फेसबुक और गूगल जैसे सोशल मीडिया जायंट्स कह चुके हैं कि वो नए आईटी नियमों का पालन करेंगे, लेकिन WhatsApp ने सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार फैसले का दे हवाला दिया है और नियमों को कोर्ट में चुनौती भी दी है. WhatsApp का कहना है कि इससे यूजर्स के 'बोलने और निजता के अधिकार' का हनन होगा.
नए नियमों की काफी आलोचना हो रही है है. कम से कम छह याचिकाकर्ता इन नियमों को कोर्ट में चुनौती दे चुके हैं.
लेकिन टेक कंपनियों के इनका पालन करने के बाद यूजर्स के लिए आगे की राह क्या होगी, वो अपने ‘निजता और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार’ को कैसे बचा सकते हैं.
क्विंट ने इंटरनेट फ्रीडम एक्टिविस्ट और लीगल एक्सपर्ट्स से बातचीत कर इसे समझने की कोशिश की.
'टेक कंपनियों को नियमों को चुनौती देनी चाहिए'
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के तन्मय सिंह का मानना है कि टेक कंपनियों को संवैधानिक अदालतों में नए आईटी नियमों को चुनौती देनी चाहिए.
सिंह ने कहा, "अगर कंपनी को लगता है कि किसी कानूनी एजेंसी का कोई निवेदन भारतीय कानून के मुताबिक नहीं है तो उसे ऐसे आदेशों का विरोध करना चाहिए, खासकर क्योंकि ऐसे आदेश यूजर को नहीं दिए जाते हैं और यूजर को सुनवाई का मौका भी नहीं मिलता. अगर टेक कंपनियां बोलने की आजादी के लिए प्रतिबद्ध हैं तो उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि उनके यूजर्स का कानूनी एजेंसियों के समक्ष निष्पक्ष प्रतिनिधित्व हो."
चुनौती नहीं दे सकते? 'निजता मुद्दे के समाधान के लिए टेक्नोलॉजी बनाइए'
SFLC के लीगल डायरेक्टर प्रशांत सुगथन का कहना है कि अगर सोशल मीडिया कंपनियां आईटी नियमों का पालन करती हैं तो कम से कम उन्हें साथ मिलकर ऐसी टेक्नोलॉजी बनानी चाहिए जो डेटा निजता और अभिव्यक्ति की आजादी की दिक्कत का समाधान करे.
द डायलॉग के फाउंडिंग डायरेक्टर काजिम रिजवी ने क्विंट से कहा कि अगर कोई प्लेटफॉर्म सोचता है कि नए नियम फ्री स्पीच का हनन कर सकते हैं तो ये बहुत जरूरी हो गया है कि वो अपने कम्युनिटी गाइडलाइन को और मजबूत बनाएं.
“प्लेटफॉर्म रेगुलेशन के नियम सबके लिए बराबर होने चाहिए. अलग-अलग वर्गों और समुदाय से मॉडरेटर को हायर करना चाहिए जिससे कि एक समावेशी इकोसिस्टम बन पाए.”काजिम रिजवी
यूजर्स क्या कर सकते हैं?
तन्मय सिंह का कहना है कि निजी जानकारी सीमित करने के अलावा यूजर को ज्यादा निजी और सुरक्षित मेसेजिंग ऐप, ईमेल, इंटरनेट ब्राउजर के विकल्पों की खोज करते रहनी चाहिए.
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के ग्रीवांस रिड्रेसल मैकेनिज्म से प्रतिबंधित स्पीच की घटनाओं को रिपोर्ट करते समय भी यूजर को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए.
- यूजर को ध्यान रखना चाहिए कि वो उसी स्पीच को रिपोर्ट करे जो असल में कानून के मुताबिक प्रतिबंधित है, न कि उन्हें रिपोर्ट करे जो उसके राजनीतिक विचारों से मेल नहीं खाती हो. इससे ग्रीवांस रिड्रेसल मैकेनिज्म पर बोझ बढ़ेगा और काम लायक नतीजे नहीं मिलेंगे.
सुगथन की सलाह है कि अगर कोई कंटेंट ब्लॉक है तो यूजर सक्रिय रूप से जागरुकता फैलाए. उन्होंने कहा, “आईटी नियमों के प्रावधानों के मुताबिक, कंटेंट या यूजर अकाउंट हटाने या ब्लॉक कराने के निवेदनों को सोशल मीडिया इंटरमीडियरी के जरिए जाना होगा.”
यूजर कम्युनिटी गाइडलाइन का उल्लंघन करने वाले कंटेंट को फ्लैग करें और प्लैटफॉर्म्स को लगातार फीडबैक देते रहें.
'नेटिजन की ताकत को कम नहीं आंकना चाहिए'
तन्मय सिंह ने क्विंट से कहा कि भारतीयों की ताकत नेट न्यूट्रैलिटी मूवमेंट के समय साफ दिखी थी. उस समय टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) को 10 लाख से ज्यादा ईमेल भेजे गए थे.
सिंह ने कहा, "अंत में नतीजा निकला कि TRAI ने नेट न्यूट्रैलिटी की तरफ प्रतिबद्धता का ऐलान किया. पिछले अनुभवों से सीख लेते हुए वहां इस्तेमाल किए जा सकते हैं जहां जरूरत हो."
यूजर को सक्रिय रहते हुए सरकार और सोशल मीडिया कंपनियां दोनों से जवाबदेही मांगते रहना चाहिए.
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