भारत की निकहत जरीन (#NikhatZareen) ने महिला विश्व चैंपियनशिप के 52 किग्रा वर्ग मुकाबले में गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास रचा है. तुर्की के इस्तांबुल में खेले गए फाइनल मुकाबले में Nikhat Zareen ने थाईलैंड की जितपोंग जुतामास को हराया.
मैरी कॉम, सरिता देवी, जेनी आरएल और लेख केसी के बाद Nikhat Zareen विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने वाली केवल पांचवीं भारतीय महिला मुक्केबाज बन गईं हैं. इस जीत के बाद निकहत ने मीडिया से बात किया.
बुरे दौर में कोई मेरी तरफ नहीं था- निकहत
निकहत ने काहा- "जीत के बाद मैं अपने माता-पिता के बारे में सोच रही थी. मैं जब भी फोन करती तो मेरी मां मेरे लिए दुआ करने लगती. आज, भगवान ने उनके सपनों को साकार किया है. मैं बहुत खुश हूं. हर कोई जानता है कि मेरे पिता ने भी कितना सहयोग दिया है."
निकहत ने कहा कि ये जीत मेरे परिवार के समर्थन के कारण है.
"मुझे याद है जब मैं बुरे दौर से गुजर रही थी तो मेरे माता-पिता और मेरे परिवार के अलावा कोई भी मेरी तरफ खड़ा नहीं था. अपने बाउट के बाद, मैं बस उन्हें गले लगाना चाहती थी."निकहत जरीन
'मुझे दिन में ही लग रहा था कि मैं जीत रही हूं'
निकहत ने आगे कहा कि "जब मैं सो कर उठी तो मैंने सबसे पहले ऊपर वाले को याद किया और मन में सोचा कि आज फाइनल का दिन है और आज ही इतिहास बनाना है. मैंने पूरे दिन महसूस किया कि मेरा हाथ उठ रहा है फाइनल में और मैं जीत रही हूं. मुझे लगता है कि मैं इसी के चलते में रिंग में अच्छा कर पाई. मैं नर्वस थी, लेकिन फाइनल के लिए उत्सुक भी थी."
उन्होंने आगे कहा कि पिछले 2 साल में मैंने अपने आप पर ज्यादा फोकस किया है. मैंने अपनी कमजोरियों पर काम किया. मुझे अपने हारने की वजहें पता थीं, इसलिए मैंने उनपर काम करके खुद को स्ट्रांग कर लिया.
जिले में न ट्रैक था, न कोच
अपने बॉक्सिंग करियर की शुरुआत के बारे में बात करते हुए निकहत ने कहा- "बॉक्सिंग से पहले मैं एथलेटिक्स में थी, लेकिन मैं जिस जिले से थी उसमें कोई ट्रैक या अच्छा कोच नहीं था, तो मैं अपने पिता के साथ ही ट्रेनिंग करती थी, लेकिन जहां पर में ट्रेनिंग करने जाती थी तो वहां पर एक बार अर्बन गेम्स चल रहे थे. मैंने देखा कि वहां बॉक्सिंग को छोड़कर हर खेल में लड़कियां थी, तब मैंने अपने पिता से सवाल किया कि लड़कियां बॉक्सिंग में क्यों कर सकतीं.
निकहत बताती हैं कि तब पिता ने कहा कि लोग सोचते हैं कि "लड़कियां बॉक्सिंग में जाने के लिए कमजोर होती हैं. इसी चीज ने मुझे चैलेंज किया बॉक्सिंग लेने के लिए. मैं बचपन से ही काफी जिद्दी और शरारती थी. मैंने लड़का और लड़की में कभी फर्क नहीं देखा तब जाकर मैंने अपने पिता से बात करके बॉक्सिंग में आने का फैसला कर लिया."
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