अपने जन्मदिन के दिन ही मैरीकॉम जर्मनी के लिए उड़ान भर रही होंगी. आज रात ही उनकी फ्लाइट है. 10 घंटे से ज्यादा की उड़ान भरने के बाद वो जर्मनी पहुंचेगीं. इसके बाद करीब 10 दिन का कड़ा अभ्यास होगा. फिर वतनवापसी.
36 साल की उम्र में उनका जोश और जज्बा वही है जो कई बरस पहले था. आंखों में अब भी ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतने का ख्वाब पल रहा है. इस ख्वाब के रास्ते में कई रूकावटें भी आईं. कभी पारिवारिक तो कभी कुछ और, बावजूद इन चुनौतियों के ‘जीवन चलने का नाम’ की तर्ज पर मैरीकॉम आगे बढ़ती रहीं.
2012 लंदन ओलंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद ऐसी चर्चा थी कि शायद अब वो रिंग को अलविदा कहेंगी. लेकिन 2016 में वो वापस ओलंपिक में देश की नुमाइंदगी करना चाहती थीं. अफसोस वो इसके लिए क्वालीफाई नहीं कर पाईं. अब निगाहें 2020 पर हैं. उन्हें अपने ओलंपिक मेडल का रंग बदलना है.
2018 में छठी बार विश्व चैंपियनशिप जीतकर उन्होंने इतना साफ कर दिया है उनका जोश ‘हाई’ है. इस ‘हाई’ जोश के पीछे के ‘मोटिवेशन’ की बड़ी दिलचस्प कहानी है. जिसके लिए मैं आपको साल 2012 में ले चलता हूं.
‘एक छोटा सा मेडल जीता है’
तारीख थी-8 अगस्त 2012. हम लोग लंदन के बॉक्सिंग एरिना में थे. मैरीकॉम के गले में ओलंपिक मेडल था. वो मेडल जिसे चूमने की चाहत लिए हजारों एथलीट लंदन पहुंचे थे. इस ब्रांज मेडल के बाद भी मैरीकॉम के चेहरे पर मायूसी थी. इस मायूसी की जड़ में थी दिल और दिमाग की लड़ाई. दिमाग खुश था कि ओलंपिक मेडल गले में है लेकिन दिल कह रहा था कि ब्रांज नहीं गोल्ड मेडल चाहिए था. मुझे अच्छी तरह याद है कि उस रोज मैरीकॉम हर किसी से कह रही थीं कि उन्होंने एक छोटा सा मेडल जीत लिया है.
हालांकि हर किसी को ये बात पता थी कि ओलंपिक का कांस्य पदक कितना बड़ा पदक होता है. खास तौर पर उन भारतीयों के लिए जिनके लिए ओलंपिक मेडलों का सूखा लंबे समय तक रहा हो.
मैरीकॉम का स्टाइल
जिसके सामने हमेशा सवाल रहा हो कि सौ करोड़ की आबादी वाले देश में ओलंपिक मेडल क्यों नहीं आते हैं? अब तो आबादी भी सवा सौ करोड़ हो गई है. अभी ये सारे सवाल मेरे दिमाग में घूम ही रहे थे कि एक हवाई जहाज ऊपर से गुजरा. दरअसल, लंदन में बॉक्सिंग स्टेडियम के पास ही एक एयरपोर्ट था, तकरीबन हर 4-5 मिनट पर एक हवाई जहाज वहां से गुजरता था. मैरीकॉम ने जहाज देखते ही कहा- मन कर रहा है बस तुरंत इसी जहाज में बैठकर अपने बच्चों के पास चली जाऊं. खैर, ये मैरीकॉम का ‘स्टाइल’ था.
आप उनसे मिलिए तो आपके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाएगी ऐसा इसलिए क्योंकि आपसे बात करते वक्त उनके चेहरे पर भी एक मुस्कान होगी. बीच बीच में वो गाना गुनगुनाने लगेंगी. उस रोज मेडल जीतने के बाद भी उन्हें इस बात का गुमान नहीं था कि उन्होंने उस ओलंपिक मेडल से पहले 5 वर्ल्ड चैंपियनशिप भी जीती है
मैरी उसी तरह बात कर रही थीं जैसे ओलंपिक से पहले किया करती थीं. हां, उस रोज उनके पास समय की थोड़ी किल्लत जरूर थी. जो स्वाभाविक है अगर किसी ने ओलंपिक मेडल जीता है तो उसे ‘सिंक’ करने के लिए थोड़ा ‘पर्सनल स्पेस’ चाहिए. दिलचस्प बात ये भी है कि लंदन ओलंपिक में ही पहली बार महिला बॉक्सिंग को शामिल किया गया था. मैरीकॉम का दबदबा ऐसा था कि भारतीय फैंस ने उसी दिन मान लिया था कि अब तो एक मेडल पक्का है. मैरीकॉम उम्मीदों के इस बोझ से वाकिफ थीं. उन्होंने बहुत ‘प्रोफेशनल’ तरीके से इसकी तैयारी की थी.
बच्चों के बर्थडे पर रिंग में थी मैरीकॉम
मुझे याद है कि लंदन ओलंपिक्स से पहले वो दिल्ली में प्रैक्टिस के दौरान मीडिया से कोई बड़ा दावा नहीं करती थीं. लंदन पहुंचने के बाद उन्होंने अपनी प्रैक्टिस के लिए लीवरपूल को चुना था. मैरीकॉम अपने से ज्यादा लंबे-चौड़े मुक्केबाजों के साथ रिंग में प्रैक्टिस करती थीं. 2014 में जब उनके ऊपर फिल्म बनी तो लोगों ने उनकी तैयारी और मेहनत के इन किस्सों को जाना. ये बात मैरी मुझे पहले ही बता चुकी थीं कि उन्होंने जिस दिन अपना पहला बाउट जीता था उस दिन उनके बच्चों का जन्मदिन था. 5 साल के जुड़वा बच्चों के जन्मदिन वाले दिन ही बॉक्सिंग रिंग में विरोधी बॉक्सर पर मुक्के बरसाना और खाना दोनों आसान नहीं होता.
जरा सोचिए, 2012 में जिस रोज उन्होंने ओलंपिक मेडल जीता था उस रोज भी उन्होंने देशवासियों से माफी मांगी थी कि वो गोल्ड मेडल नहीं जीत पाईं. ये मैरीकॉम ही कर सकती हैं.
साथ ही साथ ये भी सोचिए, मैरीकॉम की शादी हुई तो लोगों ने कहा अब वो बॉक्सिंग रिंग में नहीं उतरेंगी. उसके बाद उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती. फिर वो मां बनी तो लगा अब बॉक्सिंग कहां हो पाएगी. वो मां बनने के बाद वर्ल्ड चैंपियन बनीं. मैरी तब ही रूकेंगी जब वो चाहेंगी.
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