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#YearEnder: देश की इन महिला खिलाड़ियों ने दुनिया में लहराया तिरंगा

पुरुषों से ज्यादा महिला खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया

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रियो ओलंपिक में तिरंगे के मान-सम्मान को बनाए रखने की बात हो या दुनिया में भारत का लोहा मनवाने का जज्बा, इस साल भारतीय महिलाएं खेल जगत में भारत का सिर ऊंचा रखने में अपने साथी पुरुष खिलाड़ियों से कहीं आगे रहीं.

भारत को इस साल रियो ओलंपिक में सिर्फ दो पदक मिले. ये दोनों पदक देश को महिला खिलाड़ियों ने ही दिलाए. बैडमिंटन में पीवी सिंधु ने पहली बार देश को रजत पदक दिलाया और पदक जीतने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी भी बनीं.

वहीं ब्राजील के महानगर रियो डी जनेरियो में हुए ओलंपिक खेलों में भारत के पदक के इंतजार को महिला पहलवान साक्षी मलिक ने खत्म किया. साक्षी ने कुश्ती में कांस्य पदक हासिल किया और ओलंपिक में पदक जीतने वाली देश की पहली महिला पहलवान बनीं.

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दीपा ने पदक जीते बगैर ही देशवासियों का दिल जीता

रियो ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली एक भारतीय महिला खिलाड़ी ऐसी भी रहीं, जिन्होंने पदक जीतने बिना पूरे देशवासियों का दिल जीत लिया. जिम्नास्टिक्स में पहली बार ओलंपिक में भारत की दावेदारी पेश कर रहीं दीपा कर्माकर ने फाइनल तक का सफर तय किया और बेहद मामूली अंतर से वह पदक से चूक गईं.

दीपा कर्माकर ने जिम्नास्टिक्स में वह कारनामा कर दिखाया, जिसे देखकर रियो ओलंपिक में पांच स्वर्ण पदक जीतने वाली अमेरिकी जिम्नास्ट सिमोन बाइल्स भी उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकीं.

ओलंपिक में 52 साल बाद कोई भारतीय जिमनास्ट फाइनल तक पहुंचने में सफल रहा. वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट भी बनीं.

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ओलंपिक की इन महिला विजेताओं को देश के सबसे बड़े खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से नवाजा.

हॉकी टीम ने 36 साल बाद रियो में पाई जगह

भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी इस साल सफलता की नई ऊंचाइयों को छुआ. देश की महिला हॉकी टीम ने 36 साल बाद ओलंपिक खेलों में प्रवेश किया. वे जीत के सूखे को खत्म नहीं कर पाईं लेकिन उनका ओलंपिक में प्रवेश का प्रयास सफल रहा.

लेकिन ओलंपिक की असफलता ने भारतीय महिला हॉकी टीम का हौसला नहीं तोड़ा और उन्होंने पहली बार एशियन चैम्पियंस ट्रॉफी का खिताब जीता.

गोल्फ में भी भारत की बेटी सफल रही

गोल्फ में भी भारत की बेटी ने नया कारनामा कर दिखाया. अदिति अशोक ओलंपिक में जगह बनाने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं. इसके अलावा उन्होंने इस साल हीरो महिला इंडियन ओपन खिताब भी जीता और इस प्रक्रिया में वह एक लेडीज यूरोपीयन टूर खिताब जीतने वाली पहली भारतीय बनीं.

रियो पैरालम्पिक में बेटी रही अव्वल

अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाकर जिंदगी में आगे बढ़ने वाली दीपा मलिक ने इस साल रियो पैरालम्पिक में रजत पदक जीत दिखा दिया कि कोशिश करने वाले कभी नहीं हारते.

मलिक ने रियो पैरालम्पिक की गोला फेंक स्पर्धा (एफ 53) में अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया और 4.61 मीटर दूर गोला फेंक रजत पदक हासिल किया. इस जीत के साथ ही वह पैरालम्पिक खेलों में भारत के लिए पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी भी बनीं.

दीपा दो बच्चों की मां हैं और उनके पति सेना में अधिकारी हैं. कमर से नीचे लकवाग्रस्त दीपा को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.

उनकी रीढ़ की हड्डी में एक ट्यूमर था, जिसे 1999 में ऑपरेशन के जरिए हटाया गया. हालांकि 31 सर्जरी के दौरान उनके कमर के निचले हिस्से में 183 टांके लगे और इसके बाद छह सालों तक वह व्हीलचेयर पर रहीं. लेकिन छह सालों के बाद उन्होंने पैरा-खेलों की ओर रुख किया और आज वह देश की बेहद सफल पैरा-खिलाड़ियों में शुमार हैं.

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