भारत का ऑस्ट्रेलियाई दौरा एक ऐसे रोमांचक टी-20 श्रृंखला के बाद आता है, जो 1-1 की बराबरी पर समाप्त हुई लेकिन ये तो बस टीजर था. असली एक्शन तो 6 दिसंबर को शुरू होगा, जब टीम इंडिया ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट टीम से भिड़ेगी. उस टीम से जो स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर के बिना मैदान पर उतर रही है. ये वे दो खिलाड़ी हैं, जो दुनिया के सबसे प्रभावशाली बल्लेबाजों में शुमार हैं. निश्चित तौर पर ये दोनों खिलाड़ी मौजूदा ऑस्ट्रेलिया टीम में सर्वश्रेष्ठ हैं.
इसी साल मार्च महीने में न्यूलैंड्स में हुए बॉल टेंपरिंग विवाद के बाद से ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहा है और हर भारतीय समर्थक इस बार ऑस्ट्रेलिया में इतिहास रचे जाने की उम्मीद में है. किसी अन्य कहानी की तरह ही इस कहानी में भी कई सारे सब-प्लॉट्स हैं. ठीक उसी तरह से जैसा कि टेस्ट क्रिकेट में रोहित शर्मा का कमबैक. मुंबई का ये दिग्गज आधुनिक क्रिकेट का आइकन है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट की लाल गेंद उसके लिए चुनौती रही है, जिसे अब ये बल्लेबाज पार करना चाहता है.
ये थोड़ा निराशाजनक है कि क्यों नहीं रोहित शर्मा जैसी क्लास और क्षमता का बल्लेबाज क्रिकेट के सबसे लंबे फॉर्मेट में अपना दबदबा बना पाया. रोहित के अंदर वो सारे गुण हैं, जो एक अच्छे टेस्ट क्रिकेटर में होने चाहिए, लेकिन किसी कारण से ये उनके लिए काम नहीं कर पा रहा है.
लोगों की सोच में यही अंतर है कि वे रोहित से छोटे फॉरमेट्स में अच्छा करने की उम्मीद करते हैं, लेकिन जब टेस्ट क्रिकेट की बात आती है तब हर किसी को यही लगता है कि रोहित फेल हो जाएंगे. पूर्व भारतीय क्रिकेटर प्रवीण कुमार ने एक बार कहा था- “भारत में क्रिकेटर से ज्यादा उसकी हवा चलती है”
कुमार उस बात की तरफ ध्यान दिला रहे थे कि भारतीय क्रिकेट में लोगों की सोच बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. टेस्ट क्रिकेट में रोहित शर्मा इसी सोच के शिकार रहे हैं. कहीं-न-कहीं हर कोई सोचता है कि उनमें वो बात नहीं है, जो एक टेस्ट क्रिकेटर में होनी चाहिए. उनको जो मौके मिले वो अलग-अलग वक्त में थे और हर मौके पर यही सोचा गया कि उनको कुछ साबित करना है. इसी कारण रोहित अपना स्वाभाविक खेल नहीं खेल पाए.
रोहित दो तरह की सोच के बीच फंसे हुए हैं- अपना स्वाभाविक आक्रामक खेल खेलें और गेंद को उसकी मेरिट से खेलें या फिर एक अच्छा डिफेंसिव गेम अपने लिए इजाद करें ताकि टेस्ट क्रिकेट के भूत पर विजय हासिल कर सकें.
आलोचक भी अपना काम करते रहे हैं. भारत साउथ अफ्रीका के खिलाफ इस साल की शुरुआत में एक टेस्ट सीरीज हारा. विराट कोहली के अलावा कोई भी खिलाड़ी अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा सका लेकिन रोहित का टीम में शामिल होना सबसे ज्यादा बहस का विषय बना.
टेस्ट क्रिकेट के लिहाज से उनकी तकनीक पर सबसे ज्यादा सवाल उठे और वो इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में नजर नहीं आए. जबकि वे टेस्ट सीरीज से पहले उसी इंग्लैंड की टीम के साथ हुए टी-20 और एकदिवसीय सीरीज में एकमात्र भारतीय थे, जिन्होंने शतक लगाया.
भारतीय क्रिकेट को रोहित की जरूरत है
रोहित इस दौरे में एक अच्छे दिमाग के साथ उतरेंगे और जरूरत इस बात की है कि हमेशा अपने आसपास पॉजिटिविटी को बनाए रखें. 2017 में जब उन्हें मौका मिला, उन्होंने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया न केवल बल्लेबाजी में बल्कि कप्तानी के तौर पर भी.
लोग उनकी तकनीक और टेंपरामेंट के बारे में जो कहना चाहें कह सकते हैं, लेकिन मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि वह उनमें से किसी पर भी यकीन नहीं करते हैं और उससे भी जरूरी बात यह कि उन्हें इस चीज से फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि लोग एक टेस्ट क्रिकेटर के रूप में उनके बारे में क्या सोचते हैं. अगर क्रिकेट की कॉपीबुक तकनीक ही टेस्ट क्रिकेट में बेहतर करने का एकमात्र विकल्प होता, तो वीरेंद्र सहवाग जैसे खिलाड़ी को 100 टेस्ट मैच नहीं खेलना चाहिए था.
विराट कोहली के बाद रोहित शर्मा इस दौर के श्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक हैं. समय-समय पर उन्होंने अपनी परिपक्वता और कप्तानी की प्रतिभा बखूबी दिखाई है. भारतीय टीम अभी भी अपने बल्लेबाजी क्रम में स्थिरता ढूंढ रही है. विराट और अजिंक्या रहाणे के अलावा रोहित शर्मा में हर वो प्रतिभा है, जिसके बूते वो इस भार को उठा सकते हैं.
भारतीय क्रिकेट को एक ऐसे रोहित की जरूरत है, जो विश्वास से भरा, खुद को टीम में सुरक्षित महसूस करने वाला और दिमागी तौर पर खुश हो. हर किसी को अपने आसपास एक शांति की जरूरत होती है और रोहित को भी कुछ समय और स्पेस की जरूरत है, जहां से कि वो टेस्ट क्रिकेट में अपना मैजिक दिखा सकें. ऑस्ट्रेलिया के इस दौरे पर इससे बेहतर कुछ भी नहीं होगा कि ‘हिटमैन’ अपनी क्षमता के अनुरूप खेले.
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