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मोदी सरकार के 7 साल: हमने क्या पाया,क्या खोया? आइए करें हिसाब  

कोविड 19 महामारी की दूसरी लहर के कारण देश में एक करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है.

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वीडियो एडिटर- शुभम खुराना

जब प्रधानमंत्री से उम्मीद थी कि वो कोरोना से कराह रहे देश के जख्मों पर मरहम लगाएंगे तो वो अपनी 7 साल की कथित 'कामयाबियों' का नमक गिराकर चले गए. चलिए इस पर जनता हिसाब करेगी. लेकिन हम सत्तर साल में जो नहीं हुआ वो सात साल में हुआ के दावे की पड़ताल करते हैं

जब जीडीपी गोते खा रही है, पेट्रोल शतकीय पारी खेल रहा हो, खाने में इस्तेमाल होने वाले सरसों का तेल डबल सेंचुरी बना रहा हो, नौकरी और सैलरी घटती जा रही हो तब हम इस दावे पर पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

मन की बात में 7 साल की उपलब्धियां बताते समय पीएम ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से ज्यादातर का नाम तक नहीं लिया. मेक इन इंडिया, नोटबंदी, जीएसटी. सच ये है कि 2020-21 की GDP -7.3% के रसातल में जाकर बैठ गई है.

सरकार सात साल की उपलब्धियां गिना रही हैं, लेकिन क्या विडंबना है कि सात साल पहले 2014 में GDP ग्रोथ थी 7.14%. अगर लग रहा है कि ये तो कोरोना का कहर है तो महामारी से पहले 2019-20 हम महज 4.18% ग्रोथ पर खड़े थे.

मेक इन इंडिया का शेर बना भिगी बिल्ली

जिस मेक इन इंडिया का शेर हर मेले और मॉल में दहाड़ा करता था, आज वो भिगी बिल्ली बन कहीं दुबक गया है. वादा था कि 2022 तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 10 करोड़ नौकरियां पैदा करेंगे. CEDA-CMIE के मुताबिक, 2016-17 में करीब पांच करोड़ लोग इस सेक्टर में काम करते थे. 2020-21 में इसमें सिर्फ 2.7 करोड़ लोगों को रोजगार मिल रहा है. यानी कहां तो हम मेक इन इंडिया के जरिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में दोगुना रोजगार पैदा करना चाहते थे, हो गए आधे.

इकनॉमी और जीडीपी जैसे कठिन शब्दों से दुर्गति की तस्वीर साफ नहीं दिख रही, तो आम आदमी की भाषा में समझिए.

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एक करोड़ लोग हुए बेरोजगार

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट के मुताबिक कोविड 19 महामारी की दूसरी लहर के कारण देश में एक करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. समझ लीजिए कि चेन्नई या बैंगलौर में जितने लोग रहते हैं उससे ज्यादा बेरोजगार हो गए.

CMIE के आंकड़े के अनुसार, 30 मई को बेरोजगारी दर 11.8% है. रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल महामारी की शुरू होने से अब तक 97 प्रतिशत परिवारों की आय कम हुई है.

कोरोना पर दोष मढ़ने वाले याद कर लें कि 2019 में सरकारी आंकड़ा बता रहा था कि 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी थी. Aon Hewitis एनुअल सैलेरी सर्वे के अनुसार, 2014 में सैलेरी में बढ़ोतरी 10% थी जोकि 2020 में 6 .1% हो गई.

पेट्रोल के दाम ने पॉकेट में लगाया आग

तो नौकरी और सैलरी नहीं बढ़ी, महंगाई जरूर बढ़ गई. अच्छे दिन आएंगे का वादा कर आई सरकार ने पेट्रोल-डीजल में आग लगा रखी है. जून 2014 में पेट्रोल का दाम दिल्ली में 71.51 ₹/लीटर था, जोकि 01 जून 2021 को 94.49 ₹/लीटर हो गया. इसी तरह जून 2014 में डीजल का दाम दिल्ली में 57.28 ₹/लीटर था जबकि एक जून 2021 को 85.38 ₹/लीटर. कहने को तो तेल के दाम को बाजार आधारित कर दिया गया, लेकिन इंटरनेशनल बाजार में कच्चे तेल के दाम घटते गए और सरकार ने ड्यूटी बढ़ा-बढ़ाकर आम आदमी की जेब काटी. किसी भी घर चलाने वाले से पूछिए, उनका राशन का बिल दोगुन हो गया है.

दिल्ली में जून-जुलाई 2013 के बीच अरहर दाल का दाम लगभग ₹70 प्रति किलो था, जबकि मई 2021 में यह ₹108 प्रति किलो तक पहुंच गया है. दिल्ली में जो सरसों तेल 2014 में ₹90 प्रति लीटर के आसपास मिलता था, 28 मई 2021 को ₹171 प्रति लीटर हो गया है. आप किसी से पूछिए इतनी सैलरी बढ़ी? भभक उठेगा.
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अमीर और अमीर, मिडिल क्लास बना गरीब

हम ट्रंप के आने पर गरीबों के गिर्द दीवार खड़ी करते हैं, लेकिन हमारी गरीबी उचक-उचक कर दुनिया को अपना मनहूस चेहरा दिखा रही है.

2014 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का रैंक 76 देशों में 55वां था, जबकि 2020 में भारत 107 देशों में 94 वें नंबर पर रहा. Pew Research Report के अनुसार, 2020 में भारत की मिडिल क्लास जनसंख्या 3.2 करोड़ कम हो गई है, जबकि 7.2 करोड लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं.

यानी जिस हवाई चप्पल वाले मिडिल क्लास को हवा में उड़ने से लेकर रईस बनाने तक का ख्वाब दिखाया गया था वो सिकुड़ रहा है, गरीब हो रहा है.

अडानी-अंबानी की कमाई में इजाफा

हां, ये जरूर है कि इस साल अडानी ने कमाई में जेफ बेजोस और एलन मस्क को पीछे छोड़ दिया. फोर्ब्स की अप्रैल 2021 रिपोर्ट के मुताबिक अंबानी ने जैक मा को पछाड़ दिया. GDP की तुलना में कॉरपोरेट का मुनाफा इस साल दस साल में सबसे ऊपर पहुंच गया. अमीर और गरीब में खाई बढ़ाना उपलब्धि है तो वाकई तारीफ होनी चाहिए सरकार की.

किसान से तकरार

किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा लेकर आए थे. आज 6 महीने से किसानों से जंग चल रही है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के अनुसार, 2014 में 5650 किसानों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 5957 हो गया.

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GST पर राज्यों का दर्द

GST नेटबंदी पर सेलिब्रेशन हो रहा था अब न उसकी बात होती है न उसके कसीदे पढ़े जाते हैं. GST पर कई राज्य शिकायत कर रहे हैं कि हमारा हक मारा जा रहा है. जो वादा किया गया वो पूरा नहीं हुआ. कोरोना काल में राज्य कराहते रहे कि खर्च बढ़ा है, हमारे हिस्से का पैसा दीजिए. केंद्र ने कहा कर्ज ले लो, फिर खुद लिया. लेकिन देर हुई. अभी ताजा ऐलान है कि राज्यों का मुआवजा चुकाने के लिए केंद्र 1.5 लाख करोड़ का कर्ज लेगा. किसका भला हुआ, सरकार खुद बताए.

आयुष्मान भारत, पीएम आवास योजना, बिजली, पानी, सड़क, फ्री का राशन, रसोई गैस पर सब्सिडी, किसानों को 6 हजार रुपए, वाकई ये सब उपलब्धियां हैं. लेकिन 70 साल से सरकारें यही तो कर रही थीं. बुनियादी चीजें देने को मेहरबानी बताती आई हैं. फिर कैसे ये सरकार कहती है कि 70 साल में जो नहीं हुआ वो किया? ये तो बेयर मिनिमम है, हमें तो मैक्सिमम का ख्याब बेचा गया था.

हमने NRC लाकर बांग्लादेशियों को निकालने में ध्यान लगाया, बांग्लादेश ने पर हमसे ज्यादा प्रति व्यक्ति आमदनी लाने में ध्यान लगाया.

शुरू में विदेश यात्राओं की बड़ी चर्चा थी. जिनपिंग के झूले थे, ट्रंप से ब्रोमांस था. आज बाइडेन हैं, ट्रंप से अमेरिका ने ही ब्रेकअप कर लिया. दिल टूटा? नेपाल आंख दिखाता है.चीन चढ़ आया. चीन पर कह दिया एक इंच जमीन नहीं गई. फिर क्यों हुए 22 जवान शहीद? तब हमारे पीएम के लिए इंटरनेशनल मीडिया में क्या छपता था, आज क्या छप रहा है? फिर भी कहेंगे कि 70 साल में जो नहीं हुआ वो सात साल में किया तो हम तो पूछेंगे, जनाब ऐसे कैसे?

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