तमाम वॉट्सऐप ग्रुप में आपको वो मेसेज मिलते होंगे, जिनमें कभी किसी और कभी किसी हस्ती के गलत काम में लिप्त होने का दावा किया जाता है. हालांकि इन मेसेज में कोई सबूत नत्थी नहीं होता.
मेसेज भेजने वाले आपसे ऐसे नेता या हस्ती का समर्थन न करने की अपील करते हैं. बेशक आप ऐसे वॉट्सऐप मेसेज से आजिज आ चुके होंगे. कई बार ऐसा भी होता है कि आप किसी वेबसाइट पर कोई लेख पढ़ रहे हों और वहीं पास में एक लिंक दिखता है, जिसमें एक रहस्यमय फल खाने से कैंसर के इलाज का दावा किया गया होता है.
आपने ऐसे शीर्षक भी पढ़े होंगे, जो अविश्वसनीय लगे होंगे. ऐसी खबरें अकसर ऐसे पब्लिकेशन की होती हैं, जिनका नाम आपने शायद ही पहले कभी सुना हो?
आप जो खबर पढ़ रहे हैं, वह सच है या झूठ, इसका पता आसानी से लगाया जा सकता है. यहां हम उसके कुछ तरीके बता रहे हैं.
1. सर्च इंजन
तथ्यों की पड़ताल में सर्च इंजन से काफी मदद मिलती है. आपको किसी खबर पर संदेह हो तो गूगल जैसे सर्च इंजन में कीवर्ड टाइप कीजिए और नतीजे देखिए. खबर सही होगी तो कई भरोसेमंद न्यूज एजेंसियों और पब्लिकेशंस ने उसे छापा होगा और अपनी वेबसाइट पर डाला होगा.
अगर वह झूठी होगी तो आपको उसके बहुत कम लिंक मिलेंगे. हो सकता है कि आपको तथ्यों की जांच करने वाली किसी वेबसाइट का कोई लिंक मिल जाए, जिसमें इस फर्जी खबर की पोल खोली गई हो.
गूगल ने 'फैक्ट चेक' यानी तथ्यों की पड़ताल करने वाला एक टूल भी लॉन्च किया है. इसमें फैक्ट चेकिंग वेबसाइटों के सर्च रिजल्ट ऊपर आते हैं, जिससे खबर के सही या गलत होने का पता लगाया जा सकता है. मिसाल के लिए, अगर आपने 'डोनल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद छोड़ने की योजना बना रहे हैं' टाइप किया तो पहले दो नतीजे फैक्ट चेकिंग वेबसाइट 'पॉलिटिफैक्ट' के दिखेंगे.
दूसरे लिंक में आप यह देख सकते हैं कि ट्रंप के पद छोड़ने का झूठा दावा किसने किया, दावा असल में क्या था और इसके साथ फैक्ट चेक के नतीजे भी आपको दिखेंगे.
2. रिवर्स इमेज सर्च
गूगल के 'रिवर्स इमेज सर्च' टूल का इस्तेमाल करके आप खास तस्वीरें सर्च कर सकते हैं. इससे पता लगाया जा सकता है कि वह तस्वीर किसकी है और सबसे पहले कहां छपी थी. इससे मिलती-जुलती तस्वीर भी अगर सर्च की गई होगी, तो उसकी जानकारी भी मिल जाएगी.
आपको यह भी पता लग जाता है कि उस तस्वीर से छेड़छाड़ हुई है या नहीं? इससे उन झूठी खबरों की सच्चाई सामने आ जाती है, जिन्हें दूसरे मकसद से फैलाया जा रहा है.
ऐसा ही एक मामला हाल में सामने आया. इसमें वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त की एक फोटो ट्विटर पर फैलाई जा रही थी. इसमें उन्हें एक हाथ में पाकिस्तान का झंडा लिए हुए दिखाया गया था. रिवर्स इमेज सर्च से पता चला कि इसी तरह की एक फोटो www.careers360.com की वेबसाइट पर थी, लेकिन उसमें उनके हाथ में पाकिस्तान का झंडा नहीं था.
रिजल्ट में फैक्ट चेकिंग वेबसाइट का लिंक भी दिखता है, जिसमें इमेज को झूठा बताया गया है. इसमें यह दावा किया गया है कि पाकिस्तान के झंडे को फोटोशॉप टूल के जरिए इमेज में जोड़ा गया.
3. फर्स्ट ड्राफ्ट का न्यूज चेक एक्सटेंशन
'फर्स्ट ड्राफ्ट' नौ पार्टनर कंपनियों का गैर-लाभ गठबंधन है, जिसमें गूगल न्यूज लैब भी शामिल है. इसका मकसद डिजिटल वर्ल्ड में सच और विश्वसनीयता से जुड़ी चुनौतियों से निपटना है. इसने 'न्यूजचेक' नाम से एक एक्सटेंशन रिलीज किया है, जो वीडियो या फोटो की सच्चाई का पता लगाने में मदद करता है.
एक विस्तृत चेकलिस्ट के आधार पर यह काम करता है. यह काम सिर्फ चार स्टेप में किया जा सकता है. यह ट्विटर के जरिए लॉग इन करता है. इसलिए आप वेरिफिकेशन चेक करने वाले का ट्विटर हैंडल देख सकते हैं, जिसने किसी वीडियो या तस्वीर की सच्चाई का पता लगाया हो.
4. फेसबुक का फैक्ट चेकिंग टूल
फेसबुक पर काफी फर्जी खबरें फैलाई जाती हैं. इस समस्या से निपटने के लिए फेसबुक ने एक टूल लॉन्च किया, जिसमें यूजर्स को उस आर्टिकल के सच होने पर ऐतराज जताने वाले किसी फैक्ट चेकर की जानकारी दी जाती है.
'पॉएंटर इंस्टीट्यूट फॉर मीडिया स्टडीज' की आचार संहिता का पालन करने वाले फैक्ट चेकर्स की जानकारी ही यहां आपको मिलती है. इसमें दुनिया भर के फैक्ट चेकर्स शामिल हैं, लेकिन इसके साथ एक समस्या यह है कि कई मेनस्ट्रीम फैक्ट चेकिंग वेबसाइटों की विश्वसनीयता भी संदिग्ध है. इसलिए इससे फेक न्यूज को रोकने में ज्यादा मदद नहीं मिलेगी.
5. गूगल ट्रांसलेट
इस लिस्ट में गूगल ट्रांसलेट का नाम आपको चौंका सकता है, लेकिन बता दें कि ये भी काफी काम की चीज है. वॉट्सऐप पर फॉरवर्ड किए जाने वाले मेसेज और लेखों में कई बार ऐसी भाषा का इस्तेमाल होता है, जिसे शायद मेसेज पाने वाला न समझता हो.
इसके साथ उसका ट्रांसलेशन भी मेसेज में होता है. उस ट्रांसलेशन पर सीधे भरोसा करने के बजाय आप मूल टेक्स्ट को गूगल ट्रांसलेट में डालकर उसकी सच्चाई का पता लगा सकते हैं. हो सकता है कि दूसरी भाषा में जो बात लिखी गई हो, उसका कुछ और ही मतलब हो.
इस साल फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान एक ट्वीट आया, जिसमें यह दावा किया गया था कि चरमपंथी संगठन अलकायदा इमैनुएल मैक्रों का समर्थन कर रहा है. यह ट्वीट वायरल हो गया था.
इस ट्वीट में अलकायदा के सहयोगी अखबार अल मसरा की एक खबर का स्क्रीनशॉट लगा था. जबकि उस लेख में मैक्रों का समर्थन नहीं किया गया था और यह उनकी उस साल की अल्जीरिया यात्रा के बारे में था.
(ये लेख बीबीसी हिंदी और 'द क्विंट' की साझा पहल 'स्वच्छ डिजिटल इंडिया' का हिस्सा है. इसी मुद्दे पर 'द क्विंट' का अंग्रेजी लेख यहां पढ़िए और साथ ही बीबीसी हिंदी का लेख यहां पढ़िए)
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