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सिर पर नहीं थी छत तो कोई भूखे पेट खेला, IPL के ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’

आईपीएल ने इन बेहद सामान्य घरों से आने वाले युवाओं को रातों रात स्टार बना दिया

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आईपीएल का आगाज हो चुका है. अगले दो महीने सिर्फ बात होगी तो आईपीएल की. पिछले दस सालों से ये क्रिकेट लीग ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रेमियों को अपनी ओर लुभाता आ रहा है. अप्रैल और मई का महीना क्रिकेट प्रशंसकों के लिए किसी त्योहार वाले महीने से कम नहीं है. यहां तक की बॉलीवुड के बड़े बड़े कलाकार भी अपनी फिल्मों को इस दौरान बड़े पर्दे पर रिलीज करने से कतराते हैं.

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आईपीएल एक ऐसा मंच है जो सिर्फ 3 घंटे के अंदर किसी युवा खिलाड़ी की घर-घर में पहचान बना सकता है. एक ऐसा खिलाड़ी जिसे कल तक कोई जानता भी नहीं था सिर्फ एक मैच में टीम को जीत दिलाने के बाद बन जाता है हीरो और पिछले दस सीजन में ऐसा कई बार हुआ है. ये है आईपीएल का जादू.

आईपीएल ने कुल 10 साल का अपना पहला पड़ाव पूरा कर लिए और इस 11 वें सीजन के साथ ही अगली मंजिलों की ऊंचाईयों को छूने के लिए निकल चुका है. इस पूरे महीने इस क्रिकेट फेस्टिवल में कई पहलुओं पर बात होगी लेकिन आज हम बात करेंगे कुछ ऐसे खिलाड़ियों की जिनकी तकदीर आईपीएल ने बदल दी.

इस लीग ने हमें कई अद्भुत कहानियां दी हैं - रंक से राजा बनने की. ये क्रिकेट के ऐसे युवा खिलाड़ियों की कहानियां हैं, जो चुनौतियों का सामना करते हुए और सभी बाधाओं के बावजूद भारत में लाखों लोगों को सामने अपना कौशल और योग्यता साबित करने में सफल रहे.

अशोक डिंडा

अशोक डिंडा ने जब स्कूल में पहला कदम रखा ही था की उनके पिता की मौत हो गयी. घर में किसी तरह की कोई सेविंग्स नहीं थी और बड़े भाइयों को पैसे कमाने के लिए दूसरे शहरों में जाना पड़ा, ऐसे में क्रिकेट के बारे में सोचना भी किसी के लिए मुश्किल होगा. लेकिन उन्होंने अपने शौक को करियर में तब्दील किया और कोलकाता में अपने सम्बन्धियों से मिली थोड़ी बहुत मदद की बदौलत क्रिकेट को अपने जीवन के कई साल दिए.

डिंडा को कोलकाता नाइट राइडर्स के नेट सेशन के लिए बुलाया गया था. साल 2008 में रिकी पॉन्टिंग ने डिंडा की क्षमता को पहले परखा और कोच जॉन बुकानन को उसके बारे में बताया. पोंटिंग के इशारे पर डिंडा, जिसे रणजी ट्रॉफी में बंगाल के लिए खेलने का मौका नहीं मिला था, उन्हें आईपीएल का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया. उन्होंने आईपीएल के पहले सीजन में सभी को प्रभावित किया और अगले कुछ वर्षों में बंगाल और भारत के लिए खेलना शुरू कर दिया.

नाथू सिंह

मुंबई इंडियंस के लिए खेलने वाले 22 वर्षीय नाथू सिंह ने बचपन में राजस्थान के एक कारखाने में काम किया. पिता से मिली क्रिकेट किट के पैसे को वापस करने के लिए पार्ट टाइम की नौकरियां की. नाथू बताते हैं कि वो काम और क्रिकेट खेलने के सिलसिले में ज्यादातर अकेले ट्रेन में सफर किया करते थे. वो ये भी कहते है की बॉलर होने की वजह से क्रिकेट में उनका खर्चा कुछ ज्यादा नहीं था. आखिरकार उनकी मेहनत रंग लायी.

उनके सपने सच तब हुए जब उन्हें दलीप ट्रॉफी में खेलने का मौका मिला. वे दिलीप ट्रॉफी में गुलाबी गेंद से 5 विकेट लेने वाले एकमात्र भारतीय गेंदबाज बन गए. इस प्रदर्शन ने आईपीएल टीम के मालिकों का ध्यान आकर्षित किया और मुंबई इंडियंस ने उन्हें 9वें सीजन में 3.2 करोड़ रुपये में साइन किया. नाथू ने शायद ही इससे पहले अपनी जिन्दगी में दस लाख की रकम एक साथ देखी होगी.

मोहम्मद सिराज

कहते हैं ना मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में उड़ान होती है. ऐसा ही 22 साल के मोहम्मद सिराज के साथ हुआ. सिराज के पिता ऑटो चलाते थे लेकिन पिता ने बेटे के भारत के लिए गेंदबाजी करने के सपने को पूरा करने में अपनी पूरी जिन्दगी लगा दी. सिराज को जिस दिन आईपीएल नीलामी में सनराइजर्स हैदराबाद ने दो करोड़ 60 लाख रूपये में खरीदा तो उनका केवल एक ही सपना था कि वो अपने पिता मोहम्मद गौस को आगे कभी आटो रिक्शा नहीं चलाने देंगे और उन्होंने अपना वादा निभाया. पिछले साल न्यूजीलैंड के खिलाफ टी20 सीरीज में चुने जाने के बाद सिराज ने कहा था...

“मुझे गर्व है कि 23 साल की उम्र में मैं अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा सकता हूं. जिस दिन मुझे आईपीएल का कॉन्ट्रैक्ट मिला था उस दिन मैंने अपने पापा से कहा था कि अब उन्हें काम करने की जरूरत नहीं है और आप आराम करो. और हां मैं अपने परिवार को नए घर में भी ले आया हूं’’

ऋषभ पंत

1997 में जन्मे ऋषभ पंत उत्तराखंड के रहने वाले हैं. क्रिकेट खेलने की वजह से 12 वर्ष की उम्र में, वो अपनी मां के साथ दिल्ली चले आये क्योंकि उनके होमटाउन में क्रिकेट के बुनियादी ढांचे की बहुत कमी थी. जब वे पहली बार दिल्ली पहुंचे, उन्हें कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि वहां वो किसी को जानते तक नहीं थे. उन्हें कई महीने गुरुद्वारे के परिसर में बिताने पड़े. हालांकि, भाग्य ने ऋषभ का साथ दिया और उन्हें तारक सिन्हा के क्रिकेट क्लब "द सोनेट क्लब" में ट्रेनिंग करने का मौका मिल गया.

स्कॉलरशिप की बदौलत दिल्ली के चर्चित एयर फाॅर्स स्कूल में एडमिशन भी मिल गया. 2016 में रणजी सीजन में जबरदस्त प्रदर्शन के बाद इस विकेटकीपर बैट्समैन को दिल्ली डेयरडेविल्स ने 1.9 करोड़ रुपये देकर टीम में शामिल कर लिया और आज उन्हें टीम इंडिया में पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है.

हार्दिक पांड्या

हार्दिक के पिता एक व्यवसायी थे लेकिन हार्दिक के बड़े भाई क्रुणाल पांड्या को क्रिकेटर बनने के लिए उन्हें अपना बसे बसाये व्यापार को सूरत से बड़ौदा लाना पड़ा. हार्दिक का उस समय तक क्रिकेट खेलने का कोई इरादा नहीं था. हार्दिक अपने भाई के साथ मौज मस्ती करने के लिए एकेडमी जाया करते थे. इसी बीच कोच किरण मोरे की नजर हार्दिक पर पड़ी और उन्होंने उसे कहा की तुम्हें भी अपने भाई की तरह क्रिकेट खेलना चाहिए. इसके बाद हार्दिक पांड्या ने क्रिकेट की दुनिया में अपना पहला कदम रखा. परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी और पांड्या ब्रदर्स को कई-कई दिन सिर्फ मैगी खाकर मैदान में पूरा दिन बिताना पड़ता था. आर्थिक अभाव के बावजूद धीरे धीरे उन्होंने बड़ौदा क्रिकेट में अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी.

2013 में उन्हें बड़ौदा क्रिकेट टीम में खेलने का मौका मिला जहां उन्होंने अच्छा प्रदर्शन कर आईपीएल टीमों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. फिर उन्हें 2015 में मुंबई इंडियंस द्वारा चुना गया और उसके बाद इन्होने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आईपीएल में मुंबई इंडियंस की तरफ से खेलते हुए हार्दिक पांड्या ने कोच जॉन राइट और रिकी पोंटिंग को काफी प्रभावित किया. आईपीएल सीजन 2015 में अच्छे प्रदर्शन की बदौलत हार्दिक को ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जाने वाली टी-20 टीम इंडिया में मौका मिला. आज वो भारतीय क्रिकेट की सबसे हॉट प्रॉपर्टीज़ में से एक हैं.

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