तीन पिता, तीन राजनीतिक विरासत. लेकिन अपने बेटों को स्थापित करने का रूट अलग-अलग..
एन डी तिवारी
पहले तो कई सालों तक रोहित शेखर को बेटा मानने से इनकार किया. फिर पुत्रमोह में ऐसे बंधे कि दशकों पुराना 'हाथ' छोड़ 'कमल' के चक्कर में फंस गए.
3 बार उत्तर प्रदेश और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. 2007 में आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी रहे. कई महत्वपूर्ण पदों की शोभा बढ़ाने वाले तिवारी भले ही खुद पीएम बनने का ख्वाब पूरा न कर पाए हों, लेकिन अस्सी के दशक तक राजनीति में इनकी बड़ी धाक थी.
वो चुनाव तो नहीं लड़ेंगे, लेकिन अपने बेटे रोहित शेखर को टिकट दिलाने के लिए खुद अपना रेज्यूमे भी अपडेट कर डाला!
मुलायम सिंह यादव
बाप-बेटे की बात हो और आप यूपी भसड़ भूल जाएं, ऐसा मुमकिन नहीं.
नेता जी की उम्र भले ही ढल रही हो, लेकिन पहलवानी का जोश आज भी लिए बैठे हैं. जोर-आजमाइश के लिए चुनावी अखाड़े में बेटे अखिलेश को ही ललकार लिया.
लेकिन जो दांव खेला, उसमें मुलायम खुद ही चित हो गए- एकदम आउट ऑफ कंट्रोल. अब पहलवानी के नए गुर उन्हें अपने बेटे अखिलेश से सीखने होंगे.
लालू प्रसाद यादव
बाप-बेटे के रिश्ते में सियासत की बिसात पर फुल कंट्रोल में अपने लालू जी दिख रहे हैं. बेटे तेजस्वी और तेजप्रताप यादव को सेट कर दिया. खुद का रुतबा भी कायम.
इसे कहते हैं मूंछ भी बची है और लाठी की ताकत भी बरकरार. लालू इस खेल में उस्ताद निकले. जेन नेक्स्ट को बैटन थमा दिया और अपना रिमोट भी सुरक्षित रखा.
इन्होंने समझा दिया कि सारे बापू सेहत के लिए हानिकारक नहीं होते!
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