वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा
नोबेल प्राइज मिलने से कुछ ही दिनों पहले अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने ब्राउन यूनिवर्सिटी में बोलते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति ‘खराब’ है. बनर्जी ने अपनी नई किताब ‘गुड इकनॉमिक्स फॉर हार्ड टाइम्स’ में इसका समाधान बताने की कोशिश की है.
नौकरी खोते युवाओं की चिंता और मिलेनियल्स को लेकर क्विंट ने उनसे खास बातचीत की.
अगर किसी की नौकरी चली जाए तो उसे क्या करना चाहिए?
युवा होने का एक फायदा होता है कि आपके पास आपके माता-पिता होते हैं. बाकी परिवार होता है जो आपकी मदद के लिए हमेशा तैयार होता है. ये नई स्किल सीखने का अच्छा वक्त है. ये सोचें कि जब इकनॉमी रिकवर करेगी तो कैसी होगी. ये कुछ अलग सोचने का वक्त है. कई बार जीवन में झटके अच्छे भी होते हैं.
बुरा वक्त ही सबसे अच्छा वक्त होता है?
मैं ये नहीं कहता कि ये शानदार है. ये कहना असवंदेनशील होगा. युवा होने के अपने फायदे हैं. 50 की उम्र के बाद नौकरी जाना काफी भारी पड़ सकता है.
अभी के मुकाबले 70 के दशक में नौकरी जाना कितना बुरा था?
उस वक्त आप नौकरी चाहते थे तो बहुत निराश होकर शुरुआत करते थे. नौकरियां नहीं थीं, लोग 3-4 साल तक बैठे रहते थे. मैं उस पीढ़ी से नहीं था. 1981 में मैं 20 साल का था लेकिन मैं अपने से पांच साल बड़े लोगों को देख सकता था. वो कुछ भी नहीं कर रहे थे. ये डरावना था. लोग ऐसा सोचते थे कि उनको नौकरी मिलने में कई साल लगेंगे. मुझे लगता है कि उम्मीदें बढ़ी हैं, जिसकी वजह से आजकल जीवन मुश्किल हुआ है. लोग अच्छी जिंदगी की उम्मीद करते हैं, जबकि मेरी पीढ़ी में... मेरे चाचा के पास ही आईआईटी की दो डिग्री थी. उनके पास तीन साल तक कोई नौकरी नहीं थी.
कुछ दिन पहले निर्मला सीतारमण ने कहा था कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी के पीछे कहीं न कहीं मिलेनियल्स का ओला और उबर चुनना है?
अगर आप सही में सोचते हैं कि मांग में बड़ा बदलाव आया है, तो ये अच्छा है. मैं सोच रहा हूं कि मिलेनियल्स भी युवा हैं. देश में ये जॉब मार्केट की तरह है. ये केवल तब ही होता है 30 साल की उम्र के आसपास हीलोग कार खरीद सकते हैंअगर आपके माता-पिता अमीर नहीं हैं तोइसलिए, मुझे नहीं लगता कि किसी भी हालात में20 साल की उम्र के आसपास के लोग कभी भी कार खरीदते थे
नौकरी पाने की उम्र में नोबेल प्राइज विनर इकनॉमिस्ट को कितनी पॉकेट मनी मिलती थी?
मेरे पास नेशनल टैलेंट स्कॉलरशिप की चीज थी. इसलिए मेरे पास बाकी लोगों की तुलना में थोड़े ज्यादा पैसे थेमुझे हर महीने सरकार से 200 या 250 रुपये मिलते थेहां, वो बहुत पैसा था इसलिए मैं खुद को थोड़ा अमीर समझता था
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