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धोनी के गायब होने का सस्पेंस और BCCI में सुपर स्टार कल्चर

‘खास खिलाड़ियों’ के लिए अलग नियम?

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(ये आर्टिकल महेंद्र सिंह धोनी को BCCI की कॉन्ट्रैक्ट लिस्ट से बाहर करने से पहले लिखा गया है.)

पिछले कुछ महीनों में तीन क्रिकेटर- जसप्रीत बुमराह, हार्दिक पांड्या और एमएस धोनी विवादों में रहे हैं. खिलाड़ियों को अपना फिटनेस साबित करने के लिए बीसीसीआई के ट्रेनर/फीजियो कैंप में ट्रेनिंग लेनी थी. लेकिन बुमराह और हार्दिक ने कैंप में शामिल होने से इंकार कर दिया. उधर एमएस धोनी अपनी मर्जी से भारतीय क्रिकेट टीम से नदारद हैं.

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हैरत की बात है कि BCCI तीनों खिलाड़ियों को ऊंची कीमत देता है और वो सेंट्रली कॉन्ट्रैक्ट खिलाड़ी हैं. लेकिन अनुबंध की शर्तों का शायद ही पालन हो रहा है. BCCI तीनों खिलाड़ियों के मुद्दों पर लगातार चुप्पी साधे हुए है.

‘खास खिलाड़ियों’ के लिए अलग नियम?
चोट से उबरने के बाद जसप्रीत बुमराह जनवरी में ही भारतीय टीम में शामिल हुए हैं. 
(फोटो: एपी)

चोट की टीस

चोट से उबरने के बाद बुमराह भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बन गए. रणजी ट्रॉफी मैच बीच में छोड़कर उन्हें सीधे श्रीलंका के खिलाफ टी20 की टीम में शामिल कर लिया गया. जाहिर है ये फैसला बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली का था.

दूसरी ओर हार्दिक को सीधे टॉप फाइव क्रिकेट के लिए टीम में शामिल किया गया. भारत में रणजी के मुकाबले अभी खत्म भी नहीं हुए थे कि उन्हें न्यूजीलैंड जानेवाली इंडिया ए टीम में शामिल किया गया.

इससे भी हैरत की बात थी कि न्यूजीलैंड दौरे के कुछ ही घंटे पहले टीम में फिर परिवर्तन किया गया और हार्दिक को हटाकर विजय ‘मिस्टर 360’ शंकर को टीम में शामिल कर लिया गया. इंडिया ए टीम की रवानगी के एक दिन बाद भी बीसीसीआई ने इस बदलाव के बारे में औपचारिक तौर पर कुछ नहीं बताया. भला हो शंकर का, जिन्होंने सोशल मीडिया में तस्वीरें डालकर टीम में अपने शामिल होने की जानकारी दे दी!

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‘खास खिलाड़ियों’ के लिए अलग नियम?

चोट से उबरने के बाद बुमराह को सीधे अंतरराष्ट्रीय सिरीज में खेलाना निश्चित रूप से एक जुआ है. अगले महीने भारत-न्यूजीलैंड के बीच दो टेस्ट मैचों की सिरीज होनी है. देखना दिलचस्प होगा कि बुमराह लम्बे फॉर्मैट के खेल में फिट साबित होते हैं या नहीं.

पूर्व हेड कोच अनिल कुम्बले ने सभी चोटग्रस्त खिलाड़ियों के लिए नियम बनाया था कि वो पहले घरेलू क्रिकेट में अपनी फिटनेस साबित करेंगे, उसके बाद ही उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल करने पर विचार किया जाएगा.

लेकिन हार्दिक और बुमराह दोनों ने ही बंगलुरु के नेशनल क्रिकेट अकादमी (NCA) के प्रशिक्षण शिविर में शामिल होने से इंकार कर दिया. इसके बजाय उन्होंने मुंबई में अपने पसंदीदा ट्रेनर से ट्रेनिंग लेना बेहतर समझा.

बताया गया था कि बीसीसीआई की नई सत्ता खिलाड़ियों की अनुशासनहीनता पर सख्ती बरतेगी और सख्ती के साथ नियम-कानून लागू करेगी. लेकिन अब तक तो सख्ती का नामोनिशान नहीं दिख रहा.

ये उस ‘सुपरस्टार कल्चर’ का हिस्सा है, जिसका जिक्र मशहूर इतिहासकार और Committee of Administrators (CoA) के पूर्व सदस्य रामचन्द्र गुहा ने अपने इस्तीफे में किया था. बुमराह और हार्दिक, दोनों ही बीसीसीआई के सेन्ट्रली कॉन्ट्रैक्टेड खिलाड़ी हैं. यानी उनकी सभी गतिविधियों पर नजर रखी जाती है.

खिलाड़ी अपने मनमुताबिक नियम तय नहीं कर सकते. ऐसे मुद्दों पर बोर्ड, आरोपी खिलाड़ियों और NCA के बीच लम्बे समय तक खींचतान रहा है. टेस्ट विकेटकीपर वृद्धिमान साहा के फिटनेस पर भी ऐसा ही विवाद हुआ था. उस वक्त CoA में काफी हायतौबा मची थी. लेकिन इस बार विवाद पर कोई सवाल खड़ा नहीं हो रहा है. शायद अपनी कुर्सी बचाने के लिए ये चुप्पी जरूरी है.

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‘खास खिलाड़ियों’ के लिए अलग नियम?
बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली और NCA के हेड ऑफ क्रिकेट राहुल द्रविड़ ने 27 दिसंबर को बोर्ड मुख्यालय में लम्बी बैठक की और NCAसे जुड़े मुद्दों पर विस्तार सेचर्चा की.
(फोटो: पीटीआई)

गांगुली के समय कॉन्ट्रैक्ट शुरु किया गया था

सेन्ट्रली कॉन्ट्रैक्टेड प्लेयर का नियम 2004 में लागू किया गया था. सोच थी कि इसके जरिये बोर्ड सभी प्रमुख खिलाड़ियों पर निगरानी रखेगा और उनका ख्याल रखेगा. लेकिन वित्तीय फायदे के अलावा अब सारे नियम धराशायी हो चुके हैं.

संयोग की बात है कि जिस वक्त सेन्ट्रल कॉन्ट्रैक्ट का नियम लागू किया गया, उस वक्त भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान मौजूदा बीसीसीआई अध्यक्ष गांगुली ही थे. NCA के मौजूदा हेड ऑफ क्रिकेट राहुल द्रविड़ उन दिनों उपकप्तान थे, जिन्होंने कुम्बले के साथ लगभग सात सालों तक इस विषय पर बोर्ड से मोल तोल किया था. लागू होने के करीब 15 साल बाद नियमों पर पानी फिरा दिखता है. दिलचस्प बात है कि सबकुछ गांगुली और द्रविड़ के ही कार्यकाल में हो रहा है.

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कहां हैं एम एस धोनी?

एम एस धोनी का मामला तो और दिलचस्प है. 2019 वर्ल्ड कप से भारत के बाहर होने के बाद धोनी क्रिकेट मैदान में नजर नहीं आए हैं. निश्चित रूप से उन्हें क्रिकेट से ब्रेक लेने की जरूरत थी और उनके पास मैदान से बाहर रहने की मजबूत दलील थी. लेकिन अब छह महीने होने को आए, और अब तक उनका कोई अता-पता नहीं है.

विवादों में रहे चीफ सेलेक्टर एमएसके प्रसाद ने साफ कर दिया है कि सीमित ओवरों वाली सिरीज के लिए धोनी अब पहली प्राथमिकता नहीं रहे, बल्कि टीम की थिंकटैंक उनकी जगह ऋषभ पंत को मौका देने का मन बना चुकी है.

दिसंबर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में धोनी से उनकी आगामी योजनाओं के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने साफ कहा कि ‘मुझसे जनवरी 2020 तक इस बारे में न पूछा जाए.’

गांगुली और हेड कोच रवि शास्त्री भी धोनी के सवाल पर टालमटोल करते दिखे. गांगुली ने कहा कि पूर्व कप्तान के बारे में विचार किया जा रहा है, जबकि शास्त्री ने कहा कि धोनी के बारे में फिलहाल कुछ भी कहना उचित नहीं है. बल्कि हाल में कोच ने धोनी की ओर से ऐलान कर डाला कि वो शायद अपना अंतिम एकदिवसीय मैच खेलें.

ये समझा जा सकता है कि वीरेन्द्र सहवाग, गौतम गंभीर, हरभजन सिंह और युवराज सिंह की राह पर चलते हुए धोनी को अपने रिटायरमेंट के बारे में खुल्लमखुल्ला ऐलान करने की जरूरत नहीं है. हरभजन तो अब भी आईपीएल में खेलते हैं. लेकिन एक फर्क है. कम से कम सितम्बर 2019 तक धोनी सेन्ट्रली कॉन्ट्रैक्टेड खिलाड़ी रहे हैं.

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चुप्पी ही जवाब है

धोनी के सवालों का सबसे बेहतर जवाब चुप्पी रही है. हमें अब तक नहीं मालूम कि पांच साल पहले वो टेस्ट क्रिकेट से क्यों रिटायर हुए. और वो भी ऑस्ट्रेलिया में चल रही टेस्ट सिरीज के बीच में. फिर कुछ साल पहले एक मीडिया रिलीज से जानकारी मिली कि उन्होंने एकदिवसीय और टी20 टीम की कप्तानी को अलविदा कह दिया है.

ये पूछना कोई जुर्म नहीं कि क्या धोनी के नाम पर अब भी विचार किया जा रहा है, या क्या वो भविष्य में भारत के लिए क्रिकेट खेलेंगे? यहां तक कि वो झारखंड की ओर से सीमित ओवर वाली घरेलू सिरीज में भी नहीं दिखे हैं. लिहाजा अब तो सिर्फ इस बात का इंतजार करना है कि वो आईपीएल में खेलते हैं या नहीं.

साफगोई का अभाव उचित नहीं है. हमें मालूम है कि बोर्ड खिलाड़ियों, वेंडर्स और तमाम साझेदारों को कितनी कीमत अदा करता है. सबसे बड़े साझेदार खिलाड़ी होते हैं, जिनके बारे में हमें अब तक कुछ भी जानकारी नहीं है. जबकि क्रिकेट फैन अपने स्टार खिलाड़ियों के बारे में सबकुछ जानना चाहते हैं. उनके लिए उनके चहेते खिलाड़ी भगवान जैसे हैं.

लिहाजा तीनों मामलों में स्पष्टता जरूरी है. खेल से बड़ा कोई नहीं होता. और अब, जबकि सौरव गांगुली बोर्ड के अगुवा हैं, बोर्ड को खुलकर फैन्स के सवालों का जवाब देना चाहिए, न कि बंद कमरे में फैसले लेने चाहिए.

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