5G वायरलेस नेटवर्क को लेकर दुनियाभर में बहस जारी है. बॉलीवुड एक्टर और एन्वायरमेंटल एक्टिविस्ट जूही चावला ने अब इस सिलसिले में दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है. अपनी याचिका में जूही चावला ने रेडिएशन से लोगों और जानवरों पर होने वाले प्रभावों को लेकर चिंता व्यक्त की है.
तो 5G नेटवर्क को लेकर क्यों छिड़ी है दुनियाभर में बहस? समझते हैं.
जूही चावला ने दायर की याचिका
जूही चावला ने कहा, “हम टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट के खिलाफ नहीं है. बल्कि, हम टेक्नोलॉजी के लेटेस्ट प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें वायरलेस कम्युनिकेशंस के क्षेत्र भी शामिल हैं. हालांकि, बाद के उपकरणों का उपयोग करते समय, हम निरंतर दुविधा में रहते हैं, क्योंकि वायर-फ्री गैजेट्स और नेटवर्क सेल टावरों से RF रेडिएशन के संबंध में अपनी खुद की रिसर्च और स्टडी करने के बाद, हमारे पास ये मानने का पर्याप्त कारण है कि रेडिएशन लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर हानिकारक है.”
जूही चावला ने कहा कि अगर टेलीकन्युनिकेशंस इंडस्ट्री 5G लागू करने का प्लान करती है, तो कोई इंसान, कोई जानवर या धरती पर कोई भी पेड़-पौधा RF रेडिएशन से बच नहीं पाएगा, जो कि मौजूदा रेडिएशन से काफी ज्यादा खतरनाक है.
दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका में चावला ने अधिकारियों को बड़े पैमाने पर जनता को प्रमाणित करने के लिए निर्देश देने की मांग की कि 5G टेक्नोलॉजी मानव जाति, पुरुष, महिला, वयस्क, बच्चे, शिशु, जानवरों और हर प्रकार के जीव-जंतुओं, वनस्पतियों और जीवों के लिए सुरक्षित है.
5G को लेकर स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स समेत कई देशों में विरोध प्रदर्शन भी हो चुका है.
5G को लेकर क्या हैं चिंताएं?
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, 5G नेटवर्क रेडियो तरंगों द्वारा किए गए संकेतों पर निर्भर करता है, जो इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम का एक हिस्सा है, ये एंटीना और आपके फोन के बीच ट्रांसमिट करता है. पुराने मोबाइल नेटवर्क की तुलना में, 5G ज्यादा फ्रीक्वेंसी की वेव का इस्तेमाल करता है, ताकि एक समय पर ज्यादा से ज्यादा डिवाइस इंटरनेट से कनेक्टेड रहें और ये तेज स्पीड में काम करे.
5G नेटवर्क इस स्पीड से काम कर सके, इसके लिए इसे ज्यादा ट्रांसमिटर मास्ट (खंभों) की जरूरत होती है, जो जमीनी स्तर के नजदीक लगाए जाते हैं.
WHO की 27 फरवरी 2020 को पब्लिश हुई रेडिएशन: 5G मोबाइल नेटवर्क एंड हेल्थ रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक वायरलेस तकनीकों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर किसी भी तरह का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है. WHO की रिपोर्ट कहती है कि रेडियोफ्रीक्वेंसी फील्ड और ह्यूमन बॉडी के बीच संपर्क से टीशू हीटिंग होता है. मौजूदा तकनीकों से पैदा होने वालीं रेडियोफ्रीक्वेंसी से शरीर के तापमान में मामूली वृद्धि होती है. क्योंकि अभी एक्सपोजर इंटरनेशनल गाइडलाइंस से नीचे है, तो पब्लिक हेल्थ को लेकर किसी जोखिम की संभावना कम है.
WHO रेडियोफ्रीक्वेंसी के एक्सपोजर के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर एक एसेसमेंट भी कर रहा है, जिसमें 5G तकनीक शामिल है. ये एसेसमेंट 2022 तक पब्लिश होगा.
बिजनेस टुडे में 24 जनवरी 2021 को छपी रिपोर्ट में, Deloitte की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “हम अनुमान लगाते हैं कि 2021 में, ये बहुत कम संभावना है कि 5G मोबाइल नेटवर्क और 5G फोन की रेडिएशन किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करेगा, चाहे वह 5G यूजर हो या किसी भी दूसरे मोबाइल फोन जेनरेशन का.”
5G कैसे काम करता है?
5G का मतलब है पांचवें जेनरेशन की सेलुलर नेटवर्क टेक्नोलॉजी. ये एक सॉफ्टवेयर आधारित नेटवर्क है, जिसे वायरलेस नेटवर्क की स्पीड और कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए डेवलप किया गया है. ये तकनीक डेटा क्वांटिटी को भी बढ़ाती है, जो वायरलेस नेटवर्क को ट्रांसमिट किया जा सकता है.
5G नेटवर्क के जरिये डेटा 4G की तुलना में 100 से 250 गुना अधिक स्पीड से ट्रैवल कर सकता है. इससे 8k फॉरमेट में एक साथ सैकड़ों फिल्मों को देखा जा सकता है. फैक्टरी रोबोटिक्स, सेल्फ ड्राइविंग कार टेक्नोलॉजी, मशीन लर्निंग नेटवर्क, क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी और एडवांस मेडिकल इक्विपमेंट और स्मार्ट सिटी से जुड़ी टेक्नोलॉजी में यह 5G टेक्नोलॉजी क्रांति ला सकती है.
रेडिएशन को लेकर लगातार एनवायरमेंट एक्टिविस्ट सवाल उठाते रहे हैं. हालांकि अब तक इस पर रिसर्च जारी है.
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