मुश्किल से 10 साल में एपल ने एक के बाद एक इनोवेशन के जरिए मोबाइल फोन इंडस्ट्री के समीकरण बदलकर रख दिए. इलेक्ट्रिक कारें भी ऐप बेस्ड टैक्सी सर्विस और सेल्फ-ड्राइव टेक्नोलॉजी की मदद से ताकतवर ऑयल इंडस्ट्री के साथ ये कहानी दुहरा सकती हैं. टेस्ला जैसी कंपनियों की ग्रोथ को उबर और अल्फाबेट की वेमो उसी तरह से तेज रफ्तार दे सकती हैं, जैसे आईफोन को ऐप इकोनॉमी और तेज मोबाइल इंटरनेट से मिली.
अगर ये सारी टेक्नोलॉजी साथ आ जाएं तो आने वाले दशकों में लोगों के सफर का तरीका बदल जाएगा, साथ ही ये अनुमान भी गलत साबित हो जाएगा कि बैट्री से चलने वाली गाड़ियों का खास असर तेल की मांग पर नहीं होगा.
2038 में पीछे छूट जाएंगी पेट्रोल-डीजल गाड़ियां
तेज रफ्तार से बढ़ सकती है इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री
ज्यादातर विशेषज्ञ पेट्रोलियम पर निर्भर यातायात में कमी को एक धीमी प्रक्रिया मान रहे हैं. लेकिन बड़े आर्थिक बदलाव कभी इतने सीधे नहीं होते, ये मानना है अर्थशास्त्री टिम हर्फोर्ड का, जिन्होंने अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल देने वाली ऐतिहासिक खोजों पर एक किताब और बीबीसी रेडियो सीरीज तैयार की है. कुछ ऐसा ही दस साल पहले हुआ था.
आईफोन ने लोगों को सिर्फ फोन कॉल करने का नया तरीका नहीं बताया- इसने एंग्री बर्ड बनाने वाली रोवियो एंटरटेनमेंट या वॉट्सऐप जैसी कंपनियों के लिए नई अर्थव्यवस्था तैयार कर दी. मोबाइल फोन बिजनेस के बुनियादी तौर-तरीके बदल गए और तत्कालीन दिग्गज नोकिया और ब्लैकबेरी की जगह एपल और सैमसंग जैसी कंपनियां आ गईं.
कुछ सालों में ही खत्म हुआ ब्लैकबेरी, नोकिया का दबदबा
आज एलन मस्क की टेस्ला और पुरानी ऑटो कंपनियां जैसे जनरल मोटर्स अपनी इलेक्ट्रिक कारों को लोकप्रिय बनाने की कोशिश कर रही हैं, उबर और लिफ्ट जैसी कंपनियां ट्रांसपोर्ट को ऑन-डिमांड सर्विस में बदल रही हैं और वेमो कैलिफोर्निया और एरिजोना की सड़कों पर पूरी तरह से स्वचालित गाड़ियों का टेस्ट कर रही हैं.
अगर इन तीनों को मिला दिया जाए तो आपके पास ट्रांसपोर्ट के नए मॉडल के रूप में ऐसी सर्विस होगी, जो कार रखने से कहीं ज्यादा सस्ती होगी. इलेक्ट्रिक कारों का एक बड़ा फायदा ये है कि उनकी मशीनी संरचना जटिल नहीं है, जिससे उनका रख-रखाव भी आसान है.
इलेक्ट्रिक कारों का रख-रखाव आसान
ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस के मुताबिक, टैक्सी सर्विसेज के लिए इलेक्ट्रिक और तेल से चलने वाली गाड़ियों को रखने की कुल लागत 2020 तक एक जैसी हो जाएगी, जबकि खुद की गाड़ी रखने वालों के लिए ये लागत इसके 5 साल बाद एक समान होगी.
लंदन में तो उबर ने 2019 के अंत तक उबर एक्स सर्विस को हाइब्रिड या पूरी तरह इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बदलने की योजना तैयार कर ली है. इसकी प्रतिद्वंद्वी लिफ्ट 2025 तक ऑटोनोमस इलेक्ट्रिक गाड़ियों में कम से कम 1 अरब राइड देने का लक्ष्य बना रही है.
जनरल इलेक्ट्रिक की एनर्जी कनेक्शंस यूनिट के चीफ डिजिटल ऑफिसर और वाइस प्रेसिडेंट स्टीवन मार्टिन इसे उबर मॉडल ऑन स्टेरॉइड्स कहते हैं.
एक बार कोई गाड़ी पूरी तरह से स्वचालित हो जाएगी, फिर मेरी गाड़ी खरीदने की इच्छा कम होगी और मैं चाहूंगा कि सब्सक्रिप्शन सर्विस ले लूं.
हालांकि फ्लीट को पूरी तरह से स्वचालित गाड़ियों में बदलने की रफ्तार स्मार्टफोन जैसी तेज नहीं हो सकती. इसके पीछे कई रेगुलेटरी, कानूनी, नैतिक और व्यवहारिक बाधाएं हैं. ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस का कहना है कि सेल्फ-ड्राइविंग टेक्नोलॉजी 2030 के पहले तक बड़े पैमाने पर लोकप्रिय नहीं होगी. फिर भी, इलेक्ट्रिक कारों की तरफ जाने से 2040 तक तेल की मांग में 80 लाख बैरल रोजाना की कमी आएगी. इसका तेल की कीमतों पर भारी असर पड़ेगा.
याद रखें कि 2008-2009 के आर्थिक संकट के दौरान तेल की खपत में 17 लाख बैरल रोजाना की कमी ने ही इसकी कीमतों को 146 डॉलर प्रति बैरल से 36 डॉलर पर लाकर पटक दिया था.
इलेक्ट्रिक कार घटाएगी तेल की खपत
इसका ये मतलब नहीं है कि बीपी और एक्सॉन मोबिल जैसी कंपनियां नोकिया की तरह ढह जाएंगी. पेट्रोल-डीजल जरूर उनकी बिक्री का सबसे बड़ा हिस्सा है, लेकिन क्रूड से केमिकल बनाने का बिजनेस भी काफी बड़ा है. साथ ही नेचुरल गैस की जरूरत तो बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भी होगी.
बीपी का मानना है कि बैट्री से चलने वाली कारें 2035 तक तेल की मांग में सिर्फ 10 लाख बैरल रोजाना की कमी लाएंगी, हालांकि वो मानते हैं कि अगर यहां कोई आईफोन क्रांति हुई, तो असर कहीं बड़ा होगा. वैसे भी जब स्टीव जॉब्स ने आईफोन लॉन्च किया था, तो कितने लोगों ने सोचा था कि ये कैमरे से लेकर च्युइंग गम बनाने वाली कंपनियों तक को मुश्किल में डाल देगा.
(सोर्स: bloomberg.com)
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