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एयर स्ट्राइक में सिर्फ आतंकी ही नहीं, मोदी विरोधी मुद्दे भी ध्वस्त

साफ तौर पर, देश के हालिया माहौल और राजनीति में, प्रधानमंत्री मोदी किसी बाजीगर से कम नहीं नजर आ रहे हैं.

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बाजीगर फिल्म में शाहरुख खान का वो डॉयलॉग तो आपको याद ही होगा- 'हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं''. साफ तौर पर, देश के हालिया माहौल और राजनीति में, प्रधानमंत्री मोदी किसी बाजीगर से कम नहीं नजर आ रहे हैं. ऐसा हम यूं ही नहीं कह रहे हैं. तीन राज्यों में मिली हार और राफेल जैसे कई मुद्दों पर बैकफुट पर नजर आ रहे पीएम मोदी एयर स्ट्राइक के बाद पुराने अंदाज में कमबैक करते दिख रहे हैं.

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सोचिए 14 फरवरी को हुए पुलवामा घटना के बारे में. अगर ऐसे हालात किसी दूसरी पार्टी के कार्यकाल में हुए होते, तो वो उसका सबसे बड़ा फेलियर होता, लेकिन मोदी सरकार के पैंतरे और डिप्लोमेसी ने इसे संजीवनी में बदल दिया. इसके लिए पुलवामा घटना के बाद मोदी ने तीनों फ्रंट पर मोर्चा संभाला.

  • आतंकी घटना में मारे गए शहीदों के परिवारों को सरकार के खिलाफ भटकने से रोकने की कोशिश
  • पुलवामा का ऐसा जवाब जो युद्ध जैसा तो दिखे लेकिन परिणाम 'ज्यादा' हानिकारक न हो
  • विपक्षी पुलवामा को सरकार की बड़ी असफलता न साबित कर पाएं, लिहाजा उन्हें राष्ट्रीयता और नैतिकता में उलझाकर रखा

पिछले कुछ दिनों में क्या-क्या हुआ?

पूरी घटना को एक दूसरे नजर से देखिए... पुलवामा में आतंकी हमला हुआ. देश मातम और गुस्से में डूब गया. सरकार पहले ही विपक्षियों के हमले झेल रही थी और अब आतंकी भी सरकार के लिए बड़ी परेशानी लेकर आए. पिछले चार दशकों में देश की ये दूसरी बड़ी घटना है जब एक साथ इतने जवान शहीद हुए. करीब 9 साल पहले छत्तीसगढ़ के बस्तर में हुए माओवादी घटना में 76 जवान मारे गए थे.

लाजिमी था कि विरोधी पार्टियां 56 इंच का सीना दिखाने वाले मोदी सरकार को उन्हीं के अंदाज में लपेटेंगी और ये दिखने भी लगा. इससे पहले लखनऊ में 11 फरवरी को प्रियंका गांधी की पॉलिटिकल एंट्री के ट्रेलर से भगवा सरकार बेचैन थी ही. 17 फरवरी से प्रियंका पूरी तैयारी से फुल फ्लेज चुनावी मैदान में उतरने वाली थी. मूल बात ये है कि बीजेपी के लिए सरकार में वापसी की चुनौतियां बढ़ रही थी.

एक साथ कई मोर्चे पर जूझ रहे थे पीएम मोदी

मोदी एक साथ कई मोर्चे पर जूझ रहे थे, खासकर यूपी में. कांग्रेस का बढ़ता ग्राफ देखकर बीजेपी की सहयोगी पार्टियां अपना दल की अनुप्रिया पटेल और ओमप्रकाश राजभर ने बार्गेनिंग तेज कर दी थी. बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस थी, क्योंकि सियासत में कदम रखने के साथ ही प्रियंका चारों तरफ छा गईं.

चाहे न्यूज चैनल हों या फिर सोशल मीडिया. सिर्फ प्रियंका का डंका बज रहा था. मोदी के लिए दूसरी बड़ी चुनौती यूपी में एसपी-बीएसपी का मजबूत गठबंधन. साल 2014 में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश से 71 सीटें हासिल की थी... लेकिन एसपी-बीएसपी के गठबंधन के बाद हालात अचानक बदल गए. जमीनी स्तर पर बीजेपी को भारी नुकसान की आहट मिलने लगी थी. टीवी चैनलों के सर्वे तो बीजेपी को सिर्फ 20-25 सीटें ही दे रहे थे. ऐसे में 40-50 सीटों के नुकसान की आशंका ने नरेंद्र मोदी की नींद उड़ा दी. उसपर से पुलवामा घटना ने राजनीति का भूगोल ही गड़बड़ा दिया.

बीजेपी ने सड़कों पर विपक्ष की भी भूमिका निभाई!

पुलवामा आतंकी घटना से देश में राष्ट्रवाद का ज्वार उफनने लगा. सभी पार्टियों से शहादत पर सियासत छोड़ देश के साथ खड़े होने की अपील की. विपक्षियों ने भी उससे एक कदम आगे बढ़ते हुए सरकार के हर फैसले पर साथ रहने का भरोसा दिलाया. बीजेपी को छोड़ सभी पार्टियों के नेता और कार्यकर्ताओं ने सरकार के खिलाफ चुप्पी साध ली. इतनी नैतिकता दिखाई कि वो एकदम से गायब ही हो गए. इस बीच बीजेपी ने जमकर फील्डिंग की. गली-गली, गांव-गांव बीजेपी और तिरंगे झंडों के साथ लोगों की टोलियों में पूरे देश में शहीदों में सम्मान में नारे लगाते रहे. कैंडिल मार्च निकाला. कह सकते हैं कि बीजेपी ने सड़कों पर विपक्ष की भी भूमिका निभाई. चार-पांच दिनों तक दूसरी पार्टियां इस उधेड़बुन पर लगी रहीं कि क्या करें, क्या न करें. लेकिन बीच में बीजेपी ने मैदान मार लिया.

बड़े-बड़े मुद्दे कहां गायब हो गये पता ही नही चला

राफेल, बेरोजगारी, राम मंदिर का मुद्दा जो सरकार के बिल्कुल खिलाफ जा रहा था, फिलहाल गायब है. सुप्रीम कोर्ट में चल रहे राम मंदिर के मामले में 26 फरवरी को सुनवाई भी थी, जिसका बड़ी बेसब्री से लोगों को इंतजार था. लेकिन शायद ही किसी ने उधर ध्यान दिया होगा. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने इस आपाधापी के बीच शहादत की राष्ट्रीयता भी दिखाई और सियासत में भी नही चूकें.

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