गुजरात टाइटंस (Gujarat Titans) की आईपीएल ट्रॉफी (IPL 2022) में जीत के योगदान के बारे में हर कोई कप्तान हार्दिक पंड्या (Hardik Pandya) की तारीफ कर रहा है जो उचित है, डेविड मिलर और राशिद खान जैसे विदेशी खिलाड़ियों के योगदान की बात कर रहा है, वो भी सही है और युवा शुभमन गिल का खेल भी सराहनीय रहा है. लेकिन, इन सबके बीच में पर्दे के पीछे इस पटकथा को लिखने वाले पहली बार हेड कोच बने आशीष नेहरा के योगदान को भी मत भूलिएगा.
आशीष नेहरा का योगदान
दिल्ली के आशीष नेहरा की पहचान अपने साथी खिलाड़ियों के बीच एक मुंहफट खिलाड़ी की रही है. ये कोई नकारात्मक टिप्पणी न होकर नेहरा के सकारात्मक छवि को उभारने के लए कही गयी है. आप आशीष नेहरा से सीनियर हों या जूनियर, वो दोनों से उसी अंदाज में बात करेंगे. साफ-साफ, सीधे सीधे. उनके क्रिकेट के तर्क दिग्गज कप्तानों को भी खामोश कर देते हैं और बड़े से बड़े पत्रकार भी जो खुद को क्रिकेट के आंकड़ों और फैक्ट को याद रखने के मामले में बेहद पेशेवर मानते हैं.
नेहरा की क्रिकेट कोचिंग दिल्ली के सबसे मशहूर घराने सोनेट क्लब में हुई. जी हां, वही सोनेट क्लब जिसे तारिक सिन्हा ने पूरी दुनिया में मशहूर करा दिया क्योंकि वहां से नेहरा समेत दर्जन से भी ज्यादा खिलाड़ी इंटरनेशनल क्रिकेट खेले.
मैं भाग्यशाली था कि उस दौर में जब नेहरा अक्सर दिल्ली के वेकेंटेश्वर कॉलेज में तारिक सर के साथ क्रिकेट की बारिकियों पर चर्चा करते तो एक युवा पत्रकार के तौर पर मुझे नेहरा को करीब से देखने का मौका मिला. सबसे बेहतरीन बात रही है नेहरा हमेशा ही कूल रहे. लेकिन, वो बड़े शहर से आने के बावजूद बड़े शहरों वालों लड़कों की तरह 'कूल' ना होकर, महेंद्र सिंह धोनी की तरह कूल रहते थे.
ये नेहरा का कूल व्यक्त्तिव ही रहा है कि वो बेहिचक सौरव गांगुली जैसे दमदार कप्तान के साथ भी ड्रेसिंग रुम में बहस करने उतर जाते तो वीरेंद्र सहवाग जैसे मूडी खिलाड़ी को भी अक्सर अपने प्रभाव में रखते थे. नेहरा से सचिन भी बेहद प्रभावित रहें है तो द्रविड़, लक्ष्मण और कुंबले जैसे दिग्गज भी उनके क्रिकेट ज्ञान और सोच के बड़े फैन हैं.
हार्दिक पांड्या की प्रतिभा को नेहरा ने पहचाना
इत्तेफाक से हार्दिक पंड्या 2016 में जब अपनी पहली सीरीज खेलने ऑस्ट्रेलिया पहुंचे, तो नेहरा ने उन्हें देखा और बस एक जौहरी की तरह उनकी प्रतिभा को पहचान लिया. नेहरा ने खास-तौर पर धोनी को उस दौरे पर एक दिन होटल में डिनर के दौरान कहा कि पंड्या को उसके आंकड़ों पर आंकने की भूल नहीं करना. ये लड़का मैच-विनर है.
धोनी भी आशूभाई यानि कि नेहरा की सलाह को काफी गंभीरता से लेते हैं. क्योंकि 2003 का वर्ल्ड फाइनल हारने के बाद उससे क्या सबक मिला ये बात नेहरा ने 2011 वर्ल्ड सेमीफाइनल के बाद धोनी को बतायी थी और नेहरा धोनी की टीम को चैंपियन बनाने में अहम किरदार निभा चुके हैं.
बाद में नेहरा जब अपने करियर के आखिर दौर में फिटनेस और उम्र से जूझ रहे थे तो धोनी उन्हें चेन्नई सुपर किंग्स लेकर गये और वहां से उनकी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी भी हुई. नेहरा से बेहतर इस बात को शायद कोई नहीं जानता है कि खिलाड़ियों के मन से असुरक्षा का भाव कैसे खत्म किया जाता है. अपने पूरे करियर में नेहरा को चोट और फिटनेस की समस्याओं से गुजरना पड़ा और हर बार कभी 1 साल तो कभी 2 साल तो कभी 5 साल बाद भी उन्होंने कमबैक किया.
गैरी कर्स्टन को लेकर आए नेहरा
नेहरा की योग्यता में कभी चयनकर्ताओं और बहुत सारे कप्तानों ने वो भरोसा नहीं दिखाया जो उनकी काबिलियत हक रखती थी. लेकिन, नेहरा को किसी से कोई शिकायत नहीं रही. उन्हें पता था कि अगर खिलाड़ी के तौर पर ही न सही क्रिकेट एक्सपर्ट या फिर कोच के तौर पर एक नई विरासत तो तैयार की ही जा सकती है.
नेहरा आईपीएल में सहायक कोच से होते हुए नई टीम के हेड कोच बन गये. बावजूद इसके वो गैरी कर्स्टन को अपनी टीम में लेकर आये. वही कर्स्टन जो 2011 में टीम इंडिया के कोच थे लेकिन आईपीएल में दिल्ली और बैंगलोर के लिए फ्लॉप साबित हो चुके थे. लेकिन, नेहरा परंपरावादी हैं और जानते हैं कि टीमों को ट्रॉफी उनके कोच नहीं बल्कि खिलाड़ी दिलाते हैं.
यही वजह है कि वो हमेशा मीडिया से दूर रहते हैं. इस साल आईपीएल शुरु होने से पहले नेहरा ने मुझसे वायदा किया था वो खास तौर पर बात करेंगे लेकिन नई टीम के साथ वो व्यस्त होते चले गये और ये कहा कि इटंरव्यू फिर कभी. अब चूंकि नेहरा की टीम चैंपियन बन चुकी है मुझे इस बात का इंतजार रहेगा कि वो इंटरव्यू का वादा पूरा करें और ये बताएं कि कैसे दिल्ली के छोरे ने गुजरात की टीम आईपीएल चैंपियन बनाने में क्या कमाल दिखाया!
टीम गुजरात के लिए नेहरा के नुस्खे
नेहरा को गुजरात से जोड़ने वाले शख्स रहे विक्रम सोलंकी. ये वही सोलंकी हैं जो इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेल चुके हैं. नेहरा को जब एक नई टीम की कमान संभालने को दी गई तो उनका साफ मानना था कि ऐसे खिलाड़ियों का खास तौर पर चयन हो जिसमें काबिलियत हो और वो खुद पूरी दुनिया के सामने दोबारा साबित करना चाहते हों.
पांड्या को हर तरीके से खुद को साबित करना था. वो नए-नए कप्तान बने थे और इसे पहले भारतीय टीम से भी बाहर ही चल रहे थे.
राशिद खान को सनराइजर्स हैदराबाद को उनकी गलती का एहसास करना था, जिसने उन्हें रिटेन करने के लिए दो कदम ज्यादा नहीं बढाये.
डेविड मिलर के लिए आईपीएल एक दशक से कुछ मैच जिताने वाली पारियों के अलावा कुछ नहीं था. किसी भी टीम ने उन पर खुलकर भरोसा नहीं दिखाया और ज्यादातर मैचों में बाहर ही बैठाए गए.
रिद्दिमान साहा को ये कहा गया कि वो सिर्फ टेस्ट का उम्दा विकेटकीपर बल्लेबाज नहीं बल्कि टी20 में ओपनर भी बन सकता है.
मोहम्मद शामी को नेहरा ने ये कहा कि आखिर क्यों वो अपनी योग्यता और अनुभव के साथ टी20 फॉर्मेट में न्याय नहीं कर पा रहा है.
राहुल तेवातिया को ये समझाया गया कि अगर टीम इंडिया में आने का सपना पूरा करना होगा उन्हें इस सीजन 2-3 बार तेवतिया ही बनना होगा. मतलब हैरतअंगेज पारियां खेल कर दबाव को धुएं में उड़ा देने वाला नजरिया दिखाना होगा.
मैथ्यू वेड को ये कहा गया कि जिस तरह से ऑस्ट्रेलिया को वर्ल्ड टी 20 चैंपियन बनाया गया वही भूख इस टीम के साथ भी दिखानी होगी.
कहने का मलतब है कि हर खिलाड़ियों की भूख और फिटनेस के लिहाज से नेहरा ने उनके लिए चैंपियन बनने का चार्ट तैयार करके हाथों में दे दिया और ये सब किसी प्रेजेंटेशन या भाषण में नहीं बल्कि नैट्स के दौरान बात-चीत, डिनर के दौरान हल्की-फुल्की बातों के दौरान और कभी लॉबी में टहलते हुए अनौपचारिक गप्प सेशन में खिलाड़ियों तक अलग-अलग किरदारों के जरिए पहुंचाया गया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)