखर तक पहुंचाने में मदद की. ये दोनों अपने समय के अति सफल सलामी बल्लेबाज थे. सहवाग की चकाचौंध में ये जरूर छिप गया कि गौतम कितने आक्रामक थे. लेकिन, यह वास्तव में उनकी तारीफ है.

शतक बनाने के बावजूद उन्हें दंड मिला. उसने टीम में सबसे ज्यादा रन बनाए थे और उसके बाद भी उन्हें सज़ा दी जा रही थी.
गौतम या गौती को मैदान पर हम जैसा देखते हैं या सोशल मीडिया में वे इन दिनों जैसे हैं, उससे वास्तव में वे बहुत अलग हैं जहां तक मैं व्यक्तिगत तौर पर उनको जानता हूं
(तस्वीर: रॉयटर्स) 
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गौतम या गौती को मैदान पर हम जैसा देखते हैं या सोशल मीडिया में वे इन दिनों जैसे हैं, उससे वास्तव में वे बहुत अलग हैं, जहां तक मैं व्यक्तिगत तौर पर उनको जानता हूं. मैंने हमेशा उनको व्यक्तिगत मामलों में बहुत ही विनम्र और मित्रवत पाया है.

करोलबाग में उनकी दादी के घर उनके इंटरव्यू के लिए जाने पर आम तौर पर बहुत अधिक समय तक वहां रहना होता था. यह तय था कि इंटरव्यू खत्म होने के बाद गौतम चिट-चैट में शरीक होंगे. दुनिया में हो रही घटनाओं के बारे में जानना वे बहुत पसंद किया करते थे. इस बीच उनकी दादी खाने लेकर या करोलबाग के स्नैक्स लेकर आतीं.

दफ्तर से कॉल आने और इंटरव्यू के फीड पास के ओबी वैन से भेजने की याद दिलाए जाने तक घंटों बीत जाते. उनके साथ रहते हुए मुद्दा केवल यही था कि उनके रूम की कड़क ठंड को बर्दाश्त करना होता था. गौतम के एसी रूम का तापमान हमेशा 16 डिग्री पर होता और इससे इतनी ठंड हो जाती थी कि युवराज ने एक बार कहा था, “जब तुम गौती के रूम जा रहे हो, कृपया अपना कम्बल अपने साथ रख लेना.”

अपने खेल की तरह वे अपने व्यक्तित्व में भी सच्चे रहे. बिना दिखावे और शोर-शराबे के वे कई चीजें किया करते. वर्तमान में वे शहीद भारतीय सैनिकों के 52 बच्चों को शिक्षा और वित्तीय मदद उपलब्ध कराते हैं और शायद ही कभी इस बारे में बात करते हों.

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गम्भीर की दूसरी पारी पहले ही शुरू हो चुकी है. वे दो प्यारी बच्चियों के पिता हैं. उनसे बहुत प्यार करते हैं और अक्सर उनकी चिन्ता करते हैं. और, यही गौतम गम्भीर आपके लिए हैं. अगर वो किसी चीज से प्यार करते हैं, तो उसका पूरा खयाल करते हैं और जी-जान से खयाल करते हैं.

यही वजह है कि जिन्दगी की दूसरी पारी भी पहले से अलग नहीं होगी. वह जो कुछ भी करेंगे, वह अपना श्रेष्ठ देंगे. यह राजनीति हो सकती है या फिर परिवार का बिजनेस, कमेंट्री, कोचिंग. और आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए, अगर वे दिल्ली के लिए रणजी मैच खेलते हुए दिख जाएं.

(निशांत अरोड़ा अवॉर्ड विजेता क्रिकेट जर्नलिस्‍ट हैं. हाल में इंडियन क्रिकेट टीम के मीडिया मैनेजर बने हैं. युवराज की किताब ‘बैट्ल विद कैंसर’ के भी वे सह-लेखक हैं.)

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