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कैसे शुरू हुआ खेल कबड्डी और कैसे मिली खेल को इतनी सफलता?

भारत में कबड्डी को महाभारत से जोड़ा जाता है. अभिमन्यु ने कौरवों के रचे गए चक्रव्यूह (सुरक्षा घेरा ) को तोड़ा था.

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हम में से कई लोग जो कबड्डी के खेल को देखते आए हैं उन्होंने पिछले तीन-चार सालों में इसे बदलते हुए देखा है. हमें एकबारगी याद आता है धूल से भरे जमीन पर खेलते खिलाड़ी और अब स्पोर्ट्स एरिना में चमकदार जर्सी पहने खिलाड़ी और सेलिब्रिटी आंखों के सामने घूमते हैं. कबड्डी को लेकर बदलते खयाल का कारण बेशक प्रो कबड्डी लीग है.

ये लीग 2014 में लाॅन्च किया गया था. आईपीएल के बाद इसे गढ़ा गया. अब ये सिलसिला पांचवे सीजन में पहुंच गया है. (वो भी चार नए टीमों के साथ, कुल 12 टीमें)खेल पर काफी रकम भी खर्च किए गए.

अब चलिए थोड़ा पीछे चलते हैं और इस खेल के इतिहास के बारे में जानते हैं जिसने लोकप्रिय क्रिकेट से काफी पहले उपमहाद्वीपों में प्रवेश पा लिया था.

इस खेल को अलग-अलग इलाकों में सिर्फ कबड्डी ही नहीं बल्कि 'हू-तू-तू ',' हा-डू-डू 'और 'चेडु-गुडु' नाम से जाना जाता है.

इतिहास और पौराणिक कनेक्शन

एनर्जी और स्पीड वाले इस खेल की जड़ें प्रीहिस्टोरिक टाइम या वैदिक युग, लगभग 3,000-4,000 साल पहले मिलती है. भारत में इस खेल को महाभारत से जोड़ा जाता है. उदाहरण दिया जाता है कि अर्जुन के बेटे अभिमन्यु ने कौरवों के रचे गए चक्रव्यूह (सुरक्षा घेरा )को तोड़ा था. युद्ध के दौरान अभिमन्यु मारे गए थे. यह कबड्डी का खेल याद दिलाता है.

वैसे तो कबड्डी को भारतीय खेल माना जाता है लेकिन इसके जन्म को लेकर अभी भी विवाद है. खेल में भारत का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी ईरान इस बात को नकारता है कि कबड्डी ने भारत में जन्म लिया.

प्रो कबड्डी लीग के ईरानी प्लेयर मेराज शेख का कहना है कि उनके होमटाउन सिस्तान में इस खेल का जन्म लगभग 5000 साल पहले हुआ था. ESPN से बातचीत में वो कहते हैं कि ईरान इस खेल की असली जन्मभूमि है ना कि भारत और इसका जिक्र कई पुरानी किताबों में भी किया गया है.
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माॅडर्न कबड्डी: फेडरेशन और वर्ल्डकप

हालांकि भारत में कबड्डी के मौजूदा स्वरूप का श्रेय महाराष्ट्र को जाता है. 1915 से 1920 के बीच कबड्डी के नियम बनने शुरू हुए.

  • बर्लिन ओलंपिक्स-1936 में शामिल होने के बाद खेल को बढ़ावा मिलने लगा.
  • उसके बाद 1938 में कलकत्ता में इंडियन नेशनल गेम्स में कबड्डी शामिल किया गया.
  • देश की स्वतंत्रता के बाद 1950 में ‘आल इंडिया कबड्डी फेडरेशन’ (ए.आई.के.एफ.) बना जिसके तहत कबड्डी के औपचारिक नियम तय किए गए.
  • ए.आई.के.एफ.आगे चलकर 1972 में ‘द अमेच्योर कबड्डी फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (ए.के.एफ.आई.) में बदल गया.

नेशनल लेवल तक अपना डंका बजाने वाले इस खेल कबड्डी ने विश्व-स्तर पर अपनी पहचान बनानी शुरू की.

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नई-नई आजादी पाए बांग्लादेश ने इस खेल को अपना राष्ट्रीय खेल बना लिया. 1978 में एशियन अमेच्योर कबड्डी फेडरेशन बनने के बाद पहला एशियन कबड्डी चैम्पियनशिप 1980 में हुआ. 1982 में दिल्ली में खेले गए एशियन गेम्स में इसे जगह मिली. वहीं बीजिंग में 1990 के एशियन गेम्स में कबड्डी को शामिल किया गया.

‘मेनस्ट्रीम खेल’ कबड्डी

पहला कबड्डी वर्ल्डकप साल 2004 में खेला गया. दूसरा 2007 में और तीसरा साल 2016 में. काफी बड़े स्केल पर खेल को आॅर्गनाइज किया गया और हर बार पहले की तुलना में बेहतर परिणाम सामने आए.

2014 में मेनस्ट्रीम खेल बनने की ओर बढ़ते इस खेल को और भी ऊंचाईयां मिली. लीग की वजह से न सिर्फ घरेलू दर्शक मिले बल्कि इंटरनेशनल आॅडियंस ने भी कबड्डी को सराहा.

महिला कबड्डी को भी हाल के कुछ सालों में काफी प्रोत्साहना मिली. पहला एशियन वीमेन चैंपियनशिप 2005 में खेला गया. साल 2012 में महिलाओं ने पहला वर्ल्डकप भी खेला. प्रो कबड्डी लीग से प्रेरणा लेकर वीमेन कबड्डी चैलेंज की शुरूआत साल 2016 में की गई.

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मिलेगा और एक्सपोजर

इंटरनेशनल लेवल पर कबड्डी आगे बढ़ रहा है साथ ही भारत इस खेल में अव्वल बना हुआ है. महिला और पुरुष दोनों ने सारे वर्ल्डकप जीते. इसके साथ ही एशियन गेम्स से भी कई गोल्ड मेडल्स देश के लिए लाए गए.

ज्यादा एक्सपोजर को देखते हुए ईरान और बांग्लादेश धीरे-धीरे इस खेल पर अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटे हुए हैं जो भारतीय टीम के लिए आने वाले समय में एक बड़ा चैलेंज लेकर आएगी.

भारत का दबदबा इस खेल में कायम रहेगा या नहीं इन बातों को किनारे करते हुए एक बात तय कर लेनी चाहिए. इतना तो साफ है कि भविष्य में यह खेल और भी ज्यादा एक्साइटिंग और काॅम्पटीटिव होने वाला है.

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