“देश के लिए मरना और देश के लिए खेलना सबको नसीब नहीं होता.”
हर बच्चा जो क्रिकेट खेलता है, उसका सपना देश के लिए खेलना होता है. हालांकि टी-20 क्रिकेट के आ जाने के बाद हमारे कई खिलाड़ी भी राष्ट्रीय कर्त्तव्य से दूर रहने का विकल्प चुन रहे हैं, ताकि वे दौलत के दबदबे वाले आईपीएल के लिए खुद को फिट और उपलब्ध रख सकें.
ताजातरीन धक्का तब लगा, जब भारतीय चयनकर्ताओं ने विराट कोहली को शुरू हो रहे एशिया कप में आराम देने का फैसला किया.
चयन समिति के पूर्व चेयरमैन के रूप में मैं इस बात से सहमत हूं कि खिलाड़ी पर पड़ रहे दबाव को ध्यान में रखना चाहिए. लेकिन जब बात भारत-पाकिस्तान के दरम्यान मैचों की हो, जिनमें भारत के क्रिकेटप्रेमी भावनात्मक और संवेदनात्मक रूप से गहरे जुड़े होते हैं, तो यह समझना मुश्किल है कि ऐसा फैसला क्यों लिया गया.
वास्तव में केवल क्रिकेट के प्रशंसक ही नहीं, दोनों देशों के खिलाड़ी और क्रिकेट बोर्ड के अधिकारी भी इस तरह के बड़े मैच से बहुत मजबूती के साथ जुड़े होते हैं.
लेकिन क्रिकेट का यह महान खेल भी टाइमिंग से काफी हद तक जुड़ा होता है. अगर टाइमिंग बेहतरीन है, तो आप विजेता होते हैं. अगर टाइमिंग खराब है, तो पराजय का सामना करते हैं.
विराट कोहली को आराम देने का फैसला लिया जा चुका है, लेकिन सवाल ये है कि क्या चयनकर्ताओं ने एशिया कप के लिए विराट को आराम देने पर फैसला लेने में देरी की? इसके बदले वेस्टइंडीज के साथ घरेलू सीरीज में उन्हें आराम दिया जा सकता था, जो इसके तुरंत बाद शुरू होगा.
मैं महान कपिल देव से बात कर रहा था, जिन पर कम उम्र में ही काम का बोझ बढ़ने लगा था. लेकिन उन्होंने रिटायर होने से पहले तक कभी खेलना नहीं छोड़ा. टेस्ट, एकदिवसीय मैच और घरेलू क्रिकेट में और उन खेलों में भी जो वे अपने एम्प्लॉयर के लिए खेलते थे. कपिल देव मैच के दौरान न सिर्फ लंबे स्पेल की गेंदबाजी किया करते थे, बल्कि वे अक्सर पहले बल्लेबाज से लेकर आखिरी बल्लेबाज तक प्रैक्टिस सेशन में भी बिना ब्रेक के गेंदबाजी करते थे.
क्या क्रिकेट इतना अधिक बदल गया है कि आज के भारतीय खिलाड़ी इतने फिट और एकाग्र होकर भी वर्कलोड नहीं ले सकते?
जैसे-जैसे समय बीतता गया, तरह-तरह की तकनीक और थ्योरी के साथ-साथ वर्कलोड मैनेजमेंट सामने आ गया.
मैं विराट कोहली पर आरोप नहीं लगाता, लेकिन मेरा सवाल एक बार फिर है कि बीसीसीआई के पास 30 से ज्यादा उम्र वाले खिलाड़ी अनुबंधित हैं और उनमें से सभी बराबर संख्या में मैच खेलते हैं और बराबर का वर्कलोड लेते हैं. तब क्यों अकेले विराट कोहली ही?
अगर आपसे पूछा जाता है कि वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज और एशिया कप खिताब- इनमें से किसे जीतने पर खिलाड़ियों, बीसीसीआई और खेल प्रेमियों को अधिक सम्मान और आनंद का अनुभव होगा, तो उत्तर बहुत आसान है- एशिया कप में जीत. और, वो भी तब, जब पाकिस्तान जैसी टीम इसमें शामिल हो.
यह दुर्भाग्यपूर्ण इसलिए भी है कि यह ऐसे समय में हो रहा है, जब खुद बीसीसीआई समस्याओं से घिरा है. बीते दो सालों में लोधा कमेटी की ओर से नियुक्त सीओए और बीसीसीआई सदस्यों के बीच संघर्ष और वाद-विवाद चरम पर है. ऐसी परिस्थिति में टीम में किसकी चल रही है? क्या ये कप्तान कोहली हैं? क्या ये कोच रवि शास्त्री हैं? टीम प्रबंधन है या कि वे ट्रेनर हैं, जो खिलाड़ियों का वर्कलोड मैनेज करते हैं.
लौटते हैं कपिल देव पर
उन्होंने मुझे बताया कि अपने पूरे करियर में उन्होंने कभी भी एक दिन के लिए भी विश्राम के बारे में नहीं सोचा. वह बस गेंदबाजी, बल्लेबाजी और फील्डिंग करना चाहते थे. उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए और भारत के लिए परफॉर्म करते हुए बहुत गौरवान्वित महसूस किया. उन्होंने कहा कि उनकी पीढ़ी के दूसरे खिलाड़ियों ने भी ऐसा ही किया.
ये सच है कि समय बदल गया है लेकिन जिस बात पर मुझे आश्चर्य होता है कि खिलाड़ियों को आराम देने की इस नयी रणनीति और वह भी तब, जबकि हर कोई अपने फिटनेस को बहुत ज्यादा महत्व दे रहा है, हम देख रहे हैं कि अब खिलाड़ी अधिक घायल हो रहे हैं. यही वजह है कि वही सवाल बार-बार पैदा हो रहे हैं. क्या महत्वपूर्ण टूर्नामेंट के लिए महत्वपूर्ण खिलाड़ियों को आराम देना उचित है? क्या खेल इतना बदल गया है?
मेरा जवाब है नहीं. खिलाड़ी अब भी उसी सूर्य की रोशनी में, वैसे ही बल्लों के साथ और अलग-अलग विरोधी टीमों व पिचों पर गेंद फेंकते हुए खेलते हैं.
जब आप मैचों के शिड्यूल तय करते हैं, तो चयनकर्ताओं के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि प्राथमिकता में कौन सा इवेंट अधिक अहम है और कौन नहीं. उन्हें जानने की जरूरत है कि कहां टीम को पूरी ताकत के साथ होना चाहिए और कहां कुछ खिलाड़ियों को छोड़ा जा सकता है. इस मामले में जवाब बहुत सामान्य है. एशिया कप में जीत वेस्टइंडीज के खिलाफ जीत से अधिक महत्वपूर्ण है.
सुनील गावस्कर की टिप्पणी सुनकर बहुत दुख हुआ कि आज के युवा खिलाड़ी अपने वरिष्ठ खिलाड़ियों से सलाह तक नहीं लेते, क्योंकि अगर ऐसा है, तो हमें ये जानने की जरूरत है कि खिलाड़ियों को सलाह को कौन दे रहा है या क्या वक्त आ गया है कि यह पूरी तरह से खिलाड़ियों पर छोड़ दिया जाए कि कब वे खेलना चाहेंगे और कौन सा खेल इवेंट उनके लिए अधिक जरूरी है?
मेरा तर्क ये है कि जब हमारे पास जबरदस्त फॉर्म में चल रहे दुनिया के नम्बर वन बैट्समैन हैं जिन्होंने भारतीय क्रिकेट के एक अलग स्तर तक पहुंचाया है और जिनमें क्रिकेट की दुनिया को जीत लेने की क्षमता है, तो ऐसे विराट कोहली को चयनकर्ताओं की ओर से बताया जाना चाहिए कि एशिया कप का नेतृत्व करने और उसे जीतने का क्या महत्व है.
एक दूसरी सोच ये है कि चयनकर्ताओं ने विराट कोहली को इस महीने आराम शायद इसलिए दिया है, ताकि वे देख सकें कि उनके बिना भारतीय टीम क्या करती है. भारतीय टीम के नेतृत्व करने का मौका रोहित शर्मा को दिया गया है और देखा जाए कि क्या वे इस अवसर पर उभर पाते हैं या नहीं, जब विराट कोहली खेलने के लिए उपलब्ध नहीं हैं.
लेकिन एक बार फिर सवाल है कि जोखिम क्यों लिया जाए?
हम खुद ऐसे फैसलों से परेशानी बढ़ा रहे हैं. रोहित के सामने टीम को एकजुट रखने, सही संतुलन बनाने और सही कॉम्बिनेशन चुनने की बड़ी चुनौती है. मगर उनके पास समय नहीं है. उन्हें तेजी से काम करना है. अच्छे तरीके से तैयारी नहीं कर पाने की भूल के क्या नतीजे हो सकते हैं, हमने इंग्लैन्ड के दौरे में देखा है. कप्तान और खिलाड़ियों के लिए हर दिन, हर मैच नयी चुनौतियां लाता है.
जैसा कि हम हमेशा कहते रहे हैं कि हमारे पास महान टीम है और हमारे पास मौके भी हैं. लेकिन, कागज पर महान टीम होना और महान खिलाड़ी को मैदान पर परफॉर्म करते देखना दोनों अलग-अलग चीजें हैं.
भारत के तमाम क्रिकेट प्रेमियों की तरह मुझे भी विश्वास है कि न सिर्फ हम पाकिस्तान को हराएंगे, बल्कि हम एक बार फिर एशिया कप जीत कर दिखाएंगे.
(लेखक पूर्व भारतीय क्रिकेटर हैं जिन्होंने भारत के लिए 29 टेस्ट और 45 एकदविसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं. रिटायरमेंट के बाद संदीप पाटिल बीसीसीआई की सेलेक्शन कमेटी में मुख्य चयनकर्ता और नेशनल क्रिकेट एकेडमी के डायरेक्टर भी रहे हैं.)
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