भारत सरकार ने शुक्रवार, 21 मई को सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से उन पोस्ट को हटाने के लिए कहा था, जिसमें कोरोना वायरस के इंडियन वेरियंट का जिक्र था. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने B.1.617 वेरियंट को पिछले हफ्ते गंभीर बताया था.
इस कड़ी में भारत सरकार की ओर से सोशल मीडिया कंटेंट पर सेंसरशिप से जुड़ा यह कदम उठाया गया है. वह भी तब जब कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अव्यवस्थाओं को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना हो रही है.
सरकार ने क्या कहा?
यह पत्र 21 को ग्रुप कॉर्डिनेटर राकेश माहेश्वरी ने अपने हस्ताक्षर के साथ भेजा था. इस लेटर में लिखा गया था कि, हमारे ध्यान में आया है कि देशभर में सोशल मीडिया पर एक गलत बयान देखने को मिल रहा है, जिसमें कोरोना वायरस के इंडियन वेरियंट पर जोर दिया जा रहा है. यह पूरी तरह से गलत है. WHO ने वैज्ञानिक आधार पर कोविड-19 को लेकर ऐसे किसी वेरियंट का जिक्र नहीं किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के वेरियंट B.1.617 को इंडियन वेरियंट नहीं कहा है.
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में B.1.617 को विशेष रूप से इंडियन वेरियंट के तौर पर परिभाषित करने के जवाब में यह लेटर लिखा गया था.
लेटर में आगे कहा गया कि सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कोरोना वायरस के इंडियन वेरियंट से संबंधित पोस्ट को तुरंत हटाएं.
क्या इसे ‘इंडियन वेरियंट’ कहना गैरकानूनी है?
कानूनी जानकारों के अनुसार, कोरोना वायरस के वेरियंट को इंडियन वेरियंट कहना गैरकानूनी नहीं है. सामान्यतः ऐसे मामलों को लेकर हर देश बड़ा संवेदनशील होता है और भारत इससे अलग नहीं है.
मीडियानामा के फाउंडर, निखिल पाधवा ने कहा कि कोरोना वायरस के इस वेरियंट को इंडियन वेरियंट कहना कानूनी रूप से गलत नहीं है.
उन्होंने कहा कि इसे बातचीत के संदर्भ में इंडियन वेरियंट कहा जा रहा है, इसे फेक न्यूज से नहीं जोड़ सकते हैं. कॉनट प्लेस आधिकारिक रूप से राजीव चौक है, लेकिन लोगों को इसे कनॉट प्लेस बोलने से नहीं रोका जा रहा है.
ध्यान देने वाली बात है कि भारत ने अन्य कोरोना वायरस के अन्य वेरियंट को यूके, ब्राजील, साउथ अफ्रीकन वेरियंट के तौर पर देखा. ट्विटर यूजर्स आदित्य कालरा ने कहा कि कोरोना वायरस के वेरियंट को लेकर भारत सरकार ने अपनी प्रेस रिलीज में अनौपचारिक शब्दावली का इस्तेमाल किया है.
क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ‘इंडियन वेरियंट’ शब्द को सेंसर कर सकते हैं?
यह संभव है कि ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भारत सरकार के अनुरोध का पालन करें.
सोशल मीडिया कंपनी के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर द क्विंट को बताया कि एक साधारण फिल्टर का उपयोग करके किसी भी कीवर्ड को सेंसर करना संभव है. इससे ऐसी हजारों पोस्ट में से कीवर्ड को हटाने से कीवर्ड सेंसरशिप को बढ़ावा मिलेगा.
द क्विंट ने इस सोशल मीडिया अधिकारी से पूछा कि क्या इससे प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होगी. उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि, अलग-अलग अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संगठन जिनमें बीबीसी, अल जजीरा, टेलीग्राफ, स्काय न्यूज, वॉइस ऑफ अमेरिका और गार्जियन इस वेरियंट को इंडियन वेरियंट कहते आए हैं. ऐसे में इन न्यूज आइटम्स को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटाना न्यूज सेंसरशिप के बराबर है.
पहले भी आए ऐसे मामले
शनिवार, 24 अप्रैल को एक रिपोर्ट के मुताबिक, माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर ने कोविड-19 महामारी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना से जुड़े 50 ट्वीट को सेंसर कर दिया था.
इन ट्वीट्स की समीक्षा करने पर पता चला कि, इनमें भारत के अंदर कोविड-19 महामारी की स्थिति को लेकर जिक्र किया गया था और इससे निपटने में भारत सरकार की आलोचना की गई थी.
इन ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी के इस्तीफे की मांग से जुड़े हैशटेग और देश में बढ़ते कोरोना मामलों के बीच हरिद्वार कुंभ की तबलीगी जमात से तुलना करने वाले ट्वीट शामिल हैं.
वहीं फेसबुक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग को लेकर करीब 12000 पोस्ट को ब्लॉक कर दिया गया.
कई लोगों के देखने में आया कि हैशटेग #ResignModi को फेसबुक ने ब्लॉक कर दिया और जो भी व्यक्ति इन हैशटेग को तलाशने की कोशिश कर रहा था उन्हें एक नोटिस देखने को मिला जिसमें लिखा गया था कि इन पोस्टों को अस्थाई रूप से हटा दिया गया है क्योंकि उन पोस्ट के अंदर का कुछ कंटेंट सामुदायिक मानकों के खिलाफ था.
हालांकि बाद में फेसबुक ने इस हैशटैग को फिर बहाल कर दिया और कहा कि यह गलती से हटा दिया गया था. वहीं केंद्र सरकार ने बयान जारी करते हुए कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया कंपनियों को ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया था.
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