अगर इंग्लैंड दौरे से पहले किसी भी क्रिकेट जानकार या पूर्व खिलाड़ी ने ये कहा होता कि भारत एक मैच में न तो आर अश्विन को लेकर उतरेगा और न ही ईशांत शर्मा को, इतना ही नहीं भारतीय आक्रमण का हिस्सा मोहम्मद शमी भी नहीं होंगे. तो हर कोई यही जवाब देता कि ये तो विराट कोहली की या तो बदकिस्मती होती या फिर उनका बेवकूफी से भरा फैसला, क्योंकि सिर्फ जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज के बूते इंग्लैंड में टेस्ट नहीं जीता जा सकता था. क्योंकि उमेश यादव तो पिछले कई सालों से सिर्फ स्टेपनी के तौर पर ही इस्तेमाल होते आये हैं और शार्दुल ठाकुर को टेस्ट स्तर पर एक गेंदबाज के तौर पर काफी कुछ साबित करना था. और रविंद्र जडेजा तो वैसे भी शुद्ध स्पिनर की बजाये ऑलराउंडर होने के चलते प्लेइंग इलेवन का हिस्सा बन रहें हैं. लेकिन ओवल टेस्ट में तो भारतीय गेंदबाजी आक्रमण ने चमत्कार कर दिया.
चमत्कार इसलिए क्योंकि ओवल टेस्ट की पहली पारी में इंग्लैंड ने 99 रनों की अहम बढ़त ले ली थी. और चौथे दिन का खेल खत्म होने के बाद इंग्लैंड को जब जीत के लिए 368 रनों की चुनौती मिली, तो उन्होंने बिना किसी नुकसान के 77 रन बना लिए थे. यानी पांचवें दिन का खेल जब शुरु होने वाला था तो जीत की दावेदार जितनी टीम इंडिया थी, उतनी ही मेजबान टीम.
पहले सत्र में मुकाबला जोरदार हुआ, लेकिन भारत को मिले सिर्फ 2 विकेट जिसमें से एक तो भाग्य-भरोसे 12वें खिलाड़ी मयंक अग्रवाल के शानदार थ्रो के चलते डेविड मलान के रन आउट के तौर पर मिला.
बड़े से बड़े दिग्गज भी सही आकलन नहीं कर पाये इस आक्रमण का
लंच के बाद जब इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और मौजूदा समय के सबसे बेहतरीन क्रिकेट एक्सपर्ट में से एक नासिर हुसौने से ये पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि इंग्लैंड अब मैच जीतने की बजाय बचाने के बारे में सोच रहा है, तो उनका जवाब था बिल्कुल नहीं. अगर लंच और चाय के बीच जो रूट की टीम 3 विकेट नहीं खोती है और धीमे भी बल्लेबाजी करती है तब भी वो आखिरी सत्र में जरुरत पड़ने पर 4 रन प्रति ओवर से भी ज्यादा का स्कोर करके मैच सकती है!
शायद पहली बार हुसैन का आकलन यथार्थ से इतना परे रहा. लेकिन, इसमें हुसैन का भी भला दोष कहां था? उन्हें भी तो यही लगा कि ओवल टेस्ट में भारत का आक्रमण उतना मजबूत नहीं है. लेकिन, लंच के बाद जसप्रीत बुमराह ने अपने 6 ओवर के स्पैल में साबित कर दिया कि ऐसे मौकों पर जरुरत पड़ने पर वही एक के बदले ग्यारह साबित हो सकते हैं. चौथी पारी में 22 ओवर की गेंदबाजी करते हुए सिर्फ 27 रन और दो बेशकीमती विकेट. शायद सिर्फ 2 विकेट हासिल करने के लिए भारतीय टेस्ट इतिहास में ऐसा यादगार स्पैल किसी भी गेंदबाज ने नहीं डाला था.
महान तिकड़ी की कमी तक महसूस होने नहीं दी!
आखिर में फिर से वही बात कि अगर 919 टेस्ट विकेट (अश्विन+ईशांत+शमी) के अनुभव और योग्यता को ओवल टेस्ट से हटा देने के बाद भी अगर कोई ये कहता कि ऐसे सपाट विकेट पर टीम इंडिया को वो गेंदबाजी आक्रमण जीत दिला सकता है, जिसमें दो गेंदबाजों (शार्दुल ठाकुर और सिराज ने मिलकर 50 विकेट भी पूरे नहीं किये हैं) का अनुभव तो कुल मिलाकर 13 मैचों का भी नहीं था, तो आप ये कहतें है कि क्या मजाक है यार!
लेकिन, ऐसा मुमकिन हुआ क्योंकि वाकई में ये भारतीय इतिहास का महानतम आक्रमण है, जहां पर 227 टेस्ट विकेट के बावजूद जडेजा को एक गंभीर टेस्ट गेंदबाज नहीं माना जाता है, खासकर विदेशी टेस्ट मैचों में, उमेश यादव को 49 टेस्ट और 154 विकेट की कामयाबी के बावजूद भी अगले मैच में खेलने की गारंटी नहीं होती है.
न शक और न अब कोई बहस, यही है भारत का सर्वकालीन महान गेंदबाजी आक्रमण
दो हफ्ते पहले लंदन के ही लार्ड्स मैदान में मैच के पांचवें दिन आखिरी सत्र में इस आक्रमण ने 6 विकेट झटकर कर ड्रॉ की तरफ जाते मैच को नाटकीय अंदाज में जीत में तब्दील कर दिया था. ऐसा भारतीय इतिहास में इससे पहले कभी विदेशी टेस्ट में नहीं हुआ था. लंदन के ओवल में भारत को पिछले 50 साल में जीत नहीं मिली थी. और जब 1971 में मिली थी तो भारत को स्पिन गेंदबाजों का देश माना जाता है.
अब ओवल की जीत ने साबित कर दिया है कि अब भारत तेज गेंदबाजों वाला देश बन चुका है और अपने शानदार स्पिनरों के साथ मिलकर ये दुनिया के किसी भी मैदान पर टेस्ट मैच जीत सकता है और पिच और परिस्थितयों का मोहताज नहीं है.
दुनिया के दो महानतम आक्रमण (1970-80 के दशक वाली कैरेबियाई टीम और 1999-2005 के दौर वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम) भी तो कुछ ऐसा ही करती थी ना? तो इस बात को मानने में हिचक क्यों कि भारत का मौजूदा आक्रमण उनके इतिहास का महानतम आक्रमण तो है ही, साथ ही ये टेस्ट क्रिकेट के इतिहास के सबसे उम्दा तीन आक्रमण में से भी एक है. पूर्ण विराम.
(लेखक स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट हैं, जिनके पास 20 साल से अधिक समय तक क्रिकेट को कवर करने का अनुभव है. वे सचिन तेंदुलकर के जीवन और करियर से जुड़ी पुस्तक ‘क्रिकेटर ऑफ द सेंचुरी’ के लेखक हैं.)
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