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ब्रह्मांड की गुत्थियां सुलझाने की तरफ एक कदम और, सबसे दूर की गैलेक्सी HD1 की खोज

HD1 की खोज के कारण पृथ्वी पर जीवन की उत्पति के बारे में अहम जानकारी मिल सकती है

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साइंस
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ब्रह्मांड की गुत्थियों को सुलझाने में जुटे खगोलशास्त्रियों की एक इंटरनेशनल टीम ने अब तक की सबसे दूर मौजूद आकाशगंगा (Galaxy) को खोजने का दावा किया है. धरती से तकरीबन 13.5 अरब प्रकाश वर्ष (light year) की दूरी पर स्थित इस गैलेक्सी को खोजकर्ताओं ने एचडी1 (HD1) नाम दिया है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक यह अब तक खोजी गई सबसे दूर स्थित गैलेक्सी जीएन-ज़ेड11 से भी 10 करोड़ प्रकाश वर्ष ज्यादा दूर है. आइए, विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं ब्रह्मांड में सबसे दूर मौजूद इस चीज के बारे में.

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बिग बैंग के ‘करीब’

इस गैलेक्सी से हम तक पहुंचने वाला प्रकाश तब निकला था जब ब्रह्मांड महज 30 करोड़ साल पुराना था. यह 13.8 अरब वर्ष पहले हुए बिग बैंग के बाद अस्तित्व में आने वाली शुरुआती गैलेक्सियों में से एक है जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास को लेकर हमारी मौजूदा समझ को बदल सकती है. गौरतलब है कि बिग बैंग वह जोरदार धमाका था, जिससे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी. इस खोज के नतीजे ‘द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल’ में प्रकाशित किए गए हैं.

वैज्ञानिकों के मुताबिक एचडी1 गैलेक्सी इतनी पुरानी और दूर है कि इसमें सिर्फ धूल और गैस के पार्टिकल्स ही दिखाई देते हैं. शुरुआती ब्रह्मांड में धूल और गैस ही सभी जगहों पर बिखरा हुआ था. बिग बैंग के कुछ करोड़ सालों के बाद ही ब्रह्मांड की शुरुआती गैलेक्सियां बनीं थीं. ये गैलेक्सियां आकार-प्रकार में हमारी गैलेक्सी मिल्की-वे से हजारों गुना ज्यादा विशाल थीं. इन शुरुआती गैलेक्सियों का मूल काम आज की गैलेक्सियों को बनाने का था. इसलिए जितनी भी गैलेक्सियां आज ब्रह्मांड में मौजूद हैं, सभी इन्हीं शुरुआती गैलेक्सियों से ही बनी हुई थीं और हमारी मिल्की-वे भी संभवत: इन्हीं से बनी हुई हो.

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बेहद तेजी से हो रहा है तारों का निर्माण

हार्वर्ड एंड स्मिथसनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के सीनियर एस्ट्रोफिजिसिस्ट फैबियो पैकूकई (Fabio Pacucci) के मुताबिक एचडी1 अल्‍ट्रावॉयलेट लाइट में बेहद चमकीली दिखाई देती है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वहां कुछ ऊर्जावान प्रक्रियाएं (energetic processes) हो रही हैं या फिर अरबों साल पहले हो चुकी हैं.

शुरुआत में खगोलशास्त्रियों को लगा कि एचडी1 एक बेहद तेज दर से तारों का निर्माण कर रही स्टारबर्स्ट गैलेक्सी है, हालांकि, बाद में गणना करने पर एक अविश्वसनीय दर हासिल हुई. एचडी1 हर साल 100 से ज्यादा तारों का निर्माण कर रही थी. यह सामान्य स्टारबर्स्ट गैलेक्सियों की तुलना में 10 गुना ज्‍यादा है.

तब खगोलशास्त्रियों की टीम को संदेह हुआ कि एचडी1 रोजाना सामान्य रूप से तारों का निर्माण नहीं कर रही है. इसके अलावा एचडी1 से हम तक आने वाला प्रकाश भी दुविधा में डालने वाला है इसका रंग शुरु-शुरू में लाल था, जो धीरे-धीरे गहरे काले रंग में तब्दील हो रहा है.
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एचडी1 को लेकर दो विचार

खगोलशास्त्रियों की टीम ने इस खोज को लेकर दो संभावनाएं प्रस्तुत किए हैं। पहला यह कि उनका मानना है कि संभवत: एचडी1 आश्चर्यजनक दर से तारों का निर्माण कर सकती है और हो सकता है कि यह ब्रह्मांड के उन शुरुआती तारों में से हो, जिन्हें अब तक नहीं देखा गया था.

दूसरा यह कि एचडी1 हमारे सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 10 करोड़ गुना बड़ा सुपरमैसिव ब्लैक होल का घर हो सकता है. लेकिन, अगर इस गैलेक्सी में ब्लैक होल हुआ तो यह ब्रह्माण्ड के उन मॉडल्स के लिए चुनौती वाली जानकारी होगी जो ब्लैक होल के निर्माण और विकास की व्याख्या करते हैं. क्योंकि उनकी व्याख्या के उलट इस सुपरमैसिव ब्लैक होल का निर्माण व विकास बहुत ही जल्दी हो गया होगा. बिग बैंग के तुरंत बाद इतने विशाल सुपरमैसिव ब्लैक होल का बनना ब्रह्मांड संबंधी हमारे वर्तमान मॉडल के लिए एक चुनौती है.
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गौरतलब है कि अब तक की मान्यता के मुताबिक जब बड़े-बड़े तारों का हाइड्रोजन और हीलियम रूपी ईंधन खत्म हो जाता है, तब उन्हें फैलाकर रखने वाली ऊर्जा भी खत्म हो जाती है. ऐसे में अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण वे सिकुड़कर अत्यधिक सघन पिंड- ब्लैक होल बन जाते हैं. इस नई खोज के बाद अब सवाल तो यह उठ खड़ा हुआ है कि जब तारों का ही जन्म नहीं हुआ था तब तारों के अवशेष से सुपरमैसिव ब्लैक होल की उत्पत्ति कैसे हुई होगी? क्या यह संभव है कि पिता के जन्म से पहले ही पुत्र का जन्म हो जाए?

यह हो सकती है संभावना

ब्रह्मांड में बनने वाले तारों की पहली आबादी वर्तमान तारों की तुलना में अधिक विशाल, अधिक चमकदार और गर्म थी. अगर हम मान लें कि एचडी1 में निर्मित तारे ये पहले या ‘पॉप्युलेशन 3’ के हैं तो इसके गुणों को ज्यादा आसानी से समझाया जा सकता है. वास्तव में पॉप्युलेशन 3 के तारे सामान्य तारों की तुलना में अधिक प्रकाश उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं. हो सकता है कि इसी वजह से एचडी1 अल्‍ट्रावॉयलेट लाइट में ज्यादा तेजी से चमक रही हो.

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बेहद चुनौतीपूर्ण काम है शुरुआती ब्रह्मांड के पिंडों की पड़ताल

एस्ट्रोफिजिसिस्ट फैबियो पैकूकई के मुताबिक इतनी दूर मौजूद स्रोत की प्रकृति के सवालों का सही जवाब देना चुनौतीपूर्ण काम हो सकता है. यहां तक कि अत्यधिक चमकीले पिंड क्वासर्स (क्वासी स्टेलर रेडियो सोर्सेज) का भी प्रकाश इतनी लंबी यात्रा के बाद इतनी धुंधली हो जाती है कि हमारे शक्तिशाली दूरबीनों को भी इस प्रकाश को पकड़ने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है.

पैकूकई के मुताबिक यह कुछ-कुछ समुद्र में दूर घने कोहरे के बीच खड़े एक ऐसे जहाज के देश का पता लगाने जैसा ही है, जिसके झंडे के कुछ रंग और आकार तो दिख सकते हैं, लेकिन उसे पूरी तरह से नहीं देखा जा सकता है. शुरुआती ब्रह्मांड के पिंडों की पड़ताल करना बहुत ही मुश्किल काम है.

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ऐसे हुई ‘एचडी1’ की खोज

एचडी1 को सुबारू टेलीस्कोप, वीआइएसटीए टेलीस्कोप, यूके इन्फ्रारेड टेलीस्कोप और स्पिट्जर स्पेस टेलीस्कोप का इस्‍तेमाल करके लगभग 1,200 घंटे के ऑब्‍जर्वेशन के बाद खोजा गया. खगोलशास्त्रियों का कहना है कि सात लाख खगोलीय पिंडों के बीच में एचडी1 की खोज करना बहुत चुनौतीपूर्ण काम था.

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का इस्तेमाल करते हुए खगोलशास्त्रियों की टीम जल्दी ही एक बार फिर से धरती से दूरी की पुष्टि करने के लिए एचडी1 का ऑब्‍जर्वेशन करेगा. अगर मौजूदा गणना सही साबित होती है, तो एचडी1 अब तक रिकॉर्ड की गई सबसे दूर और सबसे पुरानी गैलेक्सी होगी.

बेहद रहस्यमय है ब्रह्मांड

हमारा ब्रह्मांड अद्भुत रहस्यों से अटा पड़ा है. हम विज्ञान और गणित की मदद से धीरे-धीरे इसके रहस्यों पर से पर्दा हटा रहे हैं. लेकिन ऐसी हर कोशिश के फलस्वरूप परदे के पीछे से कुछ नए सवाल आकर खड़े हो जाते हैं, इस खोज में भी यही हुआ. शायद यही विज्ञान की फितरत है. वह सवालों के जवाब तो देता है, लेकिन हर बार नए सवाल भी पकड़ा जाता है.

मानवता के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह खोज?

यह खोज हमारे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि, इससे हमारे ब्रह्मांड के पहले बने तारों के बारे में भी पता चलता है. जिसकी बदौलत हम ब्रह्मांड के बनने के वास्तविक कारण और प्रक्रिया के बारे में भी काफी कुछ जान सकते हैं. इसके साथ ही यह खोज भविष्य में हमें जीवन की उत्पत्ति के बारे में भी काफी कुछ बता सकती है, क्योंकि अगर ब्रह्मांड के शुरुआती तारों में फ्यूजन से भारी तत्व नहीं बनते, तो शायद ही आज किसी भी तरह के जीवन का अस्तित्व होता. ये तारे मूल रूप से हमारे तारकीय पूर्वज (Stellar Ancestors) हैं। आखिरकार हम भी उन्हीं तत्वों (ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि) से मिलकर बने हैं जो कभी इनसे निकले थे!

इसको लेकर आपको कोई शक है, क्या? महान वैज्ञानिक और विज्ञान संचारक कार्ल सैगन ने कहा है: “हमारे डीएनए में नाइट्रोजन, दांतों में कैल्शियम, हमारे खून में लोहा, हमारे हलवे में कार्बन (ये सब) तारों के अन्दर बने थे. हम तारा-पदार्थ (star stuff) से ही बने हैं.”
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(प्रदीप विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिख रहे हैं. उनकी दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनका ट्विटर हैंडल @pkonnet123 है)

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