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फेसबुक विवाद पर बोले पब्लिशर-ऑस्ट्रेलिया की तरह यहां भी बने कानून

भारतीय न्यूज पब्लिशर्स ने कहा कि वास्तव में ‘बड़े टेक’ प्लेटफॉर्म्स और पब्लिशर्स के बीच संबंधों को लेकर असंतुलन है

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फेसबुक ने हाल ही में न्यूज कंपनियों को उनके लिंक शेयर करने के लिए भुगतान करने के मुद्दे पर ऑस्ट्रेलिया को 'अनफ्रेंड' कर दिया. उसने दावा किया कि सरकार के प्रस्तावित कानून ने इस प्लेटफॉर्म और न्यूज पब्लिशर्स के बीच संबंध को 'गलत तरीके से' समझा है.

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फेसबुक की ओर से अपने प्लेटफॉर्म पर न्यूज बैन करने को लेकर हुए विवाद और प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के कड़े बयानों के बाद, सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी ने मंगलवार को कहा कि वो ऑस्ट्रेलियाई न्यूज से विवाविद बैन हटा लेगी और स्थानीय मीडिया कंपनियों को कंटेंट के लिए भुगतान करेगी. यह सब लंबित पड़े ऐतिहासिक कानून पर आखिरी समझौते के बाद हुआ है.

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ऑस्ट्रेलिया ऐसा कानून लाने के लिए लगभग तैयार है, जिसके तहत बड़ी टेक कंपनियों को मीडिया कंपनियों के साथ 90 दिनों के अंदर कमर्शियल डील करने की जरूरत होगी. 
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सरकार के मुताबिक, कानून उन न्यूज कंपनियों को बेहतर बार्गेनिंग पावर देगा, जिन्होंने विज्ञापन राजस्व के लिए संघर्ष किया है, जबकि गूगल और फेसबुक अपनी जेबें भरते रहे हैं.

भारतीय न्यूज पब्लिशर्स का क्या कहना है?

इस बीच क्विंट ने कुछ भारतीय न्यूज पब्लिशर्स से बात की, जिन्होंने कहा कि वास्तव में 'बड़े टेक' प्लेटफॉर्म्स और पब्लिशर्स के बीच संबंधों को लेकर असंतुलन है.

फेसबुक, गूगल और ऑस्ट्रेलियाई सरकार के बीच टकराव ने दुनिया के दूसरे हिस्सों का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा है. कनाडा और ब्रिटेन सहित कई देश प्रमुख टेक प्लेटफॉर्म्स पर लगाम लगाने और मीडिया विविधता को बनाए रखने के लिए ऐसे ही कदमों पर विचार कर रहे हैं.

वरिष्ठ भारतीय पब्लिशिंग एग्जीक्यूटिव्स ने क्विंट को बताया कि पब्लिशर्स अक्सर नेगोशिएट करने की स्थिति में नहीं होते हैं क्योंकि कंटेंट के मॉनेटाइजेशन की प्रक्रिया और प्लेटफॉर्म्स की एल्गोरिदम अपारदर्शी होती हैं. उन्होंने कहा कि भारत में भी इस तरह के कदम को न्यूजरूम और क्वालिटी जर्नलिज्म को बचाने के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए.

न्यूजलॉन्ड्री के को-फाउंडर और सीईओ अभिनंदन सेकरी ने कहा कि डिजिटल स्पेस में एक फिलॉसफी और एक सामान्य ट्रेंड के तौर पर, दो तथ्य हैं.

पहला, सेकरी ने बताया, “कुछ टेक दिग्गजों को काफी फायदा हो रहा है. वे दुनिया की अब तक की सबसे ज्यादा फायदा कमाने वाली कंपनियां हैं और उनको न्यूज कंपनियों की ओर से जेनेरेट किए गए न्यूज की वजह से भी फायदा हुआ है.''

इसके अलावा उन्होंने कहा, ''फिलॉसफीकल लेवल पर, दुनिया के लिए कम फायदा उठाना और पत्रकारिता महत्वपूर्ण बनी रहे, इसे अहमियत देना बेहतर है. एक व्यापक तर्क के रूप में, मैं पूरी तरह इसके पक्ष में हूं.''

हिंदुस्तान टाइम्स मीडिया के पूर्व सीईओ, राजीव वर्मा ने कहा कि भारत की स्थिति ऑस्ट्रेलिया से अलग नहीं है. उन्होंने समझाया कि पिछले कुछ समय से लीगेसी मीडिया कंपनियों को नुकसान हो रहा है और COVID के बाद पब्लिशर्स की मुश्किलें बढ़ी हैं.

इस पर सहमति जताते हुए कि ऐसा ही रेग्युलेटरी कदम भारत में भी काम कर सकता है, वर्मा ने कहा, ''अगर ऑस्ट्रेलिया, यूरोप में एक प्रस्ताव आ रहा है और अगर अमेरिका एकाधिकार के दुरुपयोग से संबंधित मुद्दों की इन्क्वायरी कर रहा है, तो भारत को अलग क्यों होना चाहिए?''

इस सवाल पर कि क्या भारत में भी इस तरह के कदम का स्वागत किया जाएगा, वर्मा ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि हम करेंगे, क्योंकि भारत के लिए पत्रकारिता को बचाना ज्यादा अहम है. भारत एक लोकतंत्र है और लोकतंत्र की खातिर पत्रकारिता को बचाना जनहित में है. ”

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