आज जिस दुनिया और यूनिवर्स में रह रहे हैं हम, वो कैसे बना? क्या ये यूनिवर्स एक ही जगह ठहरा हुआ है या इसमें हर रोज बदलाव हो रहे हैं? इन दोनों सवाल के जवाब 'बिग बैंग थ्योरी' से मिलते हैं. बेल्जियम के वैज्ञानिक जॉर्जेस लेमैत्रे ने 1927 में इस सिद्धांत का प्रस्ताव दिया था. 17 जुलाई को उनकी 124वीं जयंती मनाई गई.
लेमैत्र के 'बिग बैंग थ्योरी' के मुताबिक, आज से करीब 13.8 अरब साल पहले ब्रह्मांड के एक बिंदु (Point) में सिमटा हुआ था. इस बेहद गर्म बिंदू में हुए विस्फोट के बाद इसका हर कण फैलता गया और यूनिवर्स बनता गया. और आज भी यूनिवर्स में विस्तार जारी है.
आइंस्टीन भी थ्योरी से हुए थे प्रभावित
लेमैत्रे फिजिक्स के हीरो बनने से पहले प्रथम विश्व युद्ध में बेल्जियम की सेना के लिए काम करते थे. इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, हार्वर्ड विश्वविद्यालय और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में फिजिक्स की पढ़ाई की.
साल 1927 में उन्होंने बिग बैंग थ्योरी का प्रस्ताव दिया था. मशहूर वैज्ञानिक एडविन हबल ने इस थ्योरी को परखा और प्रमाणित किया था. लेमैत्रे ने आइंस्टीन की 'थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी' की भी मदद ली, लेकिन आइंस्टीन शुरू में लेमैत्रे के काम से प्रभावित नहीं थे. बाद में आइंस्टीन उनके काम से इतने प्रभावित हुए कि साल 1934 में मशहूर फ्रांकी पुरस्कार के लिए उन्हें नामित किया था.
बिग बैंग थ्योरी से दुनिया को क्या पता चला?
बिग बैंग थ्योरी देकर लेमैत्रे अपना काम कर चुके थे. फिर, एडविन हबल ने इस सिद्धांत को विस्तार से समझाया.
दरअसल, बिग बैंग का मतलब एक बड़े विस्फोट से है. थ्योरी के मुताबिक, यूनिवर्स के बनने से पहले सारी एनर्जी और फिजिकल एलिमेंट एक बिंदू (प्वाइंट) में सिमटे हुए थे. फिर बिग बैंग हुआ यानी एक ऐसा विस्फोट जिसके बाद उस बिंदू में सिमटे सभी कण एक दूसरे से दूर जाने लगे, ये प्रक्रिया अब भी जारी है. यूनिवर्स में लगातार विस्तार हो रहा है. थ्योरी से दो चीजें समझ आती हैं-
- यूनिवर्स की सारी गैलेक्सी लगातार हमसे दूर जा रही हैं
- जो गैलेक्सी जितनी दूर है, उतनी ही तेजी से और दूर जा रही हैं
यूनिवर्स की स्टडी करने वाले ज्यादातर वैज्ञानिक इस थ्योरी पर भरोसा करते हैं. अभी तक कोई ऐसा इंस्ट्रूमेंट मौजूद नहीं बना है जिससे यूनिवर्स की शुरुआत के बारे में एकदम सटीक कुछ कहा जा सके. मैथेमेटिकल फॉर्मूला और मॉडल पर आधारित इसी थ्योरी के जरिए यूनिवर्स को समझने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, वैज्ञानिक कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड सिद्धांत के जरिए यूनिवर्स के लगातार विस्तार को देख सकते हैं. कुछ वैज्ञानिक बिग बैंग को खारिज भी करते आ रहे हैं.
बिग बैंग से पहले क्या था?
अब एक चीज और दिमाग में आती है कि बिग बैंग से पहले क्या था. डार्क मैटर, ब्लैक होल से लेकर ब्रह्मांड की कई परतें खोलने वाले वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का माना है कि बिग बैंग से पहले कुछ था ही नहीं. उनका मानना है कि आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के ही मुताबिक, स्पेस और टाइम का समीकरण मिलकर ही लगातार स्पेस और समय को बनाए रखते हैं. ये कभी नहीं रुकने वाली प्रक्रिया है. बिग बैंग से पहले तो 'टाइम' भी नहीं था. सारी एनर्जी और फिजिकल मैटर एक बिंदू पर ही केंद्रित थे.
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