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बल्‍ले से बनेंगे ‘विराट’, पर दिल पर राज ‘कैप्‍टन कोहली’ का होगा

जब सचिन तेंदुलकर ने कोहली को कप्तानी सौंपी, ऐसा लगा कि भारतीय क्रिकेट दोबारा अपनी पुरानी स्थिति में पहुंच जाएगा.

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जो भी 90 के दशक में क्रिकेट के प्रशंसक रहे हैं, वह इस भावना को भलीभांति जानते हैं. विशेषकर केबल टीवी के आने के बाद उत्तर भारत में, जब ऑस्ट्रेलिया में होने वाले मैच प्राइम स्पोर्ट्स नाम के चैनल पर दिखाए जाने लगे.

कभी सुबह 7 बजे, तो कभी 5.30 या फिर 5 बजे भी अलार्म बजता था. हम अपनी रजाई लेकर उस कमरे में पहुंच जाते थे, जिसमें टीवी होता था. सिर्फ इस बात का खयाल रखा जाता था कि मां-पिताजी की नींद न खटकने पाए.

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यह सब इसलिए कि भारत की टीम ऑस्ट्रेलिया में अच्छा करेगी. जब भारत में लोग सुबह में पहली चाय की चुस्की ले रहे होते थे, ऑस्ट्रेलिया में लंच का टाइम होता था और भारत में क्रिकेट प्रशंसकों का पूरा दिन बेकार जाता था.

ऐसा इसलिए, क्योंकि 90 के दशक में कुछेक खिलाड़ियों जैसे- सचिन तेंदुलकर, वर्तमान कोच रवि शास्त्री और बाद में वीवीएस लक्ष्मण को छोड़ दीजिए, तो बहुत कुछ कहने को बचता नहीं था.

लेकिन नई सदी के साथ ही इसमें बदलाव आना शुरू हुआ.

भारत को सौरभ गांगुली जैसा कप्तान मिला, जो यह चाहता था कि भारतीय क्रिकेट को सम्मान मिले. इसके लिए वे विदेशी धरती पर मैच जीतना चाहते थे. उन्होंने अपने दल को चुनौती दी और स्थिति में थोड़ा बदलाव आया. इंग्लैंड में 2002 में और ऑस्ट्रेलिया में 2003-04 में सीरीज ड्रॉ खेलकर उन्होंने काफी प्रशंसा बटोरी.

पर इतना सब नाकाफी था.

भारतीय बल्लेबाजी के इस स्वर्णिम युग ने काफी कोशिश की, पर वे अपने समय में सिर्फ पाकिस्तान, वेस्टइंडीज और इंग्लैंड में ही सीरीज जीतने में सफल रहे. ऑस्ट्रेलिया उनकी पहुंच के बाहर ही रहा.

जब सचिन तेंदुलकर ने कोहली को कप्तानी सौंपी, ऐसा लगा कि भारतीय क्रिकेट दोबारा अपनी पुरानी स्थिति में पहुंच जाएगा.
जब सचिन तेंदुलकर ने विराट कोहली को कप्तानी सौंपी, ऐसा लगा कि भारतीय क्रिकेट दोबारा अपनी पुराने दिनों वाली स्थिति में पहुंच जाएगा.
(फोटो: रॉयटर्स)

ऑस्ट्रेलिया में हार ने विराट को एक रोडमैप दिया

जब तेंदुलकर ने विराट कोहली को कप्तानी सौंपी, संक्रमण के उस दौर में ऐसा लगा कि भारतीय क्रिकेट में वही पुराने दिन अब फिर लौट जाएंगे- घर में तो सिंह की तरह दहाड़ेंगे, पर विदेशी धरती पर मेमने बन जाएंगे. युवा खिलाड़ी टीम में जमने और अपने गौरव को स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे.

ऑस्ट्रेलिया के अपने पिछले दौरे के दौरान, कोहली को टेस्ट टीम की कप्तानी का जिम्मा सौंपा गया था. यह दौरा आंख खोल देने वाला साबित हुआ. विराट ने खुद को यहां पर खोजा और उन्हें यह भी पता चल पाया कि उनकी टीम से यहां पर उनकी अपेक्षाएं कैसी होंगी.

उन्होंने निडर होकर अपना मैच खेला और कभी भी ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने अपने पैर खींचे हों. उन्होंने सीरीज गंवाई पर विराट को एक रोडमैप मिला, ताकि वह अपनी टीम को नेतृत्व दे सकें और अपनी अभिलाषाओं के अनुरूप अपने लक्ष्य का निर्धारण कर सकें.

देश में खेलते हुए, विराट इस फॉर्मूले को ढूंढते रहे, ताकि वे विदेशी धरती पर धाक जमा सकें. प्रशंसाओं और भारतीय उपमहाद्वीप में सीरीज जीतकर वाहवाही लूटने के बावजूद वे खुद को और अपनी टीम को यह याद दिलाते रहे कि यह स्थाई होना चाहिए और इसी की अपेक्षा है.

भारतीय क्रिकेट की महान पीढ़ी के रूप में वास्तविक तौर पर याद किए जाने के लिए उनके लिए यह जरूरी था कि वे अपने मांद से बाहर निकलें और विदेशी धरती पर विजय हासिल करें.

विराट की बल्लेबाजी पर भले ही तेंदुलकर का प्रभाव हो, पर विदेशी धरती पर विजय हासिल करने की उनकी ललक गांगुली के अनुरूप है.

मुंबई में खेलते हुए, विराट मेलबोर्न में जीतने के सूत्र तलाश रहे थे. उन्हें खूंखार गेंदबाजों की जरूरत थी. वह उनकी तलाश करते रहे. और जब मिला, तो उनको अपना समर्थन दिया, उनको सुरक्षा दी और वांछित परिणाम देने के लिए उनको उत्साहित किया.

आप कह सकते हैं कि वे सौभाग्यशाली हैं कि उनके पास इस तरह के प्रतिभाशाली गेंदबाज हैं कि भुवनेश्वर कुमार और उमेश यादव को भी बैठाना पड़ा. तथ्य यह है कि उनके पास जो गेंदबाज हैं उन्होंने 80 के दशक के शक्तिशाली वेस्टइंडीज टीम के रिकॉर्ड तोड़े हैं. क्या यह स्वप्न जैसा नहीं लगता? लेकिन इस तरह की प्रतिभा को संजोने और उनको इस लायक बनाने के लिए उनको और टीम के प्रबंधन को इसका श्रेय मिलना ही चाहिए.

जब सचिन तेंदुलकर ने कोहली को कप्तानी सौंपी, ऐसा लगा कि भारतीय क्रिकेट दोबारा अपनी पुरानी स्थिति में पहुंच जाएगा.
विराट कोहली ने तेज गेंदबाजों की लगातार तलाश की है और परिणाम देने के लिए उनको अपना समर्थन व संरक्षण दिया और उनका उत्साहवर्धन किया है.
(फोटो: एपी)

विराट ने आलोचनाएं झेली हैं, पर काम कर दिखाया है

विराट के रवैये और उनकी ऊर्जा उनकी टीम के लिए बहुत ही लाभदायक रहा है. दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड में हारने के बावजूद उन्होंने अधिकांश आलोचनाओं को अपने ऊपर लिया और अपने महत्त्वाकांक्षाओं और अपनी योजनाओं में तब्दीली की इजाजत नहीं दी.

प्रैक्टिस मैच नहीं होने और विदेशी दौरे के लिए होने वाले चयन के बारे में उन्होंने सभी सवालों के जवाब दिए और अपने रवैये पर पाबंदी के किसी भी तरह के प्रयास की अनुमति नहीं दी. जैसे ही भारत की यह टीम अपने मोर्चे पर पहुंची, वह छलांग लगाने के लिए बेताब थी.

भारत ने 71 साल के इंतजार और सुबह की अनगिनत अलार्म के बाद इस बाधा को अंततः पार कर लिया है. इस सीरीज के परिणामों के अलावा भारत ने इस दौरे से बहुत कुछ हासिल किया. यह दौरा भारत में प्रथम श्रेणी के मैचों के बारे में एक व्यंग्‍य से शुरू हुआ और दौरे के अंत पर ऑस्ट्रेलिया अब इस बात की जांच कर रहा है कि उसकी क्रिकेट को हो क्या गया है.

एक जमाना था जब ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट एक मॉडल हुआ करता था, जिसे क्रिकेट खेलने वाले सारे देश अपनाना चाहते थे- उनके खेल के संसाधन से लेकर उनकी सुविधाएं, उनके खेल का स्तर और उनकी प्रतिभा की गुणवत्ता तक का. और अब उनके महान क्रिकेटर भारत से और उसके क्रिकेट की व्यवस्था से सीखने की कोशिश कर रहे हैं.

हो सकता है कि एक बल्लेबाज के रूप में विराट बहुत सारे और रन बनाएं और बहुत सारे रिकॉर्ड तोड़ें, पर वह याद किए जाएंगे एक प्रेरणादायी कप्तान के रूप में. उनकी नेतृत्व क्षमता भारतीय क्रिकेट के इतिहास अपर अमिट छाप छोड़ेगा और बल्लेबाजी में उनके रिकॉर्ड इसके गहने होंगे. वह भारत के एक महान बल्लेबाज हैं.

ऑस्ट्रेलिया उनकी यात्रा का पहला महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है. उनके पास लोग हैं, वह सही उम्र में हैं, उनकी मनोदशा सही है, उनके पास इच्छाशक्ति है और तेज गेंदबाजों का काफिला है, जिसके बदौलत वे अपने गौरव में चार क्या चालीस चांद जड़ सकते हैं.

(निशांत अरोड़ा एक पुरस्कृत क्रिकेट पत्रकार हैं जो सीएनएन-आईबीएन और इंडिया टुडे से जुड़े रहे हैं. निशांत हाल तक भारतीय क्रिकेट के मीडिया मैनेजर भी रह चुके हैं.)

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