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सोशल मीडिया पर फेक प्रोफाइल-क्या कहता है कानून,कहां सफाई की जरूरत?

मुंबई पुलिस ने 16 जुलाई को एक बड़े इंटरनेशनल रैकेट का खुलासा किया

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सिंगर भूमि त्रिवेदी ने हाल ही में मुंबई पुलिस से संपर्क कर एक फर्जी इंस्टाग्राम अकाउंट बनाए जाने के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.

मुंबई पुलिस ने 16 जुलाई को एक बड़े इंटरनेशनल रैकेट का खुलासा किया. पुलिस ने बताया कि सोशल मीडिया मार्केटिंग कंपनियां फर्जी प्रोफाइल बनाकर उसे ऑपरेट कर रही हैं.

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ये मुद्दा 11 जुलाई को सामने आया था जब सिंगर भूमि त्रिवेदी ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को संपर्क किया. उन्होंने अज्ञात लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जिन्होंने इंस्टाग्राम पर उनका फर्जी प्रोफाइल और फिर फर्जी चैट लॉग बनाया जिसमें वो अकाउंट वेरिफाई कराने के लिए डील करती नजर आ रही हैं.

औपचारिक शिकायत दर्ज होने के बाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 20 साल के अभिषेक दौड़े को गिरफ्तार किया जो एक वेबसाइट followerskart.com के लिए काम करता है और कथित तौर पर फीस लेकर इंस्टाग्राम यूजर्स को फर्जी फॉलोअर मुहैया कराता है.

नकली पहचान से जालसाजी, बोलेने की आजादी, बिना नाम का, झूठा सोशल मीडिया मेट्रिक्स, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जवाबदेही और बॉट्स की कानूनी स्थिति सहित कई मुद्दों ने कुछ ऐसे सवाल पैदा किए हैं जो वैधता और अपराध के बीच की खाली जगह से पैदा हुए हैं.

दि क्विंट इस मामले की तकनीकी और कानूनी पहलुओं पर लंबे समय से चली आ रही बहस के अपरिभाषित पहलुओं को डिकोड करने की कोशिश कर रहा है.

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मुंबई पुलिस इसकी जांच कैसे कर रही है?

इस मामले की जांच क्रिमिनल इंटेलिजेंस यूनिट कर रही है जिसका नेतृत्व डीसीपी नंदकुमार ठाकुर कर रहे हैं और पूर्व ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ सचिन वाजे मुख्य जांच अधिकारी हैं. खबरों के मुताबिक सोशल मीडिया मार्केटिंग बिजनेस में भारतीय दंड संहिता और इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के उल्लंघन की जांच के लिए अपनी तरह की ये पहली स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (SIT) बनाई गई है.

अब तक की जांच में क्या पता चला?

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त पुलिस आयुक्त (कानून और व्यवस्था) विनय चौबे ने कहा कि ये एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय रैकेट है जो फर्जी प्रोफाइल बनाने के साथ-साथ सोशल मीडिया मार्केटिंग के मोर्चे पर धोखाधड़ी की गतिविधियों में शामिल है.

जांच के मुताबिक पुलिस ने भारत में काम करने वाली ऐसी 54 कंपनियों का पता लगाया है जो फर्जी प्रोफाइल और फर्जी पहचान बनाने में शामिल हैं. चौबे का कहना था कि ऐसा वो मैनुअल या बॉट्स नाम के एक सॉफ्टवेयर की मदद से करते हैं. पुलिस के मुताबिक दौड़े की पूछताछ में ये पता चला कि उसने कम से कम 176 अकाउंट्स के लिए 5 लाख फर्जी प्रोफाइल मुहैया कराए थे. दि इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 17 जुलाई को पुलिस ने दौड़े के 16 कथित ग्राहकों के बयान दर्ज किए जिन्होंने कथित तौर पर कंपनी की सेवा ली थी.
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क्या नकली पहचान से जालसाजी अपराध नहीं है?

नकली पहचान से जालसाजी वास्तव में भारतीय दंड संहिता और इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी ऐक्ट 2000 के प्रावधानों के तहत अपराध है. नकली पहचान से जालसाजी से निपटने वाली भारतीय दंड संहिता की धाराओं में 415 (धोखाधड़ी), 416 (किसी का रूप धारण कर धोखाधड़ी) और 499 (मानहानि) शामिल होंगे.

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 468 भी इसमें लागू हो सकती है जो धोखेबाजी की मंशा से किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की जालसाजी से संबंधित है.

साइबर और इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों से संबंधित IT ऐक्ट की धारा 66 डी में कहा गया है कि जो भी किसी कम्युनिकेशन डिवाइस या कंप्यूटर रिसोर्स के जरिए कोई और पहचान बनाकर जालसाजी करता है उसे अधिकतम तीन साल की कैद और एक लाख तक का जुर्माना हो सकता है.

क्या भूमि त्रिवेदी को फर्जी प्रोफाइल के जरिए धोखा दिया गया?

फेक प्रोफाइल के मामलों में पैसों के लेन-देन के पुराने मामलों में कमी को देखते हुए ये एक दिलचस्प सवाल है.

IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 416 (नकली पहचान बनाकर धोखा देना) में कहा गया है कि –अगर कोई व्यक्ति दूसरी पहचान बनाकर, या जानबूझकर किसी खास व्यक्ति की जगह दूसरे व्यक्ति को रखकर, या अपनी पहचान से अलग कोई पहचान बताकर धोखा देता है तो उसे ठगी करना कहते हैं.

यहां अपरिभाषित ये है कि अभिषेक दौड़े ने खुद को भूमि त्रिवेदी नहीं बताया बल्कि उनकी तस्वीर का इस्तेमाल उनकी छवि को खराब करने में किया. इसलिए नकली पहचान बनाकर धोखा देना और धोखाधड़ी का मामला बन सकता है.

टेक्नोलॉजी कंपनियों में विशेषता रखने वाली इकिगई लॉ में सीनियर एसोसिएट अर्पित गुप्ता का कहना है कि अगर किसी को प्रावधानों को तकनीकी तौर पर पढ़ना है तो ये फिर भी एक साधारण केस है क्योंकि एक असली व्यक्ति की जगह सचमुच एक फर्जी प्रोफाइल का इस्तेमाल किया जा रहा था. गुप्ता का कहना था कि ये पूरी तरह फर्जीवाड़े के संदर्भ पर निर्भर करता है. इससे हमारा अगला सवाल सामने आता है.

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वैसे फर्जी प्रोफाइल का क्या जो किसी से जालसाजी नहीं करते?

भारत में ऐसा कोई विशेष कानून नहीं है जो फर्जी अकाउंट की खरीद और बिक्री से जुड़े मामले निपटाता हो. कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों के पास ऐसे मामले कम हैं जहां एक फर्जी प्रोफाइल बेची जा रही हो लेकिन जो जालसाजी न हो या किसी को नुकसान न पहुंचा रही हो.

इस प्रश्न के उत्तर में उस विशेष संदर्भ की आवश्यकता होगी जिसमें एक फर्जी प्रोफाइल काम कर रही है. इस तरह की प्रोफाइल अगर नकली पहचान से जालसाजी नहीं कर रही हैं तो भी हेट स्पीच, महिला से अभद्रता के तहत अपराध में शामिल हो सकती हैं.

गुप्ता बताते हैं कि -जो मौजूदा मामला है वो एक अपराध है. इसलिए मुझे लगता है कि ये ठीक है. लेकिन अगर सरकार और पुलिस इसके आगे जाने की कोशिश

करे तो समस्या हो सकती है. या तो आप पुलिस ऐक्ट में किसी तरह का ढांचा तैयार करें. क्योंकि पुलिस ऐसे ही किसी के पास जाकर ये नहीं कह सकती की वो बेनाम प्रोफाइल ऑपरेट कर रही है.

क्या झूठा सोशल मीडिया मेट्रिक्स रखना अपराध है?

नैतिक दृष्टकोण से निश्चित रूप से लेकिन कानून की नजर में ऐसे प्रावधान नहीं हैं जो विशेष रूप से इसके लिए हैं.

गुप्ता ने दि क्विंट से कहा कि- उनकी समझ के हिसाब से जब वो अपने प्रोफाइल पर फॉलोअर्स की गलत संख्या दिखा रहे हैं तो विशुद्ध रूप से कोई अपराध नहीं कर रहे हैं.

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गुमनाम पैरोडी प्रोफाइल्स का क्या?

एक और अस्पष्टता बिना नाम वाले प्रोफाइल्स को लेकर है. हजारों स्पूफ या पैरोडी अकाउंट हैं जो नेता, ऐतिहासिक हस्ती और लोकप्रिय व्यक्ति के तौर पर खुद को पेश करते हुए व्यंगपूर्ण पोस्ट करते हैं.

इसी जगह अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल सामने आता है.“कोई भी नहीं जानता कि इन प्रोफाइल्स को कौन ऑपरेट करता है. क्या ये ‘फेक प्रोफाइल की’ श्रेणी में आता है जिसके खिलाफ कार्रवाई की जा सके? इस मामले में आप किसी की अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन भी कर सकते हैं.“

क्या पुलिस ये पता नहीं लगा सकती कि फेक प्रोफाइल्स कौन ऑपरेट कर रहा है?

इस घटना से एक और बात जो सामने आती है वो है वेरिफाइड अकाउंट होने का महत्व. पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल में सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाने वालों के लिए किसी तरह का पहचान पत्र लाने का प्रावधान है.

गुप्ता के मुताबिक जब एक व्यक्ति भूमि त्रिवेदी केस के संदर्भ में इस बारे में सोचता है तो सरकार की ओर से चिंता जायज लगती है कि जो व्यक्ति अकाउंट ऑपरेट कर रहा है उसकी जांच का कोई तरीका क्यों न हो.

सवाल ये सामने आता है कि अगर फेक प्रोफाइल का पता चल भी जाता है तो पुलिस किसके पीछे जाए? पुलिस अगर इंस्टाग्राम, ट्विटर या फेसबुक से संपर्क करती है तो ये धीमी और तकनीकी प्रक्रिया होगी. इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जानकारी जुटाना न तो आसान है और न ही जल्दबाजी में ये हो सकता है. कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों के अनुरोध पर कभी-कभी जवाब आने में महीनों लग जाते हैं और इसकी भी गारंटी नहीं होती कि जवाब मिल ही जाए.

यह भी एक हिस्सा है क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ये जांचने की कोशिश करते हैं कि क्या अनुरोध पूरी तरह से कानूनी है या पुलिस अपने अधिकार से आगे बढ़कर काम कर रही है. गुप्ता कहते हैं कि फिर एक पूरा मुद्दा ये है जहां वे पुलिस को भारतीय इकाई की जगह अमेरिकी इकाई में जाने के लिए कहेंगे जो डेटा को संग्रहित करता है.

क्या बॉट्स पर आपराधिक आरोप लगाए जा सकते हैं?

बॉट एक सॉफ्टवेयर एप्पलिकेशन है जिसे कुछ खास काम करने के लिए प्रोग्राम किया गया है. वेब सिक्युरिटी कंपनी क्लाउडफेयर के मुताबिक बॉट्स स्वचालित होते हैं जिसका अर्थ ये हुआ कि उन्हें किसी इंसान के हाथों स्टार्ट करने की जरूरत नहीं होती और वो निर्देशों के मुताबिक चलते हैं. पुलिस के मुताबिक मार्केटिंग कंपनियों के द्वारा ऑपरेट किए जा रहे कई अकाउंट बॉट्स के जरिए चलाए जा रहे हैं.

अमेरिका में एक जुलाई 2018 को बॉलस्टरिंग ऑनलाइन ट्रांसपेरेंसी या BOT बिल लागू किया गया. नए नियम के तहत सोशल मीडिया पर मौजूद सभी बॉट्स जो कैलिफोर्निया के निवासियों की वोटिंग या खरीदने के ढंग को प्रभावित कर सकते हैं उन्हें खुद को स्पष्ट तौर पर बॉट्स घोषित करना जरूरी होता है.

ऐसे अकाउंट को प्रमुखता से स्वचालित घोषित करने की जिम्मेदारी बॉट के मालिक या उसे तैयार करने वाले की होती है. कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में भी जो बॉट अकाउंट ऑपरेट कर रहे हैं उन्हें विशेष अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

अमेरिका में बॉट्स को अक्सर सोशल मीडिया पर एक समस्या के रूप में देखा जाता है. बॉट्स का इस्तेमाल अक्सर मानवीय व्यवहार की नकल कर यूजर को धोखा देकर फॉलोअर की संख्या, लाइक्स और रीट्वीट बढ़ाने और विभाजनकारी मुद्दों पर सहमति बनाने और उन्हें ट्विटर पर ट्रेंड कराने के लिए भी किया जाता है.
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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का रुख क्या है?

ज्यादातर प्लेटफॉर्म ने अपने उपयोग की शर्तों के अंदर नकली पहचान से काम करने के खिलाफ प्रावधान बनाए हैं और जब प्रोफाइल एक व्यक्ति द्वारा खुद ऑपरेट नहीं किया जा रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं.

ट्विटर

नकली पहचान बनाकर काम करना ट्विटर के नियमों के खिलाफ है. इसके उपयोग की शर्तों में विशेष तौर पर ये बात कही गई है कि ट्विटर अकाउंट जो भ्रामक तरीके से दूसरे व्यक्ति, ब्रांड या संस्था के तौर पर खुद को प्रस्तुत करते हैं उन्हें ट्विटर की इंपर्सोनेशन पॉलिसी के तहत स्थायी तौर पर निलंबित किया जा सकता है.

हालांकि ट्विटर ये भी साफ करता है कि यूजर पैरोडी, न्यूजफीड, कमेंटरी और फैन अकाउंट बना सकते हैं लेकिन उन्हें बायो में स्पष्ट तौर पर पैरोडी, फेक या फैन अकाउंट लिखना होगा.

इंस्टाग्राम

इंस्टाग्राम पर नियम कुछ अलग हैं. हेल्प सेंटर के मुताबिक रिपोर्ट वही व्यक्ति दर्ज करा सकता है जिसके नाम का फर्जी अकाउंट बनाया गया है. इंस्टाग्राम यूजर्स को प्रोत्साहित करता है कि नकली प्रोफाइल का शिकार होने वाले व्यक्ति संपर्क करें और प्लेटफॉर्म को मामले की जानकारी दें.

क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

IT एक्ट के इंटरमीडिएरी लायबिलिटी नियम के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को काफी सोच विचारकर काम करने की जरूरत होती है जिससे यूजर्स के पोस्ट के लिए वो जिम्मेदार न ठहराए जाएं.

IT एक्ट की धारा 79, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे इंटरमीडिएरी को छूट प्रदान करती है.“इस धारा के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए उचित परिश्रम का निरीक्षण करता है”

गुप्ता बताते हैं कि उनका पालन नहीं करने से जो कानूनी छूट मिली हुई है वो छिन सकती है. वो ये सुनिश्चित करें कि अकाउंट किसी का हो

और बताया किसी और का जा रहा हो या गुमराह करने वाली सूचनाएं दी जा रही हों, ऐसा न हो. इसलिए प्लेटफॉर्म्स पर कुछ बाध्यताएं भी मौजूद हैं.

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