"मुझे रात एक बजे हॉस्पिटल से कॉल आया. मैं जब ट्रॉमा वार्ड पहुंचा तब वहां मृत आतंकी अबू इस्माइल और जिंदा आतंकी अजमल कसाब था", नायर हॉस्पिटल के फॉरेंसिक हेड डॉ.शैलेश मोहिते 26/11 मुंबई हमले की काली रात की कहानी बयान करते हैं.
मुंबई पर हुए इस दर्दनाक हमले को 13 साल पूरे हो रहे हैं. लेकिन आज भी इस हमले से जुड़े कई ऐसे लोग हैं जो उस रात को नहीं भूल पाए हैं. इनमें से एक हैं डॉ. शैलेश मोहिते. इन्होंने उस रात ही नहीं बल्कि आगे भी इस आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार आतंकियों को सही अंजाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है.
डॉ. शैलेश मोहिते 26/11 की रात अपने दोस्त के घर में इंडिया-इंग्लैंड मैच देख रहे थे. तभी मुंबई के सीएसटी स्टेशन इलाके में फायरिंग की खबरें आने लगीं. डॉ. मोहिते बताते हैं कि पहले तो उन्हें ये गैंग वॉर लगा लेकिन जैसे-जैसे घटना की तस्वीरें सामने आने लगीं वैसे-वैसे इस हमले की तीव्रता का अंदाजा हुआ.
नायर हॉस्पिटल से फोन आने पर डॉ. मोहिते ट्रॉमा वार्ड में पहुंचे. वहां पुलिस की हिरासत में जिंदा आतंकी अजमल कसाब से पूछताछ जारी थी. तो वहीं हमले के मास्टरमाइंड अबू इस्माइल का गोलियों से छलनी हुआ शव पड़ा था. डॉ. मोहिते ने तुरंत परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए अपने स्टाफ को इमरजेंसी सर्विसेस के लिए तैयार किया. अबू इस्माइल पर पोस्टमार्टम करते समय सबूत इकट्ठा करने का काम सबसे अहम था.
डॉ. मोहिते बताते हैं कि उन्होंने इससे पहले कई आपातकालीन स्थिति में काम किया है. जैसे बड़ी दुर्घटना, बम ब्लास्ट और हूच ट्रेजेडी. लेकिन ये रात इसलिए अलग थी क्योंकि सामने आतंकी था. उन्हें इस बात का डर था कि कहीं वो किसी पर हमला ना कर दे या फिर साइनाइड खाकर खुदकुशी की कोशिश ना करे. इसलिए उन्हें अधिक सतर्क रहना था.
26/11 हमले के बाद इतनी लाशें आ गईं थीं कि पोस्टमार्टम के लिए देश में पहली बार सीटी स्कैन करना पड़ा- डॉ. शैलेष जैन
आतंकियों की पहचान गुप्त रखना सबसे बड़ी प्राथमिकता थी क्योंकि अगर मीडिया के जरिये ये खबर फैलती तो हॉस्पिटल अन्य आतंकियों के निशाने पर आ जाता. इसके अलावा हमले में मारे गए सभी नागरिकों की लाशें नायर हॉस्पिटल लाई जा रही थी. इसलिए उस रात कितनी लाशें आ सकती हैं इसका कोई अंदाजा नही था.
हालांकि डॉ मोहिते ने उस रात भारत के इतिहास में पहली बार पोस्टमार्टम के लिए CT-Scan तकनीक का इस्तेमाल किया. इससे पहले X-Ray का उपयोग होता था जो एक पोस्टमार्टम के लिए आधे घंटे का समय लेता था. लेकिन डॉक्टरों की सूझबूझ की वजह से केवल तीन मिनिट में एक शव का पोस्टमार्टम हुआ और परिजनों को जल्द से जल्द शव लौटाने में मदद हुई.
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