विश्व की तमाम सरकारों और बिग टेक कंपनियों के बीच सूचना तंत्र पर कंट्रोल को लेकर टकराव के नए मोर्चे खुलते जा रहे हैं. पिछले 24 घंटे में ही देखें तो जहां भारत सरकार ने ट्विटर को नए आईटी रूल्स के पालन को लेकर अल्टीमेटम भेज दिया तो दूसरी तरफ नाइजीरिया ने राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी के ट्वीट को डिलीट करने के मुद्दे पर ट्विटर को अनिश्चितकाल के लिए सस्पेंड कर दिया.
बात सिर्फ पिछले 24 घंटे की नहीं है. अगर वैश्विक स्तर पर पिछले छह महीनों के खबरों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट है कि विभिन्न सरकारें और बिग टेक कंपनियां आमने-सामने हैं. कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल के बाद विश्व की तमाम सरकारों ने इन कंपनियों के हाथ में मौजूद पावर कंट्रोल पर दावेदारी तेज करते हुए घरेलू स्तर पर कानूनी प्रयास किए हैं, तो दूसरी तरफ बिग टेक कंपनियां भी अपने कंज्यूमर बेस पर आर्थिक एवं तकनीकी पकड़ को कमजोर नहीं होने देना चाहतीं.
बिग टेक Vs सरकार: पिछले 24 घंटे की सरगर्मी
5 जून को भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ट्विटर को फाइनल नोटिस भेजते हुए कहा कि नये IT नियमों का पालन नहीं करने पर कंपनी को इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे. मंत्रालय ने कहा कि सोशल मीडिया इंटीमीडियरी के लिए प्रावधान 26 मई 2021 से लागू हो चुके हैं और एक हफ्ते बाद भी ट्विटर इसके अनुपालन से इंकार कर रहा है. अगर तुरंत नियमों का पालन करने में ट्विटर नाकाम रहता है तो IT एक्ट की धारा 79 के तहत कंपनी को प्राप्त कानूनी संरक्षण समाप्त हो जाएगा.
ट्विटर ने शनिवार को भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के पर्सनल अकाउंट से ब्लू टिक हटा दिया था. कंपनी का तर्क था कि यह अकाउंट पिछले 6 महीनों से एक्टिव नहीं था. हालांकि कड़े विरोध के बाद ट्विटर ने ब्लू टिक वापस से रिस्टोर कर दिया. बीजेपी प्रवक्ता सुरेश नखुआ ने इसे भारत के संविधान पर हमला बताया.
शनिवार को ही ट्विटर ने RSS के पांच बड़े नेताओं के भी ब्लू टिक हटा दिए थे,जिसमें RSS चीफ मोहन भागवत,सुरेश सोनी,अरुण कुमार,सुरेश जोशी और कृष्णा कुमार का अकाउंट शामिल था.यहां भी ट्विटर ने इस कार्रवाही की वजह इन अकाउंटों का पिछले 6 महीनों से इनएक्टिव होना बताया.हालांकि इन सारे अकांउट के ब्लू टिक को भी विरोध के बाद रिस्टोर कर दिया गया.
नाइजीरिया की सरकार ने शुक्रवार को (लोकल टाइम) अपने देश में ट्विटर को अनिश्चितकाल के लिए सस्पेंड कर दिया. यह कार्यवाही राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी के ट्वीट को डिलीट करने के 2 दिन बाद की गई है. ट्विटर ने राष्ट्रपति के उस ट्वीट को डिलीट कर दिया था जिसमें उन्होंने 1967-70 में देश में हुए 30 महीने के गृहयुद्ध का संदर्भ देते हुए कहा कि "जो आज बुरा बर्ताव कर रहे हैं उन्हें उसी भाषा से समझाया जाना चाहिए जो वह समझते हैं".
G7 देशों ने मल्टीनेशनल कंपनियों पर 'ग्लोबल मिनिमम टैक्स' की शर्त थोपने के प्रस्ताव की मंजूरी शनिवार को दे दी.सात बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का ग्रुप G7 कम से कम 15% की न्यूनतम वैश्विक कॉरपोरेट दर और कंपनियों से उन बाजारों में ज्यादा टैक्स का भुगतान कराने पर सहमत हुआ है, जहां वे सामान और सेवाएं बेचती हैं.इसे भी विशेषज्ञों ने बिग टेक कंपनियों पर आर्थिक शिकंजा का नाम दिया है.इससे Google, Apple और Amazon जैसी मल्टीनेशनल बिग टेक कंपनियां के टैक्स से बचने के लिए दूसरे देश में शिफ्ट हो जाने की प्रैक्टिस पर नियंत्रण लग सकेगा.
बिग टेक Vs सरकार: पहले क्या हुआ
पिछले 6 महीनों में भारत सरकार और फेसबुक,व्हाट्सऐप, टि्वटर जैसी बिग टेक कंपनियों के बीच विवाद खुलकर सामने आया है. भारत सरकार के नये IT रूल्स को जहां इन कंपनियों ने नियंत्रण करने की कार्यवाही के रूप में देखा,वहीं सरकार ने इन कंपनियों को 'लॉ ऑफ लैंड' मानने के लिए विवश करने की कोशिश की. इतना ही नहीं सरकार ने समय-समय पर ट्विटर और फेसबुक से सरकार की आलोचनाओं वाले टि्वट और पोस्ट को हटाने का निर्देश दिया. चाहे वह किसान आंदोलन के दौरान किया गया आलोचनात्मक पोस्ट हो या वह सरकार के कोरोना कुप्रबंधन से जुड़ा हो.
भारत सरकार और वॉट्सऐप के बीच भी ट्रेसेबिलिटी के मुद्दे पर तनातनी बढ़ गई है. यह मामला सरकार की ओर से लाए गए नए आईटी नियमों के प्रावधान से जुड़ा है. वॉट्सऐप का कहना है कि ट्रेसेबिलिटी एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के खिलाफ है. वॉट्सऐप ने इस मामले में सरकार के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था .25 मई को दाखिल की गई याचिका में वॉट्सऐप ने 2017 के जस्टिस केएस पुट्टस्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस का हवाला यह दलील देने के लिए किया कि ट्रेसेबिलिटी का प्रावधान असंवैधानिक और लोगों के निजता के अधिकार के खिलाफ है.
ऑस्ट्रेलिया,जर्मनी,अमेरिका में क्या हुआ
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने 'न्यू मीडिया बारगेनिंग कोड' कानून पास करके गूगल और फेसबुक जैसी बड़ी बिग टेक कंपनियों को न्यूज पब्लिशर्स का कंटेंट इस्तेमाल करने पर उन्हें पैसा देने पर मजबूर कर दिया. हालांकि शुरुआत में फेसबुक ने इसका कड़ा विरोध किया लेकिन बाद में उसे झुकना पड़ा .अब ऐसे ही कानून को लाने के लिए कनाडा,यूके और भारत तक में विचार किया जा रहा है.
18 जनवरी 2021 को जर्मनी की संसद ने 'जर्मन कंपटीशन लॉ' में 10 वें संसोधन को पास करके बिग टेक कंपनियों के एंटी-कंपटीशन प्रैक्टिस पर नियंत्रण मजबूत किया.कानून के सेक्शन 19a ने जर्मन कंपटीशन वाचडॉग ,Bundeskartellamt की शक्तियां बढ़ा दी हैं.
पिछले साल अमेज़न,एप्पल,फेसबुक और गूगल के CEOs को अमेरिकी कांग्रेस के सामने तब पेश होना पड़ा जब उन पर एंटी-कंपटीशन प्रैक्टिस का आरोप लगा था. उसके बाद अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट ने गूगल के खिलाफ एंटीट्रस्ट याचिका भी दायर की थी. एक दर्जन से भी अधिक अमेरिकी राज्यों ने गूगल के खिलाफ एंटीट्रस्ट शिकायतें दर्ज की हैं.
इसके पहले कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल मामले में फेसबुक के CEO मार्क जुकरबर्ग को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के आरोप पर अमेरिकी संसद में सफाई देनी पड़ी थी. ट्विटर और फेसबुक द्वारा पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के अकाउंट को सस्पेंड करने की आलोचना करते हुए कई रिपब्लिकन नेताओं ने इसे राजनैतिक हस्तक्षेप बताया था.
बिग टेक Vs सरकार: पावर कंट्रोल की जंग
सवाल है कि कल तक जो सोशल मीडिया कंपनियां सरकार के लिए वोटरों तक पहुंचने का जरिया थीं, वें आज 'लॉ ऑफ लैंड' तथा 'देश की संप्रभुता' पर खतरा क्यों लगने लगीं? दरअसल जवाब टेक कंपनियों के नेचर में है. इसका इस्तेमाल कल तक सरकार में बैठे राजनैतिक दलों ने अपने वोट बैंक तक पहुंच बढ़ाने के लिए और नेरिटिव कंट्रोल के लिए किया तो आज इसी का इस्तेमाल करके लोगों ने सवाल करना शुरू कर दिया है.
कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल ने यह दिखा दिया कि बिग टेक कंपनियों के पावर पर कंट्रोल सत्ता की चाबी हो सकती है. इस तकनीक में यूजर बेस की पसंद जानने और उसे बदलने, दोनों की क्षमता है. इसी का परिणाम है कि विश्व की तमाम सरकारों ने हाल के वर्षों में इन पर शिकंजा तेज कर दिया.
दूसरी तरफ बिग टेक कंपनियों के साथ दिक्कत है कि यूजर बेस में अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए उन्हें बढ़ते सरकारी नियंत्रण को रोकना होगा. क्योंकि सत्ता के साथ इनकी गलबहियां हैं, ये एक ऐसा राज है जो सार्वजनिक है. जब सत्ताधारी नेताओं के भड़काऊ, भेदभाव पूर्व ट्वीट, पोस्ट, कमेंट ब्लॉक नहीं होते और एक्टिविस्ट, स्टूडेंट, विपक्ष के लोकतांत्रिक दायरे में आने वाले ही पोस्ट ट्वीट भी ब्लॉक होने लगते हैं तो यूजर सवाल पूछता है. सरकारें कानून की आड़ में इन कंपनियों को हर महीने विरोधियों के हजारों पोस्ट हटाने को कहती हैं, ज्यादातर ये कंपनियां मान लेती हैं, लेकिन जब विरोध करती हैं तो युद्ध छिड़ जाता है. इसी तरह जब आम आदमी या विपक्ष इन कंपनियों के अपने नियम कायदों का हवाला देकर सत्ताधारी पक्ष का कोई पोस्ट कमेंट हटाने को कहती हैं और ये कंपनियां अपने ही नियमों के कारण मजबूर होती हैं तो जंग छिड़ जाती है. संबित पात्रा टूलकिट केस में ये अजीब स्थिति दिखी कि बीजेपी नेता ट्विटर पर ट्विटर के खिलाफ ट्रेंड चला रहे थे.
कंपनियों के साथ दिक्कत ये है कि अक्सर इन्होंने गैरकानूनी तरीके से यूजर्स के डेटा को अन्य कंपनियों के साथ अपने आर्थिक हितों के लिए शेयर भी किया.
बिग टेक Vs सरकार के बीच जंग में आम यूजर की प्राइवेसी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दोनों दांव पर है.
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