असीम ताकत...अचूक वार...और अजेय दांव...विरोधी पहलवान को जकड़ लें तो छूटना मुश्किल, और पटक दें तो उठना मुश्किल...ये उन कई खूबियों में से चंद खूबियां हैं, जो सुशील कुमार को भारतीय पहलवानी के इतिहास में अब तक का बेस्ट पहलवान बनाती हैं.
ओलंपिक में दो बार मेडल जीत चुके सुशील ने उम्मीद के मुताबिक गुरुवार को लगातार तीसरे कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए गोल्ड जीतकर एक बार फिर बखूबी साबित कर दिया है कि पहलवानी में उनका कोई सानी नहीं.
जरा मेडल की फेहरिस्त पर गौर फरमाइए
सुशील कुमार का शानदार करियर रेकॉर्ड ही उनकी कामयाबी की कहानी को बयां करने के लिए काफी है. साल 2003 से सुशील लगातार सीनियर लेवल पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की झोली में मेडल डालते आ रहे हैं. आइए सुशील के इस बेमिसाल सफर पर डालते हैं एक नजर-
ओलंपिक
ब्रॉन्ज - 2008 बीजिंग - 66 किलो फ्रीस्टाइल
सिल्वर - 2012 लंदन - 66 किलो फ्रीस्टाइल
वर्ल्ड चैंपियनशिप
गोल्ड - 2010 मॉस्को - 66 किलो फ्रीस्टाइल
कॉमनवेल्थ गेम्स
गोल्ड - 2010 दिल्ली - 66 किलो फ्रीस्टाइल
गोल्ड - 2014 ग्लासगो - 74 किलो फ्रीस्टाइल
गोल्ड - 2018 गोल्ड कोस्ट 74 किलो फ्रीस्टाइल
एशियन गेम्स
ब्रॉन्ज - 2006 दोहा - 66 किलो फ्रीस्टाइल
एशियन चैंपियनशिप
ब्रॉन्ज - 2003 नई दिल्ली - 60 किलो फ्रीस्टाइल
सिल्वर - 2007 बिश्केक - 66 किलो फ्रीस्टाइल
ब्रॉन्ज - 2008 जेजु आइलैंड - 66 किलो फ्रीस्टाइल
गोल्ड - 2010 नई दिल्ली - 66 किलो फ्रीस्टाइल
कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप
गोल्ड - 2003 लंदन - 60 किलोग्राम फ्रीस्टाइल
गोल्ड - 2005 केप टाउन - 66 किलो फ्रीस्टाइल
ब्रॉन्ज - 2005 केप टाउन - 66 किलो जीआर स्टाइल
गोल्ड - 2007 लंदन - 66 किलो फ्रीस्टाइल
गोल्ड - 2009 जालंधर - 66 किलो फ्रीस्टाइल
गोल्ड - 2017 जोहान्सबर्ग - 74 किलोग्राम फ्रीस्टाइल
कई गुरुओं ने मिलकर गढ़ा
सुशील ने 14 साल की उम्र में दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम के अखाडा में पहलवानी में ट्रेनिंग लेना शुरु किया था. शुरुआत में उन्हें कोच यशवीर और रामफल ने ट्रेनिंग दी. इसके बाद अर्जुन अवॉर्ड प्राप्त गुरु सतपाल ने उन्हें ट्रेनिंग दी. इसके बाद भारतीय रेल के ट्रेनिंग कैम्प में ज्ञान सिंह और राजकुमार बैसला गुर्जर ने सुशील को कोचिंग दी.
1998 से शुरू हुई कामयाबी की कहानी
फ्रीस्टाइल रेसलिंग में सुशील कुमार को पहली कामयाबी साल 1998 में वर्ल्ड कैडेट गेम्स में मिली, जहां उन्होंने अपने वजन की कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता. इसके बाद उन्होंने साल 2000 में एशियन जूनियर कुश्ती चैम्पियनशिप में भी गोल्ड जीता. 2003 में एशियन कुश्ती चैंपियनशिप में उन्होंने ब्रॉन्ज जीता. इसी के साथ उन्होंने इसी साल और 2005 में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में गोल्ड जीता.
सुशील साल 2003 के वर्ल्ड चैंपियनशिप में चौथे स्थान पर रहे थे, लेकिन तब भारतीय मीडिया का ध्यान इस छुपे रुस्तम पर नहीं गया था. 2004 के एथेंस ओलंपिक में सुशील का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, और वे 60 किलो वजन वर्ग में 14 वें स्थान पर रहे. लेकिन इसके बाद उन्होंने फॉर्म में वापसी करते हुए 2005 और 2007 के कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था.
गिर कर उठने का नाम सुशील कुमार
इसके बाद 2007 के वर्ल्ड चैंपियनशिप में सुशील सातवें स्थान पर रहे. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कड़ी प्रैक्टिस जारी रखी. इसके बाद एक बार फिर उन्होंने फॉर्म में वापसी करते हुए 2008 के बीजिंग ओलंपिक में ब्रॉन्ज जीतकर अपनी काबिलियत साबित की. इसके बाद उन्होंने 2012 के ओलंपिक में सिल्वर जीता. इसके साथ ही सुशील आजाद भारत के लिए दो ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी बन गए. और अब कॉमनवेल्थ गेम्स में लगातार तीसरी बार गोल्ड जीतकर सुशील ने दुनिया को बता दिया है कि वे भारत के ऑल टाइम बेस्ट रेसलर हैं.
सुशील को 2006 में अर्जुन पुरस्कार और 2011 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है.
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