कुछ दिनों पहले आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने NIC टेक कॉन्क्लेव 2020 में कहा कि भारत को डेटा रिफाइनरी प्रोसेस के लिए एक बड़ा सेंटर बनना चाहिए. इससे पहले भी एक इवेंट में वो कह चुके हैं कि भारत के पास डेटा रिफाइनरी सेंटर बनने की क्षमता है. भारत को डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी डेटा की अहमियत बता चुके हैं. तो क्या है डेटा रिफाइनरी? क्या डेटा को रिफाइन कर के इसे बेचने की तैयारी में है सरकार?
पिछले साल सितंबर में अमेरिका के टेक्सास में हुए 'हाउडी मोदी' इवेंट में पीएम मोदी ने डेटा की तेल और सोने से तुलना की थी.
‘आज ऐसा कहा जाता है कि डेटा, तेल के बराबर है. मैं ये भी कहना चाहूंगा कि डेटा ही नया सोना है. इंडस्ट्री 4.0 डेटा फोक्सड है. अगर दुनिया में कोई ऐसा देश है, जहां डेटा सबसे सस्ता है, तो वो भारत है. डिजिटल इंडिया भारत का नया चेहरा है और दुनिया को ये देखने की जरूरत है.’पीएम मोदी ने ह्यूस्टन में कहा
द इकनॉमिस्ट मैगजीन ने 2017 में अपने एक आर्टिकल में डेटा को मौजूदा समय में तेल से बड़ा रिसोर्स बताया था.
तो क्या है डेटा रिफाइनरी?
आसान भाषा में कहें तो जैसे कच्चे तेल को रिफाइन कर इस्तेमाल में लाने के लायक बनाया जाता है, वैसा ही कुछ है डेटा रिफाइनरी. इंटरनेट के इस युग में दुनियाभर में लोग हर सेकेंड डेटा जेनरेट कर रहे हैं. सभी के पास स्मार्टफोन है. लगभग सभी ऐप्स इंटरनेट से चलते हैं. फिर चाहे इंस्टैंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म WhatsApp हो या म्यूजिक ऐप्स, या सोशल मीडिया या बैंकिंग, शॉपिंग ऐप्स. आप और हम चौबीस घंटे इंटरनेट से कनेक्टेड रहते हैं.
एसएमएस से लेकर गूगल पर किया गया एक सर्च तक, सब डेटा है. ऐसे में हम हर सेकेंड डेटा जेनरेट कर रहे हैं.
ये तो हुई डेटा की बात. अब बात करते हैं, रिफाइन की. रिफाइनिंग एक प्रक्रिया है, जिसमें किसी चीज में सुधार किया जाता है, उसे साफ किया जाता है और उसे इस्तेमाल के लायक बनाया जाता है.
अगर आईटी मंत्री का इशारा इसी डेटा रिफाइनरी की तरफ है, तो कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं और इसमें सबसे ज्यादा चिंता आम लोगों को करनी चाहिए.
नितिन गडकरी के मंत्रालय ने बेचा करोड़ों लोगों का डेटा
आपके-हमारे डेटा से रेवेन्यू जेनरेट करने का काम भारत सरकार पहले ही शुरू कर चुकी है. पिछले साल कांग्रेस सांसद हुसैन दलवाई के सवाल के जवाब में, सरकार ने बताया था कि कुछ संस्थाओं को वाहन और सारथी डेटाबेस का एक्सेस दिया गया है.
वाहन डेटाबेस में लोगों का रजिस्ट्रेशन और इंजन नंबर जैसी जानकारियां होती हैं. वहीं, सारथी डेटाबेस में ड्राइविंग लाइसेंस का रिकॉर्ड होता है.
सरकार ने बताया कि उसने 87 प्राइवेट कंपनियों और 32 सरकारी संस्थाओं को 65 करोड़ रुपये में ये डेटा बेचा. इसमें 25 करोड़ लोगों के रजिस्ट्रेशन रिकॉर्ड्स और 15 करोड़ ड्राइविंग लाइसेंस रिकॉर्ड्स शामिल थे. वहीं, पिछले साल नेशनल इंटेलीजेंस ग्रिड ने भी एविएशन मंत्रायल, और रेगुलेटर से घरेलू पैसेंजर्स का डेटा शेयर करने को कहा था.
डेटा का मालिक कौन?
आज कल हमारे स्मार्टफोन्स में हमारी निजी तस्वीरों से लेकर सेहत से जुड़ी हमारी जानकारी होती है. ये डेटा किसी भी शख्स की निजी संपत्ति है. उसे बेचने या शेयर करने का अधिकार केवल उसके पास है. ऐसे में, सड़क और परिवहन मंत्रालय ने किसकी इजाजत से लोगों की निजी जानकारी प्राइवेट कंपनियों को बेची, ये बड़ा सवाल है.
UIDAI के पूर्व चेयरमैन नंदन निलेकणि ने दो साल पहले पैसों के लिए अपना डेटा बेचने का आइडिया दिया था. उन्होंने 2018 में फ्यूचर ग्लोबल डिजिटल समिट में कहा था कि भारतीय पैसे या सर्विस के लिए अपना डेटा बेच सकते हैं. निलेकणि ने कहा था कि आधार और इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसजैक्शन्स ने भारत में डेटा इंपावरमेंट स्ट्रक्चर बिल्ड किया है, और डेटा बेचकर लोग अपनी जिंदगी बेहतर बना सकते हैं.
निजी डेटा में ताकाझांकी करने का अधिकार देता है डेटा प्रोटेक्शन बिल
एक तरफ डेटा बेचा जा रहा है, तो दूसरी तरफ सरकार डेटा की सुरक्षा के लिए कानून लाने की तैयारी है. पिछले साल दिसंबर में नागरिकता संशोधन कानून की बहस के बीच डेटा प्रोटेक्शन बिल लोकसभा में पेश किया गया. ये बिल सरकार को फेसबुक, गूगल समेत कई कंपनियों से कॉन्फिडेंशियल प्राइवेट डेटा और गैर-निजी डेटा के बारे में पूछने का अधिकार देता है.
निजता किसी भी नागरिक का मूलभूत अधिकार है और ये बिल उसका सीधा-सीधा हनन है.
सरकार कहती है कि ये बिल लोगों का निजी डेटा प्रोटेक्ट करने के लिए है, लेकिन जिस तरह से सरकार ने अपने पास ज्यादा अधिकार रखे हैं, उससे ऐसा लगता है कि ये बिल डेटा की सुरक्षा से ज्यादा सरकार को लोगों की जिंदगी में ताकाझांकी करने का अधिकार दे रहा है. और जिस तरह से लोगों का व्हीकल रजिस्ट्रेशन और ड्राइविंग लाइसेंस डेटा बेचा गया, उसे ध्यान में रखा जाए, तो इस बिल और सरकार पर यकीन करना मुश्किल है.
देश में कितने इंटरनेट यूजर्स?
चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट यूजर्स भारत में हैं. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इस समय 451 मिलियन एक्टिव इंटरनेट यूजर्स हैं.
पिछले साल जून में आई एरिक्सन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सबसे ज्यादा डेटा का इस्तेमाल किया जाता है. देश में हर स्मार्टफोन पर हर महीने औसतन 9.8GB डेटा यूज होता है. रिपोर्ट में इसके 2024 तक दोगुना हो जाने का अनुमान है, यानी 18GB डेटा प्रति स्मार्टफोन प्रतिमाह. हम इंटरनेट का इस्तेमाल कर कितना डेटा जेनरेट कर रहे हैं, इसे लेकर अभी कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है.
डेटा रिफाइनरी और डेटा प्रोटेक्शन बिल की बातें एक आम नागरिक के लिए चिंता की बात है. डेटा नागरिकों का... बेचने वाली सरकार और खरीदने वाली कंपनियां. इससे सरकार को करोड़ों का फायदा हुआ, तो कंपनियों के हाथ लोगों का डेटा आया, जिसे वो आगे रिसर्च से लेकर अपने प्रोडक्ट्स और टारगेटेड ऐड्स के लिए इस्तेमाल करेंगी. अगर इसमें किसी का नुकसान हुआ है, तो वो हैं आम लोग, जिनका डेटा बिना उनकी इजाजत के बेचा जा रहा है.
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