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कितनी सही है सौरव गांगुली की हर फॉर्मेट में एक ही टीम की मांग?

वेस्टइंडीज दौरे के लिए भारतीय टीम में शुभमन गिल को जगह नहीं मिल पाई

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टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने नई बहस छेड़ दी है. उनका कहना है कि क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में एक जैसी टीम खेलनी चाहिए. उन्होंने ये बात वेस्टइंडीज दौरे के लिए चुनी गई टीम में शुभमन गिल और अजिंक्य रहाणे को जगह ना देने के संदर्भ में कही है. भारतीय टीम को अगस्त के पहले हफ्ते में वेस्टइंडीज के दौरे पर जाना है. जहां उसे तीन टी-20, तीन वनडे और दो टेस्ट मैच खेलने हैं.

इसी सीरीज के लिए रविवार को चयनकर्ताओं ने तीनों टीमों का ऐलान किया. टी-20 और वनडे की टीम में शुभमन गिल और अजिंक्य रहाणे का नाम नहीं था.

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सौरव गांगुली ने इसी फैसले पर हैरानी जताई है. सौरव गांगुली ने ट्विटर पर लिखा कि टीम में कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो सभी फॉर्मेट में खेल सकते हैं, लेकिन शुभमन गिल और रहाणे को वनडे टीम में ना लिए जाने से हैरान हूं.

“अब वो समय आ गया है जब चयनकर्ताओं को कुछ खिलाड़ियों को सभी फॉर्मेट में रखना चाहिए. इससे खिलाड़ियों का आत्मविश्वास बढ़ेगा. बड़ी टीमें ऐसा ही करती हैं. ऐसा नहीं है कि मकसद हर किसी को खुश करने का होना चाहिए लेकिन देश के लिए सर्वश्रेष्ठ टीम तो चुनी ही जानी चाहिए.”
सौरव गांगुली, पूर्व कप्तान

सौरव गांगुली का ये बयान ऐसे वक्त में आया है जब 2019 वर्ल्ड कप में चुनी गई टीम को लेकर काफी विवाद हो रहा है.

कितना जायज है दादा का सुझाव?

इस बात में कोई शक नहीं कि सौरव गांगुली के समय में और आज की क्रिकेट में काफी बदलाव आ गया है. सौरव गांगुली के समय में टी-20 इतना प्रचलित फॉर्मेट नहीं था. यानी उस वक्त टेस्ट और वनडे क्रिकेट ही ज्यादा खेली जाती थी.

आपको याद दिला दें कि सौरव गांगुली ने 2007 में वनडे और 2008 में आखिरी टेस्ट मैच खेला था. इसके बाद पिछले एक दशक में टी-20 लीग ने लोकप्रियता की ’पीक’ हासिल की है. इसमें इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल का बड़ा योगदान है.

आईपीएल के अलावा भी इस वक्त दुनिया के अलग-अलग देशों में टी-20 लीग खेली जाती है. इसमें इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देश शामिल हैं.

यानी अब क्रिकेट की बात तीन फॉर्मेट को लेकर होती है. दुनिया भर की टीमें इस फॉर्मेट पर चल रही हैं जिसमें टेस्ट, वनडे और टी-20 टीमों के खिलाड़ी अलग-अलग हैं. इंग्लैंड जैसी टीमें तो अलग-अलग कप्तान की थ्योरी पर भी चलती हैं. ऐसे में दादा का ये सुझाव थोड़ा अटपटा लगता है, क्योंकि टी-20 के खिलाड़ी को टेस्ट क्रिकेट में मैदान में उतारना महंगा साबित हो सकता है.

वैसे भी देखा जाए तो करीब 8-9 खिलाड़ी ऐसे हैं जो तीनों फॉर्मेट में कॉमन हैं. ऐसे खिलाडियों में विराट कोहली, रोहित शर्मा, शिखर धवन, केएल राहुल, ऋषभ पंत, हार्दिक पांड्या, मोहम्मद शमी और जसप्रीत बुमराह के नाम लिए जा सकते हैं.

यानी टेस्ट, वनडे और टी-20 की टीम में बदलाव के नाम पर मोटे तौर पर 3 से 4 खिलाड़ी ही इधर-उधर होते हैं, जो मौजूदा दौर के क्रिकेट में जरूरी भी है.

हां, ये बात सच है कि जो शुभमन गिल वेस्टइंडीज ए के खिलाफ शानदार प्रदर्शन कर रहे थे उन्हें टीम में रखा जाना चाहिए था. अजिंक्य रहाणे को भी वनडे टीम में मौका देना चाहिए. विश्व कप में रहाणे नंबर चार की परेशानी को दूर करने में मददगार हो सकते थे.

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दादा का निशाना कहीं और तो नहीं?

सौरव गांगुली के बयान का दूसरा हिस्सा ज्यादा अहम है. जिसमें वो देश के लिए सर्वश्रेष्ठ टीम चुनने की बात करते हैं ना कि किसी को खुश करने के लिए टीम चुनने की.

ये बयान इसलिए अहम है क्योंकि इसी वर्ल्ड कप में अंबाती रायडू को ना चुने जाने को लेकर जमकर बवाल हुआ. यहां तक कि अंबाती रायडू ने वर्ल्ड कप के बीच ही संन्यास ले लिया.
चीफ सेलेक्टर एमएसके प्रसाद चाहे जितनी सफाई दें, लेकिन ये बात हजम नहीं होती कि ओपनर के बाहर होने पर मिडिल ऑर्डर का बल्लेबाज और मिडिल ऑर्डर के बल्लेबाज के बाहर होने पर ओपनर को टीम में जगह कैसे मिल जाती है.

सौरव गांगुली ने जो सभी को खुश रखने वाली बात कही है वो कुछ अनसुलझे सवाल खड़े करती है.

दिलचस्प बात ये भी है कि वर्ल्ड कप के दौरान सौरव गांगुली इंग्लैंड में ही थे. एमएसके प्रसाद सौरव गांगुली के साथ खेले भी हैं. क्या सौरव गांगुली को कुछ ऐसी बात पता चली है जिसके आधार पर वो ये कह रहे हैं कि सबको खुश करने की बजाए देश के लिए सर्वश्रेष्ठ टीम चुनी जानी चाहिए?

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