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वर्ल्ड कप टिकटों का तमाशा: केवल टीम इंडिया की ट्रॉफी जीत ही आयोजकों को बचा सकती है

विश्व कप के लिए BCCI की प्लानिंग की कमी के चलते फैंस को टिकट संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा है.

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World Cup 2023: कुछ दिन पहले, टेनिस के ग्रैंड स्लैम इवेंट विंबलडन के सोशल मीडिया पेजों पर एक पोस्ट डालकर सभी को जानकारी दी गई कि 2024 इवेंट के टिकट जल्द ही बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे.

ये सिस्टम चाहे पश्चिम के देशों में हो, बड़े खेल आयोजन हो और यहां तक ​​कि कॉनसर्ट्स में भी, इस तरीके से काम करता है कि तारीख से लगभग 12-24 महीने पहले फैंस को टिकट खरीदने की प्रक्रिया के बारे में बताया जाता है. ये एक बैलेट सिस्टम है, जिससे फैंस महीनों पहले टिकट खरीदने की उम्मीद कर सकते हैं.

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इससे फैंस अपनी बाकी चीजों को लेकर प्लान बना पाते हैं, फ्लाइट की टिकट बुक करने से लेकर, होस्ट शहर में रहने की अच्छी व्यवस्था देखने तक सबकुछ कर पाते हैं. ये सब इतने सटीक तरीके से होता है कि इसमें गलतियां लगभग न के बराबर होती हैं.

पिछले साल कतर में आयोजित फीफा विश्व कप के लिए भी यही सच है. फैंस और पर्यटकों ने भारी खर्चे से बचने के लिए लगभग एक साल पहले ही अपने टूर को लेकर प्लान बना लिए थे.

BCCI ने शेड्यूल की घोषणा में काफी देरी की

इस साल 14 जून को, इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) ने 2031 तक सभी घरेलू अंतरराष्ट्रीय (पुरुष और महिला दोनों) के लिए वेन्यू की घोषणा की. लेकिन इस समय हम ये जानने का इंतजार कर रहे थे कि इस विश्व कप के मैचों की मेजबानी किन शहरों को मिलेगी.

पहला गेम शुरू होने से ठीक तीन महीने पहले 27 जून को ही BCCI और ICC ने विश्व कप 2023 के कार्यक्रम की घोषणा की थी, लेकिन, घोषणा के बाद भी, पूरी तरह से भ्रम की स्थिति थी! राज्य संघों को फाइनल रोस्टर में कुछ बदलावों के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी और कुछ शहरों में सुरक्षा एजेंसियों को सूचित नहीं किया गया था.

टूर्नामेंट के सबसे बड़े लीग स्टेज मुकाबले- भारत बनाम पाकिस्तान मैच की तारीखों में बदलाव क्यों हुआ? शेड्यूल जारी होने के बाद, अहमदाबाद में सुरक्षा एजेंसियों ने BCCI और ICC को सूचित किया कि वे मूल रूप से 15 अक्टूबर को होने वाले मैच के लिए पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते, क्योंकि ये नवरात्रि का पहला दिन भी है.

ये एक अजीब सी चीज थी, नवरात्रि गुजरात का प्रमुख त्योहार है, लेकिन अजीब बात ये है कि राज्य संघ और BCCI में मौजूद लोगों को इसके महत्व के बारे में पता ही नहीं था.

आखिरकार, मैच को 14 अक्टूबर को कराने का फैसला लिया गया और इसकी घोषणा 9 अगस्त को की गई. ये शेड्यूल जारी होने के पूरे एक महीने बाद हुआ.

जैसा कि अनुमान था, इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गई क्योंकि एक बड़ा मैच होने के चलते फैंस ने पहले ही अपनी फ्लाइट के टिकट्स और होटल के कमरे बुक कर लिए थे.

फिर एक मैच में बदलाव का असर बाकी मैचों पर भी पड़ा. इंग्लैंड का अफगानिस्तान के खिलाफ दिल्ली में होने वाला मैच रविवार को कर दिया गया.

इसके बाद और भ्रम हो गया, क्योंकि हैदराबाद पुलिस ने पलटकर कहा कि वे पाकिस्तान के पहले प्रैक्टिस मैच के लिए भी सुरक्षा नहीं दे पाएंगे! हैदराबाद ने एक ही जगह पर दो बैक-टू-बैक खेलों की मेजबानी की, जो 1983 में विश्व कप के बाद पहली बार था. ये पता चला कि राज्य संघ को तारीखों या बदलावों के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी.

कुछ टिकट आधिकारिक पोर्टल पर, लेकिन BCCI आखिरी मिनट में और टिकट जोड़ रहा है. जब तक ये सब चल रहा था तब तक सारी चीजों का प्रभारी कौन था, हम नहीं जानते. हर कोई दूसरे की ओर इशारा करता रहा और सबसे ज्यादा परेशानी जिन लोगों को हुई, वे थे फैंस. सबसे अजीब घटना ये थी कि चेन्नई में भारत और ऑस्ट्रेलिया के मैच के दिन भी, आधिकारिक साइट पर बिक्री के लिए टिकट जारी किए जा रहे थे, जबकि खिलाड़ी मैच के लिए तैयारी कर रहे थे! ये तब था, जब आधिकारिक टिकटिंग पार्टनर ने सबको बता दिया था कि भारतीय मैचों के सारे टिकट बिक चुके हैं.

फिर लगभग उसी समय BCCI ने बड़ा दिल दिखाते हुए घोषणा की कि वे अहमदाबाद में पाकिस्तान के खिलाफ भारत के महत्वपूर्ण मैच से एक हफ्ता पहले अतिरिक्त 14,000 टिकट बिक्री के लिए रख रहे हैं. फिर, ये टिकट पहले कहां थे? सारे टिकट बिक जाने के बाद इन्हें उसी समय जारी नहीं किया जा सकता था? ये टिकट किसके पास थे?

आधिकारिक टिकटिंग पार्टनर के पास साफ तौर पर पर्याप्त टिकट नहीं थे और इसलिए वे कहते रहे कि टिकट पूरी तरह से बिक चुके हैं, लेकिन BCCI और राज्य संघों का क्या? क्या उन्हें उस बड़ी गड़बड़ी के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जाना चाहिए जो उन्होंने पैदा की है?
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हालांकि ये तमाशा जारी है क्योंकि बोर्ड की तरफ से कुछ भारतीय मैचों के लिए ज्यादा टिकटें बिक्री के लिए रखे गए हैं. ये लगभग वैसा ही है जैसे कोई द्विपक्षीय श्रृंखला चल रही हो जहां राज्य संघ और बोर्ड रोजाना बदलाव कर रहे हों.

ये एक विश्व कप है, जहां दुनिया की नजर एक राष्ट्र के रूप में भारत और उसकी क्षमता पर है. अब तक आयोजकों ने जो गड़बड़ी पैदा की है, उससे हर सही सोच वाले भारतीय को शर्मिंदा होना पड़ेगा.

दर्शकों के अनुकूल आयोजन नहीं

होटल ढूंढना मुश्किल है. कुछ मामलों में जैसे अहमदाबाद में, पाकिस्तान के साथ मुकाबले से पहले होटलों के कमरों की कीमतें आसमान छू रही हैं. यहां फ्लाइट टिकटों की कीमत जैसे बाकी मुद्दे भी हैं, जो एक औसत व्यक्ति के लिए वहन करने योग्य नहीं हैं. एक सामान्य वेतनभोगी व्यक्ति के लिए इस स्तर का टूर्नामेंट इतना मुश्किल कैसे हो सकता है?

किसी भी मामले में, भारत शायद ही दर्शकों के लिए अनुकूल देश है और इस तरह के मुद्दे किसी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या परिवारों के लिए भारत में किसी कार्यक्रम में जाने के बारे में सोचना भी मुश्किल कर देते हैं.

अपनी गाड़ियों की पार्किंग की समस्या और आयोजन स्थलों के आसपास भारी सुरक्षा के चलते किसी स्पोर्टिंग वेन्यू पर जाने की योजना बनाना लोगों के लिए संघर्ष बन जाता है.

अब तक, शायद चेन्नई को छोड़कर, पूरे टूर्नामेंट में गड़बड़ियां बराबर रही हैं. ये हैरान करता है कि क्या भारत एक बड़े स्पोर्टिंग इवेंट की मेजबानी के लिए उपयुक्त है. भविष्य में भारत में ओलंपिक की मेजबानी की बात चल रही है. यदि क्रिकेट विश्व कप जैसे छोटे पैमाने के आयोजन का मामला है, तो कल्पना करें कि जब दुनिया के बाकी हिस्सों से पर्यटकों के आने की संभावना होगी, तो एक शहर के संसाधनों पर कितना दबाव पड़ेगा.

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सही मिसाल नहीं

बड़े खेल आयोजन, मेजबान देश के लिए राजस्व का एक स्रोत होते हैं, जिसमें विशेष रूप से भाग लेने वाले सभी देशों से पर्यटकों के आने की उम्मीद होती है. कार्यक्रम में आखिरी मिनट में बदलाव, पूरी तरह से हास्यास्पद टिकट व्यवस्था और बाकी मुद्दों के साथ, हर कोई मेजबान के रूप में भारत से परे देखना चाहता है.

फिर धर्मशाला में खराब आउटफील्ड जैसे क्रिकेट के मुद्दों को भी जोड़ लें, जो निश्चित रूप से आने वाले दिनों में उम्मीद खत्म कर देगा. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के क्यूरेटर की तरफ से इसे औसत रेटिंग दिए जाने के बाद भी, धर्मशाला में मैचों का आयोजन जारी है.

टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले, हैदराबाद में अभ्यास मैच के दौरान, भारत के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में सुविधाओं की दयनीय स्थिति की ओर इशारा किया था. इसका किसी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. सीटें गंदी रहीं ही रहीं जिससे कई लोगों के लिए आराम से मैच देखने में समस्याएं आईं.

अब तक भारत में मैदान खचाखच भरे दिखे हैं, लेकिन ये पूरा सच नहीं है, क्योंकि कम से कम 3,000-4,000 लोगों ने स्टेडियम में न आना पसंद किया है. यदि भारतीय खेलों की ये स्थिति है, तो कल्पना करें कि अधिकांश गैर-भारत मैचों की स्थिति क्या हो सकती है.

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विश्व कप का पहला मैच इस बात की याद दिलाता है कि बड़े मैचों की मेजबानी की बात आती है तो भारत बाकी दुनिया से प्रकाश वर्ष पीछे है. भले ही आप ये मान लें कि 132,000 सीटों वाले स्टेडियम में 47,000 दर्शकों की उपस्थिति खराब नहीं है, फिर भी क्या पहले मैच से ही ये संदेश देने के लिए कि विश्व कप आखिरकार शुरू हो गया है आयोजन स्थल छोटा नहीं होना चाहिए था?

इस टिकटिंग तमाशे से केवल तभी बचा जा सकता है, जब रोहित शर्मा एंड कंपनी ट्रॉफी जीत जाए. अगर रोहित ट्रॉफी जीतते हैं तो टूर्नामेंट से जुड़े हर दूसरे मुद्दे को भुला दिया जाएगा. लेकिन, भगवान न करे ऐसा नहीं हुआ तो बलि का बकरा ढूंढने के लिए तैयार रहें. क्या आप कुछ नाम सुझा सकते हैं?

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