खत्म हो गए अब वो मौका-मौका वाले विज्ञापन... टूट गया 1992 के वर्ल्ड कप से शुरु हुआ भारतीय जीत का अश्वमेघ रथ... अशुभ माने जाने वाले नंबर 13 ने वही कराया जिसका सबसे डर था... लेकिन, टीम इंडिया की हार के बाद जिस तरह से भारतीय फैंस सोशल मीडिया पर बौखलाये वो अपने आप में अजीब है. हमने भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को कभी इतना विचलित होते नहीं देखा था.
पाकिस्तान से एक मैच क्या हारे विराट कोहली को सरेआम बेइज्जत किया जाने लगा. हर कोई उन्हें क्रिकेट की कप्तानी सिखाने लगा... क्यों भाई? आप अगर विद्यार्थी हो तो क्या हर परीक्षा में टॉप ही करते हैं, वकील हैं तो हर केस जीतते हैं, डॉक्टर हैं तो हर मरीज को बचा लेते हैं, नेता है तो हर चुनाव जीतते हैं, व्यापारी हैं तो क्या हर बार मुनाफा ही कमाते हैं? नहीं ना, तो फिर कोहली में भगवान आप क्यों तलाश कर रहे हैं? कोहली ने वर्ल्ड-कप में सिर्फ पहला मैच ही हारा है, वर्ल्ड कप नहीं... और अगर हर मैच वो बुरी तरह से हार कर बाहर भी हो जाएं तो अपने कप्तान को इस तरह से गालियां देना और बेइज्जत करना किस महान भारतीय संस्कृति का हिस्सा है?
आलोचना होनी चाहिए, क्यों नहीं होनी चाहिए. कोहली की कप्तान के तौर पर और बल्लेबाज के तौर पर भी. भुवनेश्वर कुमार और हार्दिक पंड्या को अगर प्लेइंग इलेवन में शामिल करना सौ फीसदी सही फैसला नहीं था तो कोहली का जमने के बावजूद 17वें ओवर में आउट होना भी निराशाजनक था. लेकिन, ये भी बात तो सच है ना कि ये सब तो खेल में चलता ही रहता है... हार और जीत...
एक समय था जब भारतीय फैंस के बारे में ये कहा जाता था कि वो बेहद सुलझे और समझदार हैं. खेल के नतीजों को उसी भावना से लेते हैं लेकिन इस तरह की नफरत वाली भावना अपने देश के क्रिकेट के कप्तान के लिए कतई सही नहीं है. लोग ये भी तर्क दे रहे हैं कि कोहली तो पनौती कप्तान है.पनौती मतलब अशुभ. ऐसा बोलने से पहले उस तथ्य की तरफ ध्यान भी नहीं देते हैं कि ये कोहली का पहला वर्ल्ड कप है कप्तान के तौर पर आखिरी भी.
एक बात और भारतीय इतिहास में टी20 मैचों में कोहली के जीत का रिकॉर्ड महेंद्र सिंह धोनी से भी बेहतर हैं. क्या ऑस्ट्रेलिया, क्या इंग्लैंड, क्या न्यूजीलैंड, क्या साउथ अफ्रीका... विदेश में जहां कोहली ने टी20 में सीरीज खेली हर जगह जीत हासिल की. ये सिर्फ तुक्का तो नहीं हो सकती है..हां, ये सच है कि धोनी की तरह अपनी महानता को हमेशा समय की बाहों में बांधे रखने के लिए जिस एक अदद ट्रॉफी की जरुरत उन्हें हैं, वो फिलहाल उनके पास नहीं है. और अगर ये ट्रॉफी नहीं भी हुई तो क्या फर्क पड़ता है.
सचिन तेंदुलकर के पास भी कप्तान के तौर पर क्या था? कम से कम इस तरह की नाकामियों के लिए किसी खिलाड़ी या कप्तान से घृणा तो नहीं किया जा सकता है.
पसंद नापसंद अलग बात है, तथ्यों पर आधारित आलचोना भी सही, भारत-पाक वाले मैचों में भावना का उबाल भी कुछ हक तक सही लेकिन नफरत का भाव कतई नहीं.
'ये आग तो वो आग है जो एक दिन अपना घर फूंके...' बचपन से किशोर कुमार की आवाज में अमिताभ बच्चन के पर फिल्माए गीत में सुनता आया हूं, लेकिन आज वो गाना फिर से गूंज रहा है. ये कि नफरत की बुनियाद पर कोई देश तो नहीं बन सकता है और नफरती प्रवृति वाले बौखलाने पर अपने सबसे प्यारे खिलाड़ी और खेल के भी दुश्मन बन जाते हैं. दरअसल, नफरत और हिंसक रवैये का यही असली रुप है... कोहली हमें आप पर नाज है और उम्मीद है कि आप टूर्नामेंट में जबरदस्त वापसी करेंगे और नहीं भी करेंगे तब भी हम आपसे घृणा नहीं करेंगे.. क्योंकि हम सच्चे भारतीय फैन है... बरसाती मेंढक की तरह नहीं जो सिर्फ भारत-पाक मैचों के उन्माद फैलाने के लिए सोशल मीडिया पर आ जाते हैं.. गंदगी और नफरत फैलाने के लिए.
(20 साल से अधिक समय से क्रिकेट कवर करने वाले लेखक की सचिन तेंदुलकर पर पुस्तक ‘क्रिकेटर ऑफ द सेंचुरी’ बेस्ट सेलर रही है. ट्विटर पर @Vimalwa पर आप उनसे संपर्क कर सकते हैं.)
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