भगवान हनुमान, निर्वासित आईएसआई जासूस महबूब राजपूत और अभिनेता रितेश देशमुख के बीच क्या समानता है? केंद्र की पीएम-किसान योजना के रिकॉर्ड्स के मुताबिक ये सभी छोटे और सीमांत किसान हैं जिन्हें सामाजिक सुरक्षा की दरकार है. इनमें से हरेक को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के तहत क्रमश: 6,000, 4,000 और 2,000 रुपये की किस्त मिली हैं.
नामचीन लोगों के नाम पर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए फंड उड़ा ले जाने का ये घोटाला बेहद पिछड़े किसानों के लिए अलग मायने रखता है. खासकर इसलिए क्योंकि यह एक ऐसे समय में सामने आया है जब विभिन्न प्रदेशों के किसान कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उनसे उनके हक छीने जा रहे हैं.
क्विंट ने जो भुगतान संबंधी रिकॉर्ड खंगाले हैं उससे पता चलता है कि घोटालेबाजों ने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध उपरोक्त नामचीन लोगों के आधार नंबर, बैंक अकाउंट नंबर, जमीन संबंधी रिकॉर्ड के ब्योरे और फोन नंबर का इस्तेमाल करते हुए पीएम किसान पोर्टल पर उपलब्ध योजना में अपना रजिस्ट्रेशन कराया. आधिकारिक पब्लिक फिनान्शियल मैनेजममेंट सिस्टम (पीएमएमएस) सॉफ्टवेयर ने उन आंकड़ों को स्वीकार किया और उसके बाद वे डीबीटी के जरिए साल में 6,000 रुपये तक प्रति किस्त 2,000 रुपये पाने के हकदार हो गये.
ऐसा कैसे हुआ? घोटालेबाजों ने फर्जी आधार कार्ड बनाने के लिए देशमुख, हनुमान और महबूब के आधार नंबरों का इस्तेमाल किया जो सार्वजनिक रूप से मौजूद हैं. उसके बाद इन आधार कार्डों का इस्तेमाल इनमें मौजूद नामों से मिलते नये बैंक खाते खोलने में किया.
भगवान हनुमान के नाम पर 2015 में आधार नंबर जारी हुआ था जबकि पाकिस्तान उच्चायुक्त के जासूस के तौर पर चिह्नित महबूब अख्तर के पास से 2016 में ‘महबूब राजपूत’ के नाम से वैध आधार कार्ड मिला.
डीबीटी कार्यक्रम पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों ने क्विंट को बताया कि सार्वजनिक रूप से मशहूर आधार नंबरों का इस्तेमाल करते हुए इस घोटाले में संख्या और भी बड़ी हो सकती है क्योंकि इस योजना से 10 करोड़ लाभुक रजिस्टर्ड हैं. हाल में हुई सरकारी जांच में अकेले तमिलनाडु में 5.5 लाख अपात्र लाभुक पकड़ में आए हैं जिस वजह से 110 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है.
जितनी आसानी से अपात्र लोगों ने योजना के लिए न सिर्फ रजिस्ट्रेशन कराए, बल्कि उन्हें मंजूरी भी मिल गयी और नकद भी हासिल हो गये, उसे देखते हुए आधार नंबरों की सार्वजनिक उपलब्धता, बैंक की ओर से की जा रही जांच और प्रांतीय व राष्ट्रीय स्तर पर लाभुकों के लिए पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल पैदा हो गये हैं.
जन वितरण कार्यक्रम पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ ने इस बारे में विस्तार से बताया, “यह योजना इस बात को परखती है कि आपके पास वैध आधार संख्या और उस आधार से जुड़े बैंक खाते हैं या नहीं. बस इतना ही काफी है.” वे आगे बताते हैं, “बड़े पैमाने पर व्यवस्थागत कमजोरियों का फायदा उठाते हुए इन तौर-तरीकों की इजाजत देने वाली व्यवस्था ने देश के विभिन्न हिस्सों में ऋण वितरण व्यवस्था में पैठ बना ली है.”
पीएम किसान योजना पर आधारित डाटाबेस
पीएम किसान सम्मान निधि या पीएम किसान एक केंद्रीय योजना है जिसके लिए 100 फीसदी फंड भारत सरकार उपलब्ध कराती है. इसने 1 दिसंबर 2018 को काम करना शुरू किया था.
इस योजना के तहत छोटे और सीमांत किसान परिवारों को साल में 6,000 रुपये तक की आय तीन बराबर किश्तों में उपलब्ध करायी जाती है और इसका मकसद उन लोगों तक मदद पहुंचाना है जिनके पास कुल मिलाकर 2 हेक्टेयर तक जमीन और मालिकाना हक है.
लोकसभा में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ओर से 9 सितंबर को दिए गये एक जवाब के मुताबिक देशभर में 10.21 करोड़ लाभुकों के लिए 94,119 करोड़ की कुल राशि जारी की गयी है.
बहरहाल ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब केंद्रीय वित्तपोषित योजना में अनियमितता उजागर हुई है. विभिन्न रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर में तमिलनाडु के कृषि सचिव गगनदीप सिंह बेदी ने घोषणा की थी कि एक घोटाले में पीएम-किसान कोष से धन निकाले जाने की वजह से राज्य को 110 करोड़ रूपये का नुकसान हुआ था. अधिकारियों ने बताया था कि 13 जिलों में 5.5 लाख अपात्र लोगों की पहचान के मामले में जांच शुरू कर दी गयी थी.
इसी तरह देश के एक अन्य इलाके असम में लाभुकों की सूची में समान तरह की अनियमितता देखने को मिली. केंद्रीय कृषि मंत्री ने असम सरकार से इस बारे में रिपोर्ट मांगी और संभावित धोखाधड़ी की जांच कराने को कहा. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के आदेश के तहत शुरू की गयी जांच के बाद हरकत में आए अधिकारियों ने बताया कि सिर्फ लखीमपुर में 9000 अपात्र लोगों की पहचान हुई है.
अब मॉडस ऑपरेंडी यानी काम करने का तरीका भी सामने आ चुका है. वहीं, तमिलनाडु और असम में भ्रष्ट अधिकारियों का भ्रष्टाचार भी सामने आया है जिसमें उन्होंने लाभुकों के डाटाबेस तक पहुंचने की अनुमति दी. क्विंट अब यह पुष्टि कर सकता है कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आधार नंबरों का इस्तेमाल खाते खोलने और फिर उनका इस्तेमाल पीएम-किसान योजना से जुड़ने में किया गया.
पीएम किसान पोर्टल दिखाता है मनी ट्रांसफर
उपरोक्त नामों से आवंटित आधार नंबरों का उपयोग करते हुए अयोग्य लोगों को डीबीटी के जरिए हस्तांतरित रकम से जुड़े संभावित मामले के बारे में सूत्रों से प्राप्त जानकारी को सत्यापित करने के लिए द क्विंट ने दो-चरणों में जांच की.
पहले चरण में क्विंट ने उन ‘नामों’ और आधार नंबरों’ का गूगल सर्च किया और वास्तव में इनमें से हर एक आधार नंबर सबसे ज्यादा सर्च किए जाने वालों में से था क्योंकि ये सभी व्यापक रूप से चर्चा में रहे थे.
दूसरे चरण में क्विंट ने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आधार नंबरों को पीएम किसान पोर्टल के ‘बेनीफिशियरी स्टेटस’ में दर्ज करते हुए परखा. हमें जो मिला उस पर नजर डालें:
I. रितेश देशमुख
एक अकाउंट रितेश देशमुख के नाम पर मिला जिसे 1 अगस्त को गुजरात के दोहाड जिले में गुलबर्ग गांव में दर्ज कराया गया था.
खबर लिखे जाते समय तक यह अकाउंट सक्रिय था और उनके नाम के आगे देना बैंक का अकाउंट नंबर और आधार नंबर रजिस्टर्ड थे. उसके किसान होने के रिकॉर्ड पीएफएमएस की ओर से स्वीकार कर लिए गये थे और उन्हें 2,000 रुपये की डीबीटी किस्त 10 अगस्त को मिल चुकी थी.
क्विंट ने जब रितेश देशमुख से पूछा कि क्या उन्हें उनके आधार कार्ड के दुरुपयोग के बारे में कोई जानकारी थी तो उन्होंने कहा, “मुझे इसका बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि गुजरात में उनके आधार कार्ड की डिटेल से कोई अकाउंट खोला गया हो.”
देशमुख ने आगे बताया, “हमने अधिकारियों को लिखा है कि वे इस धोखाधड़ी के मामले में कार्रवाई करें. मेरी जानकारी में लाने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.”
II. महबूब राजपूत (पाक आईएसआई एजेंट महबूब अख्तर)
पाकिस्तान उच्यायोग में अधिकारी के रूप में चिन्हित महबूब अख्तर के आधार कार्ड में दर्ज नाम ‘महबूब राजपूत’ का इस्तेमाल भी जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में पीएम-किसान अकाउंट खोलने में किया गया.
27 अक्टूबर 2016 को दिल्ली पुलिस ने कथित रूप से रक्षा संबंधी संवेदनशील दस्तावेज रखने के आरोप में महबूब अख्तर को हिरासत में लिया था. बहरहाल उसने अपनी पहचान महबूब राजपूत बतायी थी और यहां तक कि आधार कार्ड भी पेश किया था जिसमें उसके नाम थे और पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक का पता था.
उसका आधारकार्ड यूआईडीएआई की ओर से जारी हुआ था और वैध था. महबूब को जबकि जासूसी के आरोप में देश से निकाल दिया गया था, लेकिन उसका आधार नंबर घोटालेबाजों की ओर से बैंक अकाउंट खोलने और पीएम किसान योजना में नाम लिखाने में इस्तेमाल किया जाता रहा.
खबर लिखे जाते वक्त यह अकाउंट लाभुक को ‘मृत’ बताते हुए निष्क्रिय है. उसके नाम के साथ जम्मू-कश्मीर ग्रामीण बैंक अकाउंट रजिस्टर्ड है जिसमें उसका नाम और आधार नंबर दर्ज हैं. पीएफएमएस ने उसके किसान होने के रिकॉर्ड को स्वीकार किया है और उसे 2,000 रुपये के दो डीबीटी किस्तें 10 और 11 अगस्त को हासिल हुई हैं.
III. भगवान हनुमान
राजस्थान के सीकर जिले में 2014 में भगवान हनुमान के नाम आधार नंबर जारी किया गया था. यूआईडीएआई के अधिकारियों ने इस मामले को अपवाद माना है और इस नंबर को 2015 में निष्क्रिय कर दिया गया था. बहरहाल ऐसा लगता है कि बैंक अकांउंट खोलने के लिए इतना काफी है और इसके लिए पीएफएमएस सॉफ्टवेयर से स्वीकृति मिलनी चाहिए.
पीएम किसान पोर्टल में हनुमान के आधार नंबर का इस्तेमाल करते हुए एक अकाउंट खोला गया जो ‘रामनाथ’ के नाम पर था और उसे यूपी के बलिया जिले में किसान के तौर पर दिखाया गया है.
यह अकाउंट अब भी सक्रिय है और किसान रिकॉर्ड को पीएफएमएस ने तब भी मंजूरी दी है जबकि पोर्टल कह रहा है कि “आधार नंबर सत्यापित नहीं है.” पूर्वांचल बैंक से जुड़े इस अकाउंट में 2,000 रुपये के तीन किस्त आए हैं.
क्विंट ने इस मुद्दे पर 4 नवंबर को पीएम किसान और यूआईडीएआई से पूरी प्रश्नावली के साथ संपर्क किया है लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है. सवालों के जवाब मिलने पर यह स्टोरी अपडेट की जाएगी.
(खोज-परख सीरीज का यह पहला हिस्सा है जिसमें सार्वजनिक रूप से मौजूद आधार नंबरों के जरिए अकाउंट खोलकर पीएम किसान योजना के तहत छोटे और सीमांत किसानों को मिलने वाली रकम कहीं और हस्तांतरित की जा रही है. 11 दिसंबर को सीरीज के दूसरे हिस्से में हम घोटाले को अंजाम देने के तौर तरीके की चर्चा करेंगे.)
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