खगोल वैज्ञानिकों के लिए एक और पर्व आ चुका है. 2 जुलाई 2019 को पहला पूर्ण सूर्यग्रहण पड़ रहा है. ला सेरेना, सैन जुआन, ब्रागाडो, जूनिन औररियो कुआर्टो, चिली और अर्जेंटीना के कुछ शहरों में सूर्यग्रहण दिखाई देगा. भारतीय समय के मुताबिक, ये सूर्यग्रहण 2 जुलाई की रात 10.25 बजे शुरू होगा. भारत में इसका बहुत ज्यादा असर देखने को नहीं मिलेगा.
- आखिर सूर्यग्रहण को लेकर वैज्ञानिकों में इतनी उत्सुकता क्यों रहती है?
- दुनिया ने अबतक के हुए सूर्यग्रहणों से क्या हासिल किया है?
- क्या है सूर्यग्रहण के बारे में जानकारी इकट्ठा करने का इतिहास?
सूर्यग्रहण को ट्रैक करने का इतिहास
नासा के मुताबिक, किसी भी तरह के ग्रहण का ऑब्जर्वेशन करीब 5 हजार साल पहले शुरू हुआ था. सभी सभ्यताओं के अपने तौर तरीके थे. चीन में कहा जाता था कि कोई आकाशीय ड्रैगन सूरज को खा जाता है. चंद्रग्रहण में चांद को निगल जाता है. इसी आधार पर राजा के शासन की भविष्यवाणी भी की जाती थी.
सूर्यग्रहण से विज्ञान की तरफ बढ़ते इंसान
ग्रहणों के बारे में फिजिकल रिकॉर्ड रखने की शुरुआत बेबिलोन से मिलती है. यहां 518 से 465 BCE के बीच लोगों ने खगोलीय घटनाओं का ब्योरा फिजिकल रिकॉर्ड के तौर पर तैयार किया.
बुध, शुक्र जैसे ग्रहों और सूरज जैसे तारे से जुड़ी खगलोलीय घटनाएं ट्रेस की जाती थीं. बेबिलोनियन एस्ट्रोनॉमर बाद में सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की भविष्यवाणी करना भी सीख गए थे. गति के नियमों की शुरुआती जानकारी भी सूर्यग्रहण जैसे खगोलीय घटनाओं से यहां के लोगों ने हासिल की.
विज्ञान का नया दौर, सूर्यग्रहण की अहमियत
आइंस्टीन की 'थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी' के बारे में आप जानते ही होंगे. आज गति (Motion), ब्रह्मांड (Universe) से जुड़ी हर नई थ्योरी कहीं न कहीं 'थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी' की वजह से ही है. इस थ्योरी को सही साबित करने का श्रेय सूर्यग्रहण को ही जाता है. साल 1919 में हुए एक सूर्यग्रहण के दौरान इस थ्योरी का पहला टेस्ट हुआ और ये सही साबित हुआ.
अबतक के कुछ खास सूर्यग्रहण और उनसे मिली जानकारी
कैसे लिया गया था ये टेस्ट?
दरअसल, आइंस्टीन की 'थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी' के मुताबिक, ग्रेविटी यानी गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश को तिरछा (Bend) कर सकता है.
टेस्ट के दौरान सूर्यग्रहण के पहले और बाद में कई तारों (stars) की तस्वीरें ली गईं, सूर्यग्रहण के दौरान गुरुत्वाकर्षण में बदलाव होता है, ऐसे में आइंस्टीन की थ्योरी के मुताबिक तारों की पोजिशन में बदलाव दिखना चाहिए था, और ऐसा ही हुआ.
हीलियम की खोज भी सूर्यग्रहण की देन
MRI मशीन, गुब्बारे से लेकर एयरोप्लेन के टायरों में इस्तेमाल होने वाला हीलियम भी सूर्यग्रहण के दौरान रिसर्च की ही देन है. हीलियम तत्व (Element) को दुनिया ने साल 1868 में हुए एक सूर्यग्रहण के दौरान जाना. खास बात ये है कि धरती पर हीलियम का भंडार है, लेकिन ये बात हमें साल 1895 तक नहीं पता था.
हालिया दिनों में सूर्यग्रहण के लिए जो उत्सुकता हम देखते हैं, उसकी बेस न्यूटन, केप्लर और एडमंड हैली जैसे वैज्ञानिकों ने रखी. इन्ही के दुनिया को सोलर सिस्टम के बारे में पता चल पाया.
सूर्य ब्रह्मांड का केंद्र है कब समझ आया?
प्राचीन काल में दुनिया को यही पता था कि पृथ्वी ही ब्रह्मांड का केंद्र है. 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में निकोलस कॉपरनिकस नाम के अंतरिक्ष वैज्ञानिक ने बताया कि पृथ्वी नहीं, सूर्य इस ब्रह्मांड का केंद्र है.
सोलर सिस्टम की समझ
17वीं और 18वीं शताब्दी में इस जानकारी को केप्लर, आइजैक न्यूटन और एडमंड हैली जैसे वैज्ञानिकों ने पुख्ता किया. इन वैज्ञानिकों की मदद से ही सोलर सिस्टम के बारे में दुनिया जान पाई.
अब सोलर सिस्टम की जानकारी के बाद सूर्य और चंद्र ग्रहण का कॉन्सेप्ट सामने आए, क्योंकि पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा अपने कक्ष में चक्कर लगाते रहते हैं
(इनपुट- नासा)
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