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म्युचुअल फंड में पैसा नहीं बन रहा? तो ये गलतियां जरूर की होंगी

पिछले कुछ सालों में इक्विटी इन्वेस्टमेंट यानी शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने का ट्रेंड काफी बढ़ा है.

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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

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Mutual Funds are subjected to market risk. Please read documents carefully before investing. म्युचुअल फंड के एड्स के बाद आपने कई बार ये चेतावनी सुनी होगी. वाकई म्यूचुअल फंड में निवेश रिस्की तो है लेकिन अगर आप थोड़ी स्मार्टनेस दिखाएं तो आप खुद इस रिस्क को कम कर सकते हैं.

पिछले कुछ सालों में इक्विटी इन्वेस्टमेंट यानी शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने का ट्रेंड काफी बढ़ा है. और इस ट्रेंड को तेज करने में अहम भूमिका निभाई है इक्विटी म्युचुअल फंड्स ने. छोटे निवेशकों के लिए शेयरों में सीधा निवेश करने की बजाय म्युचुअल फंड्स में निवेश करना बेहतर माना जाता है, क्योंकि इससे निवेशकों को शेयर बाजार से जुड़े जोखिम को कम करने में मदद मिल जाती है.

म्युचुअल फंड्स के निवेशक जाने-अनजाने कुछ गलतियां कर देते हैं जिसका नतीजा होता है कम रिटर्न या फिर निगेटिव रिटर्न. हम आपको बताते हैं वो पांच गलतियां, जिनसे आप अगर बच गए तो म्युचुअल फंड में भी अच्छा पैसा बना सकते हैं

1. पहली गलती है बाजार की उछाल देखकर निवेश करना

कई बार छोटे निवेशकों को बाजार में आई जोरदार तेजी देखकर लगता है कि उन्हें उसी वक्त निवेश करना चाहिए और तेजी का फायदा उठाना चाहिए. लेकिन कई बार बाजार जितनी तेजी के साथ ऊपर जाता है, नीचे भी उतनी ही तेजी से आता है. इसलिए अच्छे रिटर्न हासिल करने के लिए जरूरी है अनुशासित और लगातार निवेश. इक्विटी म्युचुअल फंड्स में एसआईपी यानी सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान इस अनुशासन को लाता है. वहीं बाजार की तेजी के माहौल में किया गया निवेश आपके जोखिम को कई गुना बढ़ा देता है.

2. 'जल्दबाजी दिखाना, निवेश को पर्याप्त समय नहीं देना'

ये याद रखना जरूरी है कि इक्विटी में निवेश से अच्छे रिटर्न मिलते तो हैं, लेकिन किसी बैंक एफडी की तरह रिटर्न हर साल मिलेंगे, तो इसकी गारंटी नहीं है. हो सकता है कि किसी साल आपके निवेश पर ऊंचा रिटर्न मिल जाए तो किसी साल वो बैंक सेविंग्स अकाउंट से भी कम रह जाए. इसलिए फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि अगर कम से कम 5-7 साल तक निवेश कर सकते हों तभी शेयर बाजार का रुख करें. शेयर बाजार के दिग्गज अक्सर एक बात कहते हैं जिसे हमें याद रखना चाहिए कि शेयर बाजार को ‘टाइम’ करने की कोशिश से कहीं बेहतर है शेयर बाजार में निवेश को ‘टाइम’ देना.

3. इक्विटी म्युचुअल फंड्स के डिविडेंड ऑप्शंस में निवेश

वेल्थ क्रिएशन के लिए इक्विटी म्युचुअल फंड्स के ग्रोथ ऑप्शन को चुनना चाहिए, ना कि डिविडेंड ऑप्शन को. किसी भी म्युचुअल फंड स्कीम में मिलने वाला डिविडेंड फंड के एनएवी यानी नेट एसेट वैल्यू में से ही दिया जाता है, और वो आपके फंड के एनएवी को घटा देता है. इसका नतीजा होता है दोबारा निवेश के लिए आपके फंड की वैल्यू में कमी और फिर पावर ऑफ कंपाउंडिंग का पूरा फायदा उठाने से आप चूक जाते हैं. इससे लंबी अवधि के दौरान आपके फंड से मिलने वाला रिटर्न कम हो जाता है. ऐसे में आप अपने फाइनेंशियल गोल मिस कर सकते हैं.

4. जरूरत से ज्यादा फंड स्कीमों में निवेश

कई बार इंन्वेस्टर्स को जब जल्दी मुनाफा नहीं होता तो फिर वो उससे मिलते-जुलते किसी और फंड में नया निवेश शुरू कर देते हैं. इसका नतीजा होता है पोर्टफोलियो में एक जैसी स्कीमों की भरमार और फिर ये पोर्टफोलियो असंतुलित हो जाता है.

आपको ये याद रखना चाहिए कि पोर्टफोलियो में अलग-अलग तरह की 4 या 5 फंड स्कीमों से ज्यादा नहीं रखें. इससे आपके पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफिकेशन का फायदा नहीं मिल पाता है.

अच्छी म्युचुअल फंड स्कीमों को चुनें और ये ध्यान रखें कि आपके पोर्टफोलियो में लार्ज कैप, मिड कैप, स्मॉल कैप और हाइब्रिड स्कीमों का सही संतुलन रहे. अगर आपको लग रहा है कि पोर्टफोलियो में ज्यादा फंड हो गए हैं तो किसी वित्तीय सलाहकार की मदद लें और अपने पोर्टफोलियो को अपने वित्तीय लक्ष्यों से जोड़कर संतुलित जरूर बनाएं.

5. NAV देखकर निवेश करना

छोटे निवेशकों को कई बार लगता है कि कम NAV यानी नेट एसेट वैल्यू वाली फंड स्कीमों में निवेश ज्यादा NAV वाली स्कीमों के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद होता है, जबकि ऐसा सच नहीं है. म्युचुअल फंड यूनिट की NAV के कम-ज्यादा होने भर से आप उस फंड स्कीम के परफॉर्मेंस का सही अंदाजा नहीं लगा सकते.

इसलिए NAV के साथ ये भी देखें कि उस स्कीम का पिछला परफॉर्मेंस कैसा रहा है, फंड मैनेजमेंट कंपनी का ट्रैक रिकॉर्ड कैसा है और उस फंड स्कीम का बेंचमार्क इंडेक्स कौन है.
इसलिए अगर आप सही फंड स्कीम चुनने को लेकर असमंजस में हैं तो फिर किसी सर्टिफाइड फाइनेंशियल एडवाइजर की मदद जरूर लें.

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