शनिवार 8 फरवरी को टीम इंडिया ने न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे सीरीज गंवा दी. टी20 सीरीज में बुरी तरह हार का सामना करने के बाद कीवियों का ये बड़ा पलटवार था. साथ ही टीम इंडिया के लिए ये संदेश भी था कि टेस्ट सीरीज में अपने मैदानों में न्यूजीलैंड की टीम कड़ी टक्कर देने को तैयार है.
भारतीय क्रिकेट फैंस और टीम को वनडे सीरीज की हार से ज्यादा एक दूसरी बात की तकलीफ है. ये तकलीफ है कप्तान विराट कोहली का आउट होने का तरीका.
लगातार तीसरी बार बोल्ड
दरअसल, विराट कोहली पिछले कुछ वनडे में लगातार बोल्ड हुए हैं. ऑकलैंड में हुए सीरीज के दूसरे वनडे में विराट कोहली टिम साउदी की गेंद पर बोल्ड हुए. साउदी ने पहले विराट कोहली को अपनी स्विंग से परेशान किया और उसके बाद उनकी गेंद विराट के स्टंप उखाड़ गई.
अब इससे पहले 5 फरवरी को खेले गए मैच में भी विराट कोहली बोल्ड हुए थे. लेग स्पिनर ईश सोढ़ी ने उन्हें गुगली फेंकी जिसे पढ़ने में विराट कोहली गलती कर गए. नतीजा गेंद उनके स्टंप्स बिखेर गई.
इसके थोड़ा और पहले के मैच में आपको ले चलते हैं. पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत के दौरे पर थी. जिसमें बैंगलुरू वनडे में भी विराट को बोल्ड ही हुए थे. उस मैच में हेजलवुड ने उन्हें चकमा दिया था. हेजलवुड ने फुल लेंथ डिलिवरी पर विराट का विकेट झटका था.
विराट कोहली के 12 साल लंबे करियर में ये पहली बार हुआ है जब वो लगातार तीन वनडे मैचों में बोल्ड होकर पवेलियन लौटे हैं. ये बात थोड़ा चौंकाती है. परेशान भी करती है.
कहां हो रही विराट से गलती?
इन तीनों मैच में विराट कोहली के आउट होने के तरीके में एक बात समान है. तीनों ही बार उन्होंने अंदर आती गेंद पर ‘बीट’ होकर विकेट गंवाया है.
विराट की बल्लेबाजी को देखकर लगता है कि वो मिड विकेट और मिड ऑन के बीच में खेलने की कोशिश में ज्यादा ‘एक्रॉस’ चले जा रहे हैं. ‘एक्रॉस द लाइन’ खेलने की यही गलती विराट कोहली को भारी पड़ रही है.
विराट कोहली दुनिया के नंबर एक बल्लेबाज हैं. उनकी तकनीक शानदार है. वो ज्यादातर मौकों पर जोखिम लिए बिना बल्लेबाजी करते हैं. लिहाजा उनके कद के खिलाड़ी से जब ऐसी गलती होती है तो तुरंत चर्चा भी शुरू हो जाती है.
6 महीने से वनडे शतक नहीं
शायद इन गलतियों का ही असर है कि विराट कोहली ने पिछले 6 महीने से कोई वनडे शतक नहीं लगाया है. पिछले साल अगस्त में विराट कोहली ने वेस्टइंडीज के खिलाफ लगातार दो वनडे मैचों में शतक लगाया था.
इसके बाद विराट कोहली इस मुकाम को हासिल नहीं कर पाए हैं. इस दौरान उन्होंने चार अर्धशतक लगाए हैं. तीन बार तो उन्होंने 70 का आंकड़ा पार किया है लेकिन तिहरे अंक तक अपनी पारी को पहुंचाने से वो लगातार चूक रहे हैं.
विराट कोहली के नाम 247 वनडे में 43 शतक हैं, जो सचिन तेंदुलकर के 49 शतक के बाद दूसरे सबसे ज्यादा हैं. विराट अब तक 58 अर्धशतक भी जड़ चुके हैं.
अगर कोई अन्य बल्लेबाज 6-7 महीने में 2 शतक और कुछ अर्धशतक लगाए, तो किसी को भी इससे परेशानी नहीं होगी. अब विराट के रिकॉर्ड्स ऐसे हैं कि 6 महीने से शतक ना लगना चर्चा में आ जाता है, लेकिन अगर इन 6 महीनों में खेले गए 8 मैचों में से पांच बार विराट कोहली बोल्ड हुए हों तो बात परेशान करने वाली है.
बोल्ड होने पर इतनी हायतौबा क्यों?
दरअसल किसी भी बल्लेबाज को बोल्ड होना सबसे ज्यादा खलता है. दुनिया के हर बड़े बल्लेबाज को सबसे ज्यादा चिढ़ ‘बोल्ड’ होने से होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि बोल्ड होने का सीधा मतलब है कि बल्लेबाज गेंद की लाइन को समझ ही नहीं पाया.
इसे क्रिकेट की बोलचाल वाली भाषा में ‘बॉल सेंस’ कहा जाता है. अगर ये ‘बॉल सेंस’ चला जाए तो दिग्गज से दिग्गज बल्लेबाज क्रीज पर संघर्ष करता है.
विराट कोहली के करियर में पहले भी ऐसे मौके आए हैं जब उन्होंने स्पिन गेंदबाजों के खिलाफ ऐसी ही गलती की है. आईपीएल में भी वो लेग स्पिनरों के खिलाफ इसी तरह आउट होते दिखे थे, जबकि इंग्लैंड के लेग स्पिनर आदिल रशीद भी उन्हें बोल्ड कर चुके हैं.
इस सीरीज में अभी एक वनडे मैच बाकी है, जो 11 फरवरी को खेला जाना है. इसके बाद पूरी टेस्ट सीरीज बची हुई है.
गलती सुधारने में माहिर विराट
ऐसा नहीं है कि विराट कोहली को अपनी गलती समझ नहीं आती. विराट कोहली दुनिया के उन बल्लेबाजों में से हैं जो खुद को ‘ऑटो अपडेट’ करते हैं. वो बल्लेबाजी करते करते ही अपनी गलती को सुधारने की खूबी रखते हैं.
2014 के इंग्लैंड दौरे पर विराट कोहली लगातार ऑफ स्टंप से बाहर जाती गेंद पर आउट हो रहे थे. उन्होंने इस पर काम किया और इसे पूरी तरह दूर किया. 2018 में उन्होंने इंग्लैंड में अपना जलवा दिखाया.
शिखर धवन और रोहित शर्मा की गैरमौजूदगी में उन पर आखिरी वनडे में साख बचाने की जिम्मेदारी भी बढ़ी है. न्यूजीलैंड के खिलाफ तीसरे वनडे में जब वो क्रीज पर बल्लेबाजी करने के लिए आएंगे तो सबसे ज्यादा नजर इसी बात पर रहेगी कि उन्होंने अपनी गलतियों से कितना सबक लिया है.
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