केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 19 मार्च को वाहन कबाड़ नीति (व्हीकल स्क्रैप पॉलिसी) की संसद में घोषणा की. इससे भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की मांग बढ़ने की संभावना है.
भारत में फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड एंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल इन इंडिया (FAME-2) और नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन (NEMM) -2020 जैसी योजना चल रही है जो ईवी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया है.
इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्यों लोकप्रिय हो रहे हैं?
बिजली से चलने वाले वाहनों की इसलिए तारिफ हो रही है क्योंकि इससे वायु प्रदुषण कम होगा. ईवी विनिमार्ण और बिक्री को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है.
प्रीसिजन कैमशाफ्टस लिमिटेड ऐंड ईएमओएसएस बीवी (EMOSS BV) के कार्यकारी निदेशक (एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर) करन शाह ने कहा,
“नई वाहन कबाड़ नीति से पारंपरिक आईसी इंजन वाली यात्री और वाणिज्यिक गाड़ियों के बढ़ावे के लिए सहायक होगी क्योंकि पुराने वाहनों को हटाया जाएगा. ईवी के उपयोग को तुरंत बढ़ावा देने के लिए यह कदम मददगार नहीं होगा यह एक लंबा लक्ष्य है.”
आगे उन्होंने कहा कि भारत में होने वाले प्रदूषण का एक बड़ा कारण कमर्शियल गाड़ियां हैं. इस वजह से ऐसे भारी वाहनों के विद्युतीकरण (इलेक्ट्रिफिकेशन) कम समय के लिए सही होगा.
प्लेटफॉर्म ड्रूम के संस्थापक और सीईओ संदीप अग्रवाल ने कहा कि इस नीति से टोटल कॉस्ट ऑफ ओनरशिप को कम करते हुए नए वाहनों को अपग्रेड किया जा सकेगा. पिछले कुछ सालों में ईवी वाहन बाजार को बढ़ावा देने को लेकर सरकार ने नीतियां बनाई है. इसका सबसे बड़ा कारण इससे बाकी गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को रोकना है.
देश में बिजली से चलने वाले (ईवी) वाहनों का उद्योग कितना बड़ा है?
पी ऐंड एस इंटेलिजेंस (P&S Intelligence) की रिसर्च स्टडी के मुताबिक ईवी मार्केट साल 2019 में 536.1 मिलयन डॉलर था जो कि 2020 से 2030 तक के बीच में 22.1 फीसदी बढ़ने का अनुमान है.
सीईईडब्लयू(CEEW) ने एक सर्वे किया जिसके मुताबिक जवाब देने वाले 87 फीसदी लोगों ने कहा कि वह ईवी वाहनों के बारे में जानते हैं. बिजली से चलने वाली गाड़ियों की जानकारी देने पर 71 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह यह वाहन लेंगे जिन्हें कि पहले इसके बारे में पता तक नहीं था.
सरकार के बिजली वाहनों के लेकर जागरूकता के लिए किए जा रहे प्रयासों को 93 फीसदी लोगों ने सराहा.
ईवी से भारत को क्या फायदे हैं और कितना काम करने की जरूरत है?
इलेक्ट्रिक वाहनों के रखरखाव में कम खर्च आएगा. ड्रूम के संस्थापक और सीईओ संदीप अग्रवाल ने कहा,
“ईवी से कई फायदे होते हैं. देश में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण और पर्यावरण पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को ये कम करेगा. यह डीजल वाहनों से कम कार्बन फुटप्रिंट छोड़ते है जिस वजह से यह ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल है. इसके अलावा इससे तेल आयात पर देश की निर्भरता कम होगी और वाहन मालिकों के ईधन के लेकर पैसे भी कम खर्च करने होंगे. सरकार के ईवी वाहनों पर टैक्स कम करने के कारण इसके दाम भी कम होंगे.”
भारत में ईवी वाहनों की चार्जिंग का बुनियादी ढांचा नहीं है. आगे संदीप अग्रवाल ने कहा कि बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों को बनाने के लिए बुनियादी ढांचे, पूंजी व्यय और मानसिकता की कमी है.
प्रीसिजन कैमशाफ्टस लिमिटेड ऐंड ईएमओएसएस बीवी (EMOSS BV) के कार्यकारी निदेशक (एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर) करन शाह ने कहा, "कार्य प्रगति पर है लेकिन ईवी की अधिक मांग के लिए काम तेजी से करना होगा. दूसरा हमें रखरखाव सेवाओं पर भी ध्यान देना होगा."
क्या भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार में मुख्य देश बन पाएगा
भारत में 5 लाख ईवी वाहनों सहित निजी कार, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, बस, दोपहिया और तिपहिया वाहन हैं.
ड्रूम के संस्थापक संदीप अग्रवाल का कहना है कि ई-ऑटोमोबाइल का बाजार बनने के लिए भारत को लंबा रास्ता तय करना है. ऐसा इसलिए क्योंकि देश में पूंजी की लागत बढ़ जाती है. हिंदुस्तान अमेरिका, जापान और पश्चिमी युरोप के देशों के मुकाबले में कम विश्वास वाला मार्केट है. भारत को ऑटोमोबाइल कंपनियों को दो बड़ी चुनौतियों से पार पाना होगा. पहला बुनियादी ढांचे को स्थापित करने में लंबा समय लगेगा और दूसरा चार्जिंग स्टेशनों की सुरक्षा करना भी एक चुनौती हो सकता है. यह सब हासिल करना मुश्किल नहीं है बस थोड़ा समय लगेगा.
बैटरी के संस्थापक निश्चल ने क्विंट से बात करते हुए कहा, " ईवी वाहनों को बनाने के लिए हम प्रोडक्ट का आयात कर रहे हैं. जब यह बंद हो जाएगा तब लागत कम होने से बिजली से चलने वाले वाहन सस्ते होंगे जिससे कि ग्राहक इसकी खरीद करेंगे. इसका परिणाम यह होगा कि ईवी वाहनों की ब्रिकी बढ़ जाएगी.”
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