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जॉब देना तो ठीक है, पर ऑटोमेशन की मार से कौन बचाएगा?

क्या हर सेक्टर में बढ़ते आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या ऑटोमेशन के इस्तेमाल से पीएम के सपने को ठेस पहुंच सकता है?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में रोजगार के मौकों को पैदा करने के लिए कमर कस ली है. हाल ही में प्रधानमंत्री ने रोजगार से जुड़े आंकड़ों को भरोसेमंद तरीके से और सही समय से जुटाने के लिए टास्क फोर्स के गठन का आदेश दिया है.

वहीं खबर ये भी है कि प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रालयों को निर्देश दिया है कि कैबिनेट को भेजे जाने वाले सभी प्रस्तावों में ये जानकारी जरूर दी जाए कि उन प्रस्तावों को पास करने से रोजगार के कितने मौके बनेंगे ? मतलब साफ है, पीएम का इरादा है कि अगर किसी प्रस्ताव पर खर्च हो रहा है तो नौकरियां भी पैदा होनी चाहिए.

लेकिन सवाल ये है कि क्या हर सेक्टर में बढ़ते आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या ऑटोमेशन के इस्तेमाल से प्रधानमंत्री के सपने को ठेस पहुंच सकती है?

क्या सबसे ज्यादा नुकसान उस वर्ग का हो सकता है जो अप्रशिक्षित हैं या अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में काम कर रहे हैं ?
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ऑटोमेशन खा रही है नौकरियां !

जवाब जानने के लिए आपको बैंकिंग सेक्टर का उदाहरण बताते हैं . बैंकों में कस्टमर्स की मदद के लिए रोबोट रखने की शुरुआत की जा चुकी है. सिटी यूनियन बैंक की रोबोट ‘लक्ष्मी’ और एचडीएफसी बैंक की रोबोट ‘इरा’ इसके उदाहरण हैं. जहां पहले ये काम कोई कर्मचारी करता था उसकी जगह अब ये रोबोट काम करते हैं. ये सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या ऑटोमेशन की ही देन है.

इसका साइड इफैक्ट ये हुआ कि बैंकिंग इंडस्ट्री, जो कभी सबसे ज्यादा नौकरियां देने वाला क्षेत्र हुआ करता था वहां भी नौकरियों का संकट पैदा होता जा रहा है.

ऑटोमेशन क्यों अपना रही हैं कंपनियां

ऐसा नहीं है कि ऑटोमेशन के सिर्फ नकारात्मक परिणाम हैं. कंपनियों ने इन तकनीकों के इस्तेमाल से अपने लागत में भारी कटौती की है साथ ही इससे कार्यकुशलता को भी बढ़ाने में मदद मिली हैं. लेकिन इसने सबसे बड़ा खतरा पैदा किया है नौकरियों पर खासकर उन नौकरियों पर जिसका काम ये रोबोट या मशीन कर सकती हैं.

ट्रेनिंग देने की ज्यादा है जरूरत

साल 2017 में जारी एसोचैम और पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट में कहा गया है-

जिन सेक्टरों पर रोबोटिक सिस्टम और मशीन लर्निंग का ज्यादा असर होगा उनमें आईटी, मैन्युफैक्चरिंग, एग्रीकल्चर और फॉरेस्ट्री शामिल हैं. इसका नतीजा ये होगा कि नई नौकरियां उतनी पैदा नहीं हो पाएंगी जितनी जरूरत है. ऐसे में कम कार्यकुशल कर्मचारियों को दूसरे स्किल्स सिखाने की जरूरत होगी.

देश का हाल ये है कि यहां हर साल करीब 16 लाख ग्रेजुएट रोजगार के लिए बाजार में दाखिल हो रहे हैं जबकि आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन के चलते रोजगार देने की प्रक्रिया धीमी हो गई है.

ऐसे में सरकार के लिए ये बड़ा मुद्दा है कि रोजगार पैदा करने के लिए एक नई और कारगर रणनीति बनाई जाए. सरकार को लोगों के स्किल को निखारने पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि ऑटोमेशन के कारण नौकरियों में जो बदलाव हो रहे हैं उन्हें वो तेजी से अपना सकें.

उदाहरण के तौर पर, अगर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों की बात करें तो वहां तेजी से ऑटोमेशन को अपनाया गया है. कम समय में काम को निपटाने के लिए श्रमिकों की जगह रोबोट या मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे में उन श्रमिकों को इन मशीनों को हैंडल करने की ट्रेनिंग दी जा सकती है. जिससे उनकी नौकरी जाने पर भी आजीविका चलाने में कोई दिक्कत न हो. वरना ऑटोमेशन के साए में इन कर्मचारियों की नौकरी पर तलवार लटकी ही रहेगी.

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