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अंशु पहलवान की कहानी, वर्ल्ड चैंपियनशिप फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला

19 वर्षीय अंशु मालिक ने 57 किलोग्राम वर्ग में सेमीफाइनल में जीत कर एक मैडल पक्का कर लिया है.

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पहलवान अंशु मलिक (Anshu Malik) ने 6 अक्टूबर को विश्व रेसलिंग चैंपियनशिप (World Wrestling Championship) के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनकर इतिहास रच दिया.

19 साल की अंशु मालिक ने 57 किलोग्राम वर्ग में सेमीफाइनल में जीत कर एक मैडल पक्का कर लिया है.

उन्होंने जूनियर यूरोपीय चैंपियन सोलोमिया विनीक को हरा दिया, जबकि सरिता मोर सेमीफाइनल में हार गईं और अब ब्रॉन्ज के लिए लड़ेंगी.

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भारत ने अब तक वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में सिर्फ एक गोल्ड जीता है, जो सुशील कुमार के नाम है. ऐसे में 7 अक्टूबर को होने वाले मैच में सबकी नजरें अंशु मालिक पर टिकी होंगी.

कौन हैं अंशु पहलवान ?

अंशु मलिक का परिवार शुरू से ही रेसलिंग में रहा है. हरियाणा के जींद जिले में अंशु मलिक ने छोटी उम्र में ही पहलवानी करना शुरू कर दिया था.

12 साल की उम्र में, मलिक ने अपने भाई शुभम के साथ कुश्ती शुरू की और पिता धर्मवीर मलिक ने उन्हें प्रशिक्षण दिया. मलिक ने सिर्फ चार साल के प्रशिक्षण के बाद अंतरराष्ट्रीय खेलों में डेव्यू किया और 2016 में एशियाई कैडेट चैम्पियनशिप में सिल्वर जीतकर कुश्ती में अपना नाम तुरंत स्थापित कर लिया. इसके बाद विश्व कैडेट चैंपियनशिप में ब्रॉज मैडल जीता.

मलिक के करियर में अब तक, उन्होंने 6 अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लिया है और उनमें से पांच में 57 किलोग्राम वर्ग में पदक जीते हैं. अपनी पहचान बनाते हुए मलिक अब सीमा बिस्ला, विनेश फोगट और सोनम मलिक के साथ भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली चार भारतीय महिला पहलवानों में से एक हैं.

अंशु मलिक ने समय से पहले अपनी चोट से उबरकर सभी बाधाओं को पार करते हुए टोक्यो ओलंपिक के लिए भी क्वालीफाई किया किया था. मलिक ने सिर्फ 19 साल की उम्र में अपने प्रतिद्वंद्वी को 12-2 से हराकर ओलंपिक में अपनी पहली जीत दर्ज की थी.

हाल के प्रदर्शन

2020 में, अंशु मलिक ने व्यक्तिगत विश्व कप में रजत जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई. इसके बाद एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता.

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मलिक ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने के लिए शोखिदा अखमेदोवा को हराया, लेकिन फाइनल में मंगोलिया के खोंगोरजुल बोल्डसैखान से 4-7 से हारने के बाद रजत से संतोष करना पड़ा.

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