कैमरा: सुमित बडोला
वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
स्क्रिप्ट: यश झा
भारत vs पाकिस्तान, इस वक्त ये कॉन्ट्रोवर्सी हर किसी की फेवरेट है- हर चार साल में ये राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनता है, भारत को गेंद की सीम की तरह दो भागों में बांटा जाता है और टीवी पर चीख-चीख कर कहा जाता है: “भारत को वर्ल्डकप में पाकिस्तान के साथ नहीं खेलना चाहिए.”
इस साल तो माहौल और ज्यादा गर्म है.पिछले तीन दशक में जम्मू और कश्मीर में हुए सबसे बड़े आतंकी हमले में 14 फरवरी को 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए. देशभर में चीख-पुकार मची सिक्योरिटी के लिए, विरोधी आंदोलनों के लिए, सख्त कार्रवाई के लिए और क्रिकेट फील्ड पर टफ एक्शन के लिए क्योंकि बॉर्डर के इस तरफ हम क्रिकेट ‘न खेलकर’ ही तो अपनी ताकत दिखाते हैं.
थोड़ा पीछे चलते हैं.
- साल 2017, आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भारत पाकिस्तान के खिलाफ खेला. एक बार नहीं दो बार. उरी अटैक को एक साल से भी कम हुआ था जब ये मैच खेले गए.
- साल 2011, पाकिस्तान भारत की धरती पर वर्ल्ड कप सेमीफाइनल खेलने आया. इतना ही नहीं दोनों देशों को प्रधानमंत्रियों ने एक साथ मैच देखा. 26/11 के जख्म तब भी हरे थे.
- इससे 8 साल पहले 2003 वर्ल्ड कप में भारत ने पाकिस्तान को हराया. ये मैच भारत की संसद पर हुए हमले की तारीख के 15 महीनों के भीतर खेला गया था.
- 1999 में भारत और पाकिस्तान इंग्लैंड में खेले गए 1999 वर्ल्ड कप में आमने-सामने थे. उस वक्त कारगिल युद्ध छिड़ा हुआ था.
1999, 2003, 2007, 2011, 2015, 2017 में दोनों देशों ने मैच खेले. तो अब क्या अलग है?
अलग है. क्योंकि इस बार चुनाव है. इस प्रपोस्ड “बायकॉट” से भारत को मिलेगा क्या?
जोर-जोर से हल्ला मचाया जा रहा है कि आईसीसी वर्ल्ड कप 2019 में 16 जून को हेने वाले भारत-पाकिस्तान मैच को बायकॉट किया जाए. अगर भारत मैच को बायकॉट करता है तो क्या होगा?
इन उदाहरण से समझिए. वर्ल्ड कप के इतिहास में कुल चार बायकॉटिड मैच हैं.
LTTE अटैक की वजह से ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज ने 1996 में श्रीलंका में खेलने से मना किया, तो वहीं 2003 में रॉबर्ट मुगाबे की तानाशाही के विरोध में इंग्लैंड ने जिम्बाब्वे न जाने का फैसला किया और न्यूजीलैंड ने सुरक्षा कारणों की वजह से केन्या में मैच नहीं खेला. इन सभी चारों मैचों में विरोधी टीम को पॉइंट दे दिए गए.
इसका मतलब है कि अगर भारत 16 जून को पाकिस्तान के खिलाफ नहीं खेला तो पाक टीम को जीता हुआ मान लिया जाएगा.
देश में मांग चल रही है कि पाकिस्तान को वर्ल्ड कप से ही बैन कर दिया जाए! ये मांग कानूनी रूप से भी जायज नहीं है. आईसीसी के संविधान में साफ तौर पर कहा गया है कि हर एक सदस्य आईसीसी द्वारा आयोजित या मंजूर टूर्नामेंट में भाग लेने का हकदार है, बशर्ते वो क्वालीफिकेशन क्राइटेरिया को पूरा करे.
बात अब सिर्फ क्रिकेट तक ही नहीं रुकी हुई है. भारत ने नई दिल्ली में चल रहे ISSF शूटिंग वर्ल्ड कप के पाकिस्तानी शूटर्स को वीजा देने से मना कर दिया.
इससे हुआ क्या?
ओलंपिक से संबंधित किसी भी इवेंट की मेजबानी के लिए जो पोटेंशियल एप्लीकेशन होती है, उस पर चर्चा करने से भी भारत अब सस्पेंडेड है.
डेविस कप के मैच भी हैं जहां अगले सितंबर में ही भारत को पाकिस्तान जाकर खेलना है. तो तैयार रहिए एक और बैन आने वाला है.
कुछ पूर्व खिलाड़ियों के मुताबिक भारत का पाकिस्तान के खिलाफ न खेलना सही होगा. उन्हें लगता है कि भारत पाकिस्तान का मैच छोड़कर भी आसानी से बाकी मैच जीतकर सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई कर सकता है. लेकिन फिर पीछे चलिए.
ये मांग उठाने वाले पूर्व खिलाड़ियों में से जो मुख्य तीन हैं वो हैं मोहम्मज अजहरुद्दीन, जो 1999 वर्ल्ड कप में कप्तान थे. सौरव गांगुली, जो 2003 वर्ल्ड कप में कप्तान थे और हरभजन सिंह जो 2011 की वर्ल्ड कप विनिंग टीम का हिस्सा थे.
इन तीनों बार भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ मैच खेला.
चलिए मान लेते हैं, इंडिया पाकिस्तान के खिलाफ नहीं खेलता है, पॉइंट्स जाने देते हैं. लीग में बाकी सब को हराकर हम सेमीफाइनल में पहुंचते हैं और अगर पाकिस्तान भी क्वालीफाई कर गया तो?
दरअसल, ये 2017 चैंपियंस ट्रॉफी में भी हुआ था और इस बार कहीं हम उन्हें मुफ्त का गिफ्ट न दे दें. सोचो अगर भारत और पाकिस्तान को सेमीफाइनल में भिड़ना हुआ तो? या फिर फाइनल में ?तब अजहर भाई, दादा और भज्जी वर्ल्ड कप को बायकॉट करने के लिए बोलेंगे? क्या आप में से कोई भी पाकिस्तान से बिना मैच खेले उन्हें वर्ल्ड चैंपियन बनने के लिए तैयार होगा? भारतीय टमाटर को पाकिस्तान न भेजने से पाकिस्तान को दिक्कत होती है. सिंधु नदी का पानी रोकने से पाकिस्तान परेशान होगा. लेकिन मैच न खेलने और उनके खिलाड़ियों को यहां आने से रोकने पर हमें नुकसान है, हमारे खिलाड़ियों को नुकसान है. हमारे राजनेताओं ने तो इस आसान रास्ते के जरिये अपनी रोजी-रोटी सेंक ली. लेकिन दुख की बात ये है कि हमारे कुछ पूर्व चैंपियन भी टेलिविजन स्टूडियो में बैठकर ये सब बातें बोल रहे हैं. लेकिन आप सोचिए, खुद को स्पोर्ट्स फैंस कहते हैं तो सोचिए कि क्या ये सही है?
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