ADVERTISEMENTREMOVE AD

हमें मजबूत बनाने के लिए PM मोदी का शुक्रिया: शाहीन बाग की महिलाएं

शाहीन बाग में पिछले कई हफ्तों से प्रदर्शन कर रही हैं महिलाएं

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

बुर्के में मुसलमान महिलाओं की छवि सदियों से एक सहानुभूति, उपहास की रही है. पूरा बदन एक काले गाउन से ढका है, महिलाओं को ऐसे देख कर समझा जाता है कि ये उनसे जबरदस्ती करवाया जा रहा है और उन्हें गुमनामी, दुनिया से वंचित जिंदगी गुजरना पड़ रही है और उनकी कोई पहचान नहीं है वो ऐसा अपनी मर्जी से नहीं करती हैं और उन्हें अपने हक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.

मर्दों की छांव में ही चलना है, उन्ही के विचारों के हिसाब से चलना है, उनकी मर्जी के आगे झुकना ही है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो कितनी शिक्षित हैं, सामाजिक या राजनीतिक तौर पर वो कितनी जागरुक हैं. बुर्के में एक महिला को मध्यकालीन की गलत विचार धारा का ही समझा जाता रहा है, यहां तक कि जो लोग खुद को लिबरल कहते हैं वो भी उन्हें एक मजबूर के रूप में देखते हैं जिन्हें बचाए जाने की जरूरत है.

इसमें दिलचस्प बात ये है कि ये महिलाएं हमेशा से देश में हो रही राजनीति का हिस्सा रही हैं, कांग्रेस का शाह बानो का केस हो या फिर मोदी सरकार का तीन तलाक को गैर कानूनी घोषित करना हो. लेकिन आज तक किसी ने उनसे नहीं पूछा कि उन्हें क्या चाहिए, उनकी इच्छाएं क्या हैं. उनके नजरिये को हमेशा ही गलत इस्तमाल हुआ है.

जो आज शाहीन बाग में देखा जा रहा है ये किसी सिविल सोसाइटी का नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन नहीं है ये मुसलमान महिलाओं का विद्रोह भी है, खासकर उनका जो बुर्के में हैं. जो अपनी आवाज उठाने के लिए घरों से निकल चुकी हैं और सड़कों पर आकर प्रदर्शन में हिस्सा ले रही हैं. शाहीन बाग की औरतें दिल्ली की कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर बैठकर प्रदर्शन कर रही हैं उन्हें किसी भी प्रवक्ता की जरूरत नहीं है.

ये महिलाएं मोदी सरकार की क्रूरता के खिलाफ खुद खड़ी हो गई हैं और इससे पूरा देश चौंक गया है. जब मैं अपनी स्टोरी शूट कर रही थी तो मैंने कई महिलाओं से बात की उनका इंटरव्यू लिया, इनमें से कई महिलाओं का कहना है कि वो प्रधानमंत्री का शुक्रिया करती हैं कि उन्होंने (PM) महिलाओं को प्रेरित किया है.

शाहीन बाग में अधिकतर महिलाएं गृहणी हैं, जो आम तौर पर घर से बाहर कम ही निकलती हैं लेकिन आज वो सड़कों पर हैं, न सुबह देखती हैं न रात, वो अपने हक के लिए लड़ रही हैं.

माथे पर तिरंगा लगाकर, गोद में छोटे छोटे बच्चों को लेकर, बच्चों के लिए बोतल में गर्म दूध लेकर बीच प्रदर्शन में उनकी भूख का ध्यान भी रख रही हैं. प्रदर्शन में वो बच्चों को इसलिए लेकर आती हैं या कहें कि उन्हें इसलिए आना पड़ता है क्योंकि घर पर बच्चों का ध्यान रखने के लिए कोई नहीं है. बच्चों की जरूरतों और उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी तो सबसे ज्यादा उन्हीं पर है. शाहीन बाग की महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं अपनी आवाज उठा रही हैं ये उनके हक की लड़ाई है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×