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OMG! जब लेन पॉस्को की बाउंसर ने संदीप पाटिल को अस्पताल पहुंचाया

संदीप पाटिल से खुद सुनिए वो किस्सा जब ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन्हें एक के बाद एक बाउंसर का सामना करना पड़ा

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1980 में जब मैं ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुना गया, तब मैंने केवल कप्तान सुनील गावस्कर के साथ बातचीत की थी कि मैं तेज गेंदबाजों का सामना कर पाऊंगा या नहीं. मुझे नहीं पता था कि मैं गेंद देख पाऊंगा कि नहीं. मुझे महसूस हुआ कि सुनील से बात करना सही है क्योंकि उन्होंने सफलतापूर्वक उनका सामना किया है और कई शतक बनाए हैं. सुनील ने मुझे सामान्य सलाह दी कि अगर तुम अपनी आंखें खुली रखोगे तो तुम स्थिति से निबट लोगे.

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सिडनी में पहले टेस्ट मैच के दौरान मुझे डेनिस लिली, रोडनी हॉग और लेन पॉस्को की लयबद्ध गेंदबाजी का सामना करना था. ये तीनों सुपर तेज गेंदबाज थे और एक बार फिर मैं बिना हेलमेट के उनका सामना कर रहा था. हमने पहले बल्लेबाजी की, तेजी से विकेट खोए और मुझे याद है जब मैं बल्लेबाजी करने चौथे नम्बर पर उतरा. चायकाल से पहले की आखिरी गेंद पर जब मैं 65 के स्कोर पर था रोडनी हॉग की एक बाउंसर मेरे गले में आकर लगी और मैं गिर पड़ा. जैसे ही चायकाल में ड्रेसिंग रूम में घुसा, मेरे ड्रेसिंग रूम में मुझे चौंकाते हुए सर गैरीफील्ड सोबर्स वहां मौजूद मिले. उन्होंने पहली प्रतिक्रिया यही दी, “वेल डन ब्वॉय, कीप इट अप”.

मेरे दिमाग में चायकाल से पहले की आखिरी गेंद अब भी ताजा थी. सभी साथी खिलाड़ियों ने मुझे हेलमेट पहनने को कहा था. मैंने सुनील से पूछा कि क्या करना है और इस बार भी उनकी सलाह बहुत साधारण थी- “अगर तुम्हें अपने आप पर भरोसा है, दूसरे क्या कह रहे हैं उसे नहीं सुनो.” लेकिन, सच्चाई यह भी थी कि हेलमेट उपलब्ध नहीं था, इसलिए मैंने बिना हेलमेट के ही मैदान में प्रवेश किया और गेंदबाज के रूप में लेन पॉस्को एक बार फिर सामने थे.

खिलाड़ी की सबसे बड़ी भूल वह होती है जब उसके दिमाग में दो बातें चल रही होती हैं. ब्रेक के दौरान सारी बातों ने मुझे असमंजस में डाल दिया. इस बीच मैदान में पहली गेंद एक बार फिर बाउंसर थी और मैं एक बार फिर दो सोच में पकड़ लिया गया कि गेंद की राह से हट जाऊं या कि झुक जाऊं.

मैं फंस गया और मेरे बाएं कान में गेंद आ लगी और मैं गिर गया. मैंने देखा कि ग्रेग चैपल और रोडनी हॉग मेरी मदद के लिए आगे आए और कुछ मिनटों के बाद ही असिस्टेन्ट मैनेजर बापू नाडकर्णी और डॉक्टर स्नेथिल मेरी मदद की कोशिश करते दिखे. मजे की बात जो मुझे अब भी याद है कि बाबू नाडकर्णी मुझसे पूछ रहे थे कि कहीं मुझे चोट तो नहीं लगी. योगराज सिंह (युवराज के पिता) मुझसे कह रहे थे “ऐ सैंडी कुछ नहीं हुआ”. वे वहीं नहीं रुके. उन्होंने उठने में और ड्रेसिंग रूम तक पैदल चलकर पहुंचने में मेरी मदद की. जबकि, यह बना-बनाया नियम सबको मालूम है कि जब किसी को सिर में चोट लगती है तो उसे स्ट्रेचर पर ले जाया जाना चाहिए और पैदल चलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

मेरे पास अब भी बापू नाडकर्णी और योगराज सिन्हा की वह तस्वीर है जो मुझे ड्रेसिंग रूम तक ले जा रहे हैं और कुछ कदमों के बाद मैं फिर गिर पड़ा. मुझे होश में आना भी याद है जब डॉक्टरों ने मुझे स्टील प्लेट पर चलने को कहा और जैसे ही उन्होंने मुझे लड़खड़ाते देखा, उन्होंने मुझे फिर बेहोश कर दिया.

अगली सुबह जब मैं अस्पताल के अपने कमरे में जागा, मैंने सबसे पहले लेन पॉस्को को देखा और उनके साथ थे सुनील गावस्कर, हमारे मैनेजर दुर्रानी और बापू नाडकर्णी. मैं चकित रह गया. वही गेंदबाज वहां खड़ा था, जिसने मुझे चोट पहुंचायी और जो जानना चाहता था कि मैं ठीक हूं कि नहीं. उनके लिए मुझे सही सलामत देखना बहुत सुखद था. एक और आश्चर्य हुआ जब मुझे सिडनी ट्रैवल लॉंज से कॉल आया जहां मेरे ज़ख्मों का इलाज चल रहा था. सुनील ने मुझे ये कहने के लिए फोन किया कि ड्रेसिंग रूम में मेरी जरूरत है और मैं बैटिंग करूंगा. ईश्वर का शुक्रगुजार हूं कि मेरी पैंट गीली नहीं हुई शायद सुनील का यह महान् फैसला था.

इस बीच मैंने अपने माता-पिता से बात की, जो मेरी तबीयत के बारे में जानने को बेचैन थे. मेरे पिता (अब स्वर्गीय) ने कहा, “तुम शिवाजी पार्क वाले बच्चे हो. भागना मत.” जब ज्यादातर क्रिकेट पंडितों को इस बात पर संदेह था कि मैं मैदान पर आ सकूंगा या नहीं, मैं किसी तरह दूसरी पारी में मैदान पर लौट आया. मेरे पिता और सुनील का आभार कि मैं लौटा और लोगों ने खड़े होकर दोबारा मैदान में प्रवेश करते समय मेरा स्वागत किया.

गेंदबाज थे डेनिस लिली. और हां, पहली गेंद एक बार फिर बाउंसर थी. मैंने अपना बल्ला हवा में घुमाया, बल्ले के किनारे से गेंद छू गयी लेकिन डॉग वाल्टर्स ने कैच गिरा दिया और हमें 4 रन मिल गये. जो शाबाशी मुझे मिली, मैं उसे कभी नहीं भूल सकता. दूसरी गेंद एक बार फिर बाउंसर थी लेकिन इस बार मैं फॉरवर्ड शॉर्ट लेग पर वुड के हाथों कैच हो गया. मेरे दिमाग में चल रहा था कि मैंने आत्मसमर्पण कर दिया था.

जब मैं लौट रहा था मुझे पता था कि मैं असफल हो गया, लेकिन सुनील गावस्कर मुझे लेने बाउन्ड्री लाइन पर आए और उनके शब्द थे, “संदीप, बहुत खूब, तुमने उनका सामना किया.” दूसरा टेस्ट शुरू होने में हफ्ते भर का समय था जिस दौरान मैंने हेलमेट पहना और इसके इस्तेमाल का अभ्यास किया. यह एडिलेड टेस्ट था और यहां मैंने तय किया कि ऑस्ट्रेलिया में आक्रामकता ही सबसे बड़ा बचाव है. लिली, हॉग और पॉस्को ने जितनी बार बाउंसर फेंके, मैंने उन्हें हुक किया और रन बनाए. मैंने उस मैच में 174 रन बनाए. इसलिए ऑस्ट्रेलिया जा रही इस टीम को मेरी सलाह है कि टीम में प्रतिभाएं भरी पड़ी हैं जो आग के साथ उसी अंदाज में खेल सकती हैं. ये लड़के जीनियस हैं. अगर मैं मैच में रह सकता हूं और स्कोर कर सकता हूं तो आज के भारतीय बल्लेबाजों में तकनीकी क्षमता और प्रतिभा है जो विरोधी टीम को रौंद सकती है.

भारतीय टीम को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की शुभकामनाएं!

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