अगर आप किसी व्हाट्सऐप या फेसबुक ग्रुप के एडमिनेस्ट्रेटर हैं तो सावधान हो जाइये. आपके किसी भी ग्रुप मेंबर की गलत हरकत आपको पुलिस के हत्थे चढ़ा सकती है. जानकारों का मानना है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के ग्रुप एडमिन की कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं जिन्हें ना निभाने पर उसके खिलाफ साइबर एक्ट के तहत कार्रवाई मुमकिन है.
हाल में वाराणसी जिला प्रशासन ने सोशल मीडिया ग्रुप में गलतबयानी, अफवाह या धर्म विशेष के खिलाफ विवादित सूचना शेयर होने की सूरत में ग्रुप एडमिन के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया था. वाराणसी पुलिस ने इस सिलसिले में गिरफ्तारी भी की है. इसके बाद से इस मुद्दे से जुड़े कानूनी अधिकारों को लेकर बहस छिड़ी हुई है.
साइबर लॉ के जानकार और सुप्रीम कोर्ट में वकील पवन दुग्गल ने क्विंट हिंदी को बताया कि साइबर कानून को लेकर स्पष्टता की कमी है.
आईटी एक्ट, 2000 के मुताबिक
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (व्हट्सएप) पर ग्रुप बनाने की सूरत में ग्रुप एडमिन की भी कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं. एडमिन को अपने ग्रुप में शामिल यूजर्स को बताना चाहिए कि वो कोई भी गैरकानूनी, अवमानना, प्राइवेसी में दखल या इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी राइट के उल्लंघन ये जुड़ी पोस्ट ना डालें.
अगर आप ये जिम्मेदारी निभाते हैं तो कानून आपको सुरक्षा देता है लेकिन अगर नहीं निभाते तो आप कानून के दायरे में आ जाते हैं. तो ग्रुप एडमिन के नाते ये आप पर है कि आप खुद को कितना कानूनी दायरे से बाहर रखते हैं.
इससे पहले वाराणसी के जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नितिन तिवारी ने 19 अप्रैल, 2017 को इस संबंध में एक संयुक्त आदेश जारी किया था.
इसके अगले ही दिन एक गिरफ्तारी हुई. वाराणसी पुलिस के मुताबिक, आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 295 ए और आईटी एक्ट की धारा 66 ए के तहत कार्रवाई की जा रही है.
हमारे देश में 20 करोड़ से ज्यादा व्हाट्सएप यूजर्स हैं जिनकी तादाद लगातार बढ़ रही है. साफ है कि आम जिंदगी में सोशल मीडिया के बढ़ते असर से अभिव्यक्ति की आजादी बनाम कानून की दखलंदाजी की बहस आने वाले दिनों में और तेज होगी.
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