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रिलायंस Jio को मिले निवेश और ‘स्वदेशी’ 5G का कनेक्शन

22 अप्रैल को फेसबुक ने रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म में 9.99 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली

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रिलायंस इंडस्ट्री के चेयरमैन मुकेश अंबानी के कारोबारी स्किल को आप सिर्फ इस बात से जान सकते हैं कि जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से परेशान है, कारोबार में घाटा हो रहा है वहीं दूसरी तरफ अंबानी निवेश लाने में जुटे हैं.

मार्केट-इकनॉमी के हालात सही नहीं हैं, लेकिन रिलायंस अपनी सेहत ठीक करने में जुटी है और फेसबुक से डील के बाद नए आयाम खुल रहे हैं.

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22 अप्रैल को फेसबुक ने रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म में 9.99 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली. फेसबुक ने ये हिस्सेदारी 43,574 करोड़ की खरीदी. 4 मई को अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फंड सिल्वर लेक पार्टनर्स ने रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म में 5,655 करोड़ की 1.15 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी.   

सिल्वर लेक पार्टनर्स दुनिया के सबसे बड़े टेक्नोलॉजी निवेशकों में से एक है. इसने AirBnB, अलीबाबा, ट्विटर और ANT फाइनेंशियल जैसी टॉप टेक कंपनियों में निवेश किया है.

5G पर बड़ी बोली

लेकिन रिलायंस जियो इस निवेश के पैसे का करेगा क्या? फेसबुक और सिल्वर लेक जैसी कंपनियां जियो में निवेश के लिए उत्सुक क्यों हैं?

जियो के एक बयान में कहा गया है कि निवेशक कंपनी की ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी, स्मार्ट डिवाइस, बिग डेटा एनालिटिक्स, अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड कंप्यूटिंग, मिक्स्ड रियलिटी और ब्लॉकचेन पर पकड़ से प्रभावित हैं.

लेकिन कुछ और भी है.

भारत में 5G लागू होने की पहल को लेकर रिलायंस जियो बड़ा गेम खेल रहा है. कंपनी बिना किसी थर्ड पार्टी प्लेयर के 5G लागू करने की योजना बना रही है. कंपनी खुद की टेक्नोलॉजी डेवलप करेगी.  

स्वदेशी 5G टेक्नोलॉजी

4G के लिए रिलायंस, सैमसंग के इक्विपमेंट पर निर्भर था. कंपनी सैमसंग के साथ 5G ट्रायल भी कर रही थी. लेकिन टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने अपने 2018 के नोटिफिकेशन में टेलीकॉम इक्विपमेंट के लोकल मैन्युफेक्चर पर जोर दिया है.

रिलायंस चेयरमैन मुकेश अंबानी ने हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से एक मीटिंग के दौरान कहा, "जियो पूरी दुनिया में अकेला ऐसा नेटवर्क है, जिसके 5G सेटअप में कोई चाइनीज कॉम्पोनेन्ट नहीं होगा." एयरटेल और वोडाफोन ने 5G इक्विपमेंट के लिए हुआवेई और ZTE समेत कई कंपनियों से साझेदारी की है.

रिलायंस जियो ने 2018 में एक अमेरिकी फर्म Radisys को 67 मिलियन डॉलर में खरीद लिया और उसकी सब्सिडियरी Rancore Technologies का खुद में विलय कर लिया. ये विलय टेलीकॉम इक्विपमेंट बनाने के लिए किया गया. ये एक्विपमेंट या तो भारत में डिजाइन किया जाएगा और बाहर बनेगा, या फिर भारत में डिजाइन और बनाया जाएगा.  

अपना इक्विपमेंट बनाना एक बात है. कंपनी को 5G स्पेक्ट्रम के लिए डीप पॉकेट भी चाहिए. 5G स्पेक्ट्रम बैंड 3,300 MHz से 3,600 MHz के बीच का है.

TRAI ने 492 करोड़ प्रति MHz के बेस प्राइस का सुझाव दिया है. इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन (ITU) के मुताबिक किसी ऑपरेटर को पूरे भारत में 5G ऑपरेट करने के लिए न्यूनतम 100 MHz चाहिए.

मतलब किसी ऑपरेटर को कम से कम 49,200 करोड़ चाहिए.  

अब जरा अंदाजा लगाइए कि किस कंपनी ने पिछले कुछ हफ्तों में 49,229 करोड़ का निवेश जुटाया है?

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