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पुलेला गोपीचंद:इंडियन बैडमिंटन को शिखर तक पहुंचाने वाले कोच का सफर

रोचक तरीके से हुई थी बैंडमिंटन की दुनिया में पुलेला गोपीचंद की एंट्री

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पूरे देश में इस वक्त पीवी सिंधु की जीत का जश्न है. वह BWF वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय बनी हैं. सिंधु की सफलता के जश्न के बीच एक ऐसे शख्स का भी जिक्र हो रहा है, जिनकी जिंदगी का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं रहा है. ये शख्स हैं- सिंधु के कोच पुलेला गोपीचंद.

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भारतीय बैंडमिंटन के द्रोणाचार्य कहे जाने वाले गोपीचंद की गिनती उन लोगों में होती है, जिनके खुद के ख्वाब भले ही अधूरे रह गए, लेकिन उन्होंने देश के ख्वाब पूरे किए. गोपीचंद ने सिंधु के अलावा सायना नेहवाल, श्रीकांत किदांबी, पारुपल्ली कश्यप, एचएस प्रणॉय और साई प्रणीत जैसे खिलाड़ियों को कोचिंग दी है.

रोचक तरीके से हुई थी बैंडमिंटन की दुनिया में एंट्री

बैंडमिंटन की दुनिया में आना गोपीचंद की जिंदगी का एक टर्निंग प्वाइंट था. नेसकॉम इंटरनेशनल SME कॉन्क्लेव 2019 में उन्होंने बताया

‘’मेरे माता-पिता सबसे पहले मुझे एक क्रिकेट कोचिंग कैंप ले गए थे, लेकिन वहां एडमिशन पूरे हो चुके थे. अगला पड़ाव एक टेनिस कोर्ट था, जिसके बाहर बहुत कारें खड़ी थीं, उन्होंने सोचा कि टेनिस काफी महंगा खेल है. इसके बाद वे मुझे बैंडमिंटन कोर्ट ले गए, जिसके बाहर कोई भी कार नहीं खड़ी थी. मेरे माता-पिता ने सहज महसूस किया और मुझे एडमिशन मिल गया.’’
पुलेला गोपीचंद
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हर कोच से सीखा कुछ नया

गोपीचंद के पहले कोच हामिद हुसैन थे. उन दिनों हुसैन अक्सर गोपीचंद को चूहा कहकर पुकारते थे. गोपीचंद के मुताबिक, हुसैन वो कोच थे, जिन्होंने उन्हें खेल का कोई भी तकनीकी पहलू सिखाने से पहले खेल से प्यार करना सिखाया था.

हुसैन के बाद सैयद मोहम्मद आरिफ ने गोपीचंद को कोचिंग दी थी. गोपीचंद बताते हैं कि उन्होंने आरिफ से ही अनुशासन की सीख ली थी. बैंडमिंटन की अहम बारीकियां सिखाने का श्रेय गोपीचंद प्रकाश पादुकोण को देते हैं. पादुकोण ने भी गोपीचंद को कोचिंग दी थी.

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वो चोट, जिसके बाद लोगों ने कहा था- अब वापसी करना नामुमकिन

साल 1994 में गोपीचंद के घुटने में चोट लगी थी, जिसके चलते 1994 से लेकर 1998 तक 3 बार उन्हें सर्जरी से गुजरना पड़ा.

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करियर के उतार-चढ़ाव

  • गोपीचंद ने साल 1996 में पहला नेशनल चैंपियनशिप टाइटल जीता था. उन्होंने साल 2000 तक लगातार 5 बार इस खिताब को जीता
  • कॉमनवेल्थ गेम्स 1998: गोपीचंद ने मेन्स टीम में सिल्वर मेडल जीता, जबकि मेन्स सिगल्स में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया
  • साल 2000 के ओलंपिक में सफलता ना मिलने से काफी निराश हुए थे गोपीचंद
  • साल 2001 में गोपीचंद ने ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन खिताब जीता. प्रकाश पादुकोण के बाद इस खिताब को नाम करने वाले वह दूसरे भारतीय बने
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जब 3 महीने तक पीवी सिंधु को उनके फोन से दूर रखा

गोपीचंद ने सिंधु से किस तरह अनुशासन का पालन कराया है, इसे जानिए के लिए रियो ओलंपिक 2016 के बाद गोपीचंद का एक बयान पढ़िए-

‘’सिंधु के पास पिछले 3 महीनों के दौरान उनका फोन नहीं था. सबसे पहले मैं उनका फोन लौटाऊंगा. मैंने उन्हें मीठा दही खाने से रोका था, जिसे वो काफी पसंद करती हैं. मैंने उन्हें आइसक्रीम खाने से भी रोका था. अब वह जो भी चाहें, खा सकती हैं.’’
पुलेला गोपीचंद

गोपीचंद के इस कड़े अनुशासन का नतीजा था- उस ओलंपिक में सिंधु को मिला सिल्वर मेडल.

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मिल चुके हैं ये अवॉर्ड

पुलेला गोपीचंद को ये बड़े अवॉर्ड मिल चुके हैं

  • 1999 में अर्जुन अवॉर्ड
  • 2000-2001 का राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड
  • 2005 में पद्मश्री अवॉर्ड
  • 2009 में द्रोणाचार्य अवॉर्ड
  • 2014 में पद्मभूषण अवॉर्ड
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संन्यास लेने के बाद भी गोपीचंद ने अपनी अनुशासित दिनचर्या नहीं छोड़ी है. पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन अकैडमी में रहने के दौरान सुबह 4 बजे से ही उनका दिन शुरू हो जाता है. इस अकैडमी को उन्होंने अपना घर गिरवीं रखकर खड़ा किया था और एक कोच के तौर पर अपनी पारी शुरू की थी. एक खिलाड़ी के तौर पर गोपीचंद के जो ख्वाब अधूरे रह गए थे, उनको अब वह अपनी कोचिंग के जरिए पूरा कर रहे हैं.

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